Places of worship Act के बाद भी ज्ञानवापी मस्जिद में कैसे हुआ सर्वे?

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:May 20, 2022, 12:16 PM IST

Gyanvapi Masjid: सुप्रीम कोर्ट आज ज्ञानवापी मामले की सुनवाई करेगा. इसमें सिविल कोर्ट द्वारा सर्वे के आदेश को चुनौती दी गई है. 

डीएनए हिंदीः वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) में सिविल कोर्ट के आदेश के बाद सर्वे कराया गया है. सर्वे की रिपोर्ट भी कोर्ट को सौंपी जा चुकी है. इस मामले में अब तक दो रिपोर्ट पेश की गई हैं. दोनों ही रिपोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद में समानत धर्म के चिन्ह होने का दावा किया गया है. अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने इस सर्वे को लेकर वाराणसी कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. 

क्या उपासना स्थल कानून का हुआ उल्लंघन 
दरअसल मुस्लिम पक्ष का आरोप है कि सिविल कोर्ट का सर्वे का आदेश उपासना स्थल कानून (Places of worship Act 1991) का उल्लंघन है. इस कानून के मुताबिक भारत में 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थान जिस स्वरूप में था, वह उसी स्वरूप में रहेगा, उसकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जा सकेगा. इस कानून से सिर्फ अयोध्या मसले को दूर रखा गया था. 

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हिंदू पक्ष का क्या कहना है?  
इस मामले में हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन का कहना है कि कानून एक याचिका में एक्ट की धारा 2, 3 और 4 को चुनौती दी गई है इसमें विशेष रूप से कानून के सेक्शन 4 का सब-सेक्शन 3 कहता है कि जो प्राचीन और ऐतिहासिक जगहें हैं उन पर ये कानून लागू नहीं होगा. मतलब अगर कोई जगह जिसका ऐतिहासिक महत्व है उसे प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत नहीं लाया जाएगा. इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि Archaeological Survey of India (ASI) यानी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इसे एंसियंट मॉन्यूमेंट एंड ऑर्कियोलॉजिकल साइट्स एंड रिमेंस एक्ट 1958 के तहत अपने संरक्षण में लेकर संरक्षित करेगा.

ऐसे में इस तरह की जगहों को मंदिर मस्जिद की जगह ऐतिहासिक धरोहर के तौर पर देखा जाएगा. अगर किसी बिल्डिंग को बने 100 साल हो गए हैं इसका कोई ऐतिहासिक महत्व है तो इसे एएसआई संरक्षित कर सकता है. इस नियम के हिसाब से कानून के कुछ जानकारों का मानना है कि मथुरा और काशी के मंदिरों के मामले इस कानून से बाहर हो जाते हैं.

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साल 2020 में उपासना स्थल क़ानून की वैधता को चुनौती
साल 2020 के अक्टूबर में बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करके 1991 के उपासना स्थल क़ानून की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए. उन्होंने तब इस कानून को लेकर दो बातें कोर्ट के सामने रखीं. पहली ये कि केंद्र सरकार के पास इस कानून को बनाने का अधिकार ही नहीं है. उनकी दलील है कि 'पब्लिक ऑर्डर' यानी 'क़ानून-व्यवस्था' राज्य सरकार का विषय है.  दूसरी दलील ये दी कि 'पिलग्रिमेज' यानी 'तीर्थस्थल' पर क़ानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों को है. लेकिन जब मामला अंतरराष्ट्रीय हो तो, जैसे कैलाश मानसरोवर या ननकाना साहिब, वो अधिकार क्षेत्र केंद्र सरकार का हो जाता है. जब मामला राज्यों से जुड़े धार्मिक स्थलों का हो तो राज्यों के अधिकार क्षेत्र का मामला होता है.

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