Jharkhand: यहां हर रोज होती हैं डायन हिंसा की 3 घटनाएं, 22 सालों में मौत के घाट उतार दिए गए 1000 लोग

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Feb 07, 2022, 09:43 PM IST

झारखंड को अलग राज्य बने 22 वर्ष हुए हैं और इस दौरान राज्य में डायन-ओझा के संदेह में एक हजार से भी ज्यादा लोगों की हत्या हे गई है.

डीएनए हिंदी: झारखंड के एक गांव में अलग-अलग कारणों के चलते दो महीने के दौरान तीन लोगों की मौत हुई थी. इसे लेकर एक पंचायत बैठी. गांव के तकरीबन 80 लोग इकट्ठा हुए. इनमें तंत्र-मंत्र करने वाला एक ओझा भी था जिसने गांव वालों से कहा कि ये मौतें निकोदिन टोपनो और उसके घरवालों के कारण हो रही हैं. उस परिवार में एक डायन है. वही गांव के लोगों को खा रही है. पंचायत ने तय किया कि पूरे परिवार का सफाया कर देना है. फैसले पर तत्काल अमल हुआ. इसके लिए आठ लोग तैयार हुए सबने शराब पी और देर रात निकोदिन टोपनो के घर पर हमला कर दिया. 

इस हमले में 60 वर्षीय निकोदिन टोपनो, उनकी पत्नी जोसपिना टोपनो, जवान पुत्र विनसेन्ट टोपनो, बहू शीलवंती टोपनो और पांच साल का पोते अल्बिन टोपनो को कुल्हाड़ी से काट डाला गया. परिवार में सिर्फ निकोदिन की आठ साल की पोती अंजना टोपनो बच गई क्योंकि उस रोज वह अपने एक रिश्तेदार के यहां रांची में थी. यह वारदात झारखंड के गुमला जिला मुख्यालय से कोई 80 किलोमीटर दूर कामडारा थाना क्षेत्र के बुरुहातू आमटोली गांव में पिछले साल 23 फरवरी की है. बाद में पुलिस ने वारदात को अंजाम देने वाले आठ लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा.

दरअसल झारखंड में इस तरह की घटनाओं का अंतहीन सिलसिला रहा है. झारखंड को अलग राज्य बने 22 वर्ष हुए हैं और इस दौरान राज्य में डायन-ओझा के संदेह में एक हजार से भी ज्यादा लोगों की हत्या हो चुकी है. डायन हिंसा और प्रताड़ना का शिकार हुए लोगों में 90 फीसदी महिलाएं हैं.

बीते साल नवंबर में राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री से नवाजी गईं सरायकेला-खरसांवा जिले के बीरबांस गांव की रहनेवाली छुटनी देवी भी उन महिलाओं में हैं जिन्होंने डायन के नाम पर बेइंतहा सितम झेले हैं. पड़ोसी की बेटी बीमार पड़ी थी और इसका जुर्म छुटनी देवी के माथे पर मढ़ा गया था, यह कहते हुए कि तुम डायन हो. 

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साल 2022 में आज की तारीख तक 36 दिन गुजरे हैं और डायन के नाम पर दरिंदगी की पांच बड़ी घटनाएं सामने आ चुकी हैं. 2 जनवरी को गुमला जिले के सिसई थाना क्षेत्र के लकया गांव में कुछ लोगों ने एक महिला को डायन करार दिया. महिला के दो बेटों संजय उरांव और अजय उरांव ने विरोध किया तो दस लोगों ने मिलकर दोनों को पकड़कर खंभे से बांध दिया, बेरहमी से पीटा. इतना ही नहीं, अजय उरांव की बाईं आंख भी फोड़ दी गई. पुलिस ने इस मामले में लुकया ग्राम पंचायत की मुखिया सुगिया देवी सहित 10 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है.

बीते 30 जनवरी को झारखंड की राजधानी रांची स्थित राज्य के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल रिम्स की नर्स सलोमी मिंज सहित चार लोगों को खूंटी जिले की पुलिस ने गिरफ्तार किया. इन सभी ने 27 जनवरी को नोरा लकड़ा नामक एक महिला को डायन करार देकर उसकी हत्या कर दी थी और उसकी लाश एक कार में रखकर खूंटी थाना क्षेत्र के जंगल में फेंक दी. पुलिस ने सलोमी से पूछताछ की तो उसने बताया कि 17 जनवरी को उसके बड़े बेटे अभिषेक तिर्की की अचानक मौत हो गई थी. उसे आशंका थी कि उसके घर पर किराए पर रहने वाली नोरा लकड़ा ने जादू-टोने से उसकी जान ले ली है. 

बीते 5 जनवरी को खूंटी जिला अंतर्गत तिरला गांव में डायन और जादू-टोने के अंधविश्वास में दंपती की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई. हत्यारों के खौफ के चलते गांव में यह मामला पूरे पांच दिनों तक दबा रहा. सिमडेगा में ठेठईटांगर थाना क्षेत्र के कुड़पानी गांव की रहने वाली झरियो को फुलरेंस नामक व्यक्ति ने डायन बताते हुए अपनी पत्नी की मौत का जिम्मेदार ठहरा दिया. इसके बाद फुलरेंस ने अपने साथियों के साथ मिलकर झरियो देवी पर पुआल और तेल डालकर आग लगा दी. यह घटना बीते 12 जनवरी की रात की है. बुरी तरह झुलसी झरियो देवी रांची के एक अस्पताल में आज भी जिंदगी-मौत से जूझ रही हैं.

पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि पिछले सात वर्षों में डायन-बिसाही के नाम पर झारखंड में हर साल औसतन 35 हत्याएं हुईं हैं. अपराध अनुसंधान विभाग (सीआईडी) के आंकड़ों के मुताबिक, 2015 में डायन बताकर 46 लोगों की हत्या हुई. साल 2016 में 39, 2017 में 42, 2018 में 25, 2019 में 27 और 2020 में 28 हत्याएं हुईं. 2021 के आंकड़े अभी पूरी तरह कंपाइल नहीं हुए हैं लेकिन इस वर्ष भी हत्याओं के आंकड़े करीब दो दर्जन बताए जा रहे हैं. इस तरह सात वर्षों का आंकड़ा कुल मिलाकर 230 से ज्यादा है. 

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डायन बताकर प्रताड़ित करने के मामलों की बात करें तो 2015 से लेकर 2020 तक कुल 4556 मामले पुलिस में दर्ज किए गए हैं. यानी हर रोज दो से तीन मामले पुलिस के पास पहुंचते हैं. बीते छह वर्षों में सबसे ज्यादा मामले गढ़वा में आए. यहां 127 मामले दर्ज किए गए, जबकि पलामू में 446, हजारीबाग में 406, गिरिडीह में 387, देवघर में 316, गोड्डा में 236 मामले दर्ज किए गए हैं.

डायन के आरोप में प्रताड़ना और हिंसा की घटनाएं अक्सर बर्बरता की तमाम हदें लांघ जाती हैं. महिलाओं को मैला खिलाने, निर्वस्त्र करने, बाल काटने से लेकर निजी अंगों पर हमले जैसी घटनाएं आए रोज झारखंड में मीडिया की सुर्खियां बनती हैं. सामाजिक एवं स्वयंसेवी संगठनों से जुड़ी छंदोश्री कहती हैं कि डायन कुप्रथा के पीछे अंधविश्वास और अशिक्षा तो है ही, कई बार विधवा-असहाय महिलाओं की संपत्ति हड़पने के लिए भी उनके खिलाफ इस तरह की साजिशें रच दी जाती हैं. गांव में किसी की बीमारी, किसी की मौत, यहां तक कि पशुओं की मौत और पेड़ों के सूखने के लिए भी महिलाओं को डायन करार दिया जाता है.

झारखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता और कई सामाजिक संगठनों से जुड़े योगेंद्र यादव बताते हैं, डायन प्रताड़ना के लगभग 30 से 40 प्रतिशत मामले तो पुलिस के पास पहुंच ही नहीं पाते. दबंगों के खौफ और लोकलाज की वजह से कई लोग जुल्म सहकर भी चुप रह जाते हैं. इनमें ज्यादातर महिलाएं होती हैं. कई बार प्रताड़ित करने वाले अपने ही घर के लोग होते हैं. ऐसे मामले पुलिस में तभी पहुंचते हैं, जब जुल्म की इंतेहा हो जाती है.

योगेंद्र बताते हैं कि डायन-बिसाही के नाम पर प्रताड़ना की घटनाओं के लिए लिए वर्ष 2001 में डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम लागू हुआ था लेकिन झारखंड बढ़ने के बाद डायन प्रताड़ना और हिंसा के बढ़ते मामले यह बताते हैं कि कानून की नए सिरे से समीक्षा की जरूरत है. दंड के नियमों को कठोर बनाए जाने, फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाकर ऐसे मामलों में जल्द फैसला लिए जाने और सामाजिक स्तर पर जागरूकता का अभियान और तेज किए जाने की जरूरत है.

झारखंड के ग्रामीण विकास विभाग के सचिव मनीष रंजन का कहना है कि डायन कुप्रथा उन्मूलन के लिए सरकार पिछले डेढ़ साल से जेएसएलपीएस (झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी) के जरिए गरिमा परियोजना चला रही है. डायन बताकर प्रताड़ित की गई महिलाओं को न सिर्फ चिन्हित किया जा रहा है, बल्कि इन्हें सखी मंडल से जोड़कर स्वावलंबी बनाया जा रहा है. डायन कुप्रथा की पीड़ित महिलाओं को काउंसेलिंग, कानूनी सहायता, मनोवैज्ञानिक काउंसेलिंग की भी पहल गई है. राज्य में अब तक डायन कुप्रथा से पीड़ित लगभग एक हजार महिलाओं की पहचान की गई है. 450 से ज्यादा पीड़ित महिलाओं को सखी मंडल के जरिए आजीविका के विभिन्न साधनों से जोड़ा गया है, जबकि करीब 600 चिन्हित महिलाओं की मनोचिकित्सकीय काउंसेलिंग की गई है.
 

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