डीएनए हिंदी: यह कहानी है एक ऐसे शख्स की जिसने सांसारिक मोह माया त्याग अपना जीवन छात्रों के नाम कर दिया. वह खुद तो पढ़ नहीं सके लेकिन कुछ छात्रों को पढ़ाकर सफलता के शिखर तक पहुंचा दिया. हम बात कर रहे हैं राजस्थान के नागौर जिले के जायल के राजोद गांव के पूर्णाराम छोड़ उर्फ 'जगत मामा' की.
जगत मामा के नाम से विशेष पहचान बनाने वाले पूर्णाराम छोड़ भले ही खुद कम पढ़े लिखे हों लेकिन उन्होंने सैंकड़ों बच्चों का भविष्य संवारने का काम किया है. जैसे ही उनके निधन की खबर आई तो पूरे जिले में एक सन्नाटा पसर गया. बड़ी बात यह कि जगत मामा ने कुंवारे रहकर 300 बीघा जमीन गांव के स्कूल, ट्रस्ट और गौशाला के नाम पर दान कर दी थी.
खुद अनपढ़ होते हुए भी बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने 4 करोड़ रुपये से ज्यादा के इनाम वितरित कर दिए. बच्चों में पढ़ाई के प्रति जोश व जज्बा बढ़ाने के लिए कभी अपने हाथों से उन्हें हलवा पूड़ी खिलाई लेकिन अफसोस वह शख्सियत कल इस दुनिया को अलविदा कह गई. आज उनके इस दुनिया से अलविदा कहने के बाद अधिकारियों समेत तमाम लोगों ने सोशल मीडिया के जरिए जगत मामा को श्रद्धांजलि पेश की है.
शालीनता ही थी पहचान
पूर्णाराम छोड़ शालीनता की वजह से पहचाने जाते थे. सिर पर दूधिया रंग का साफा, खाकी रंग की फटी सी धोती, खाक में नोटों से भरा थैला, जब पूर्णाराम लाठी के सहारे चलते थे तो बहुत ही साधारण से साधु लगते थे लेकिन वह प्यार के सागर और सोच के बहुत अमीर थे. इलाके के लोग बताते हैं कि जब भी स्कूल में किसी तरह की कोई प्रतियोगिता होती थी जगत मामा पहुंच जाया करते और बच्चों का उत्साह बढ़ाते इसलिए बच्चे उनको बहुत प्यार करते थे.
इसलिए कहलाते थे जगत मामा
पूर्णाराम छोड़ उर्फ जगत मामा के बारे में लोगों ने बताया कि कई बार हम लोगों को बचपन में जगत मामा ने हाथों से खाना खिलाया तो कभी हम लोगों को पढ़ाई के लिए पैसे दिए तो कभी हम लोगों की फीस भी जमा करवाई. हम लोगों को हमेशा ही पूर्णाराम छोड़ ने भाणिया (भांजा) कहा इसलिए इन्हें जगत मामा कहा जाता है.
इनाम देते थे मामा
जगत मामा दिनभर में कई स्कूलों में पहुंचकर बच्चों को नोट बांटकर प्रस्थान करते थे. उन्हें जहां भी रुकने को जगह मिल जाती वहीं रात को रुक जाते और फिर अगली सुबह दूसरे स्कूलों तक पहुंचते.
वह जिस स्कूल में पहुंचते उसमें होनहार बच्चों की पहचान कर उन्हें नकद राशि के तौर पर इनाम देते थे. साथ ही स्कूलों में बच्चों को हलवा पूड़ी खिलाने और जरूरतमंद बच्चों की प्रवेश फीस से लेकर किताबें, स्टेशनरी, बैग व छात्रवृ्त्ति तक की व्यवस्था भी करते थे. यानी वो हर समय गरीब व जरूरतमंद बच्चों की मदद के लिए तत्पर रहते थे. जगत मामा के पढ़ाए विद्यार्थी आज कई बड़े अधिकारी पद पर हैं. कई राजनेता बने गये तो कई बड़े बिजनेसमैन बन गए हैं.
दोनों भाइयों का हो चुका निधन
गांव के हरिराम व सहीराम रेवाड़ ने बताया कि पूर्णाराम छोड़ यानी जगत मामा ने जीवनभर समाजसेवा के चलते शादी भी नहीं की. उनका बच्चों के प्रति स्नेह व प्यार गहरा था. उन्होंने बताया कि पूर्णाराम दो भाई थे, दोनों का निधन हो चुका है. अब परिवार में केवल बहन का परिवार ही बचा है.
दामोदर ईनाणियां, ZEE Media नागौर