नोबेल पुरस्कार विजेता Kailash Satyarthi ने महिलाओं के लिए लड़ी है लंबी लड़ाई

| Updated: Mar 07, 2022, 06:06 PM IST

नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के सहयोगी ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर बच्चियों और महिलाओं के लिए चलाए उनके कामों का जिक्र किया है.

पंकज चौधरी 

राजस्‍थान के विराटनगर की तारा बंजारा की 14 वर्षीय छोटी बहन आकाश का बाल विवाह होने जा रहा था. तारा ने अपने माता-पिता के फैसले का जबरदस्‍त विरोध किया. पढ़े-लिखे और जागरूक लोगों का समर्थन जुटाकर माता-पिता पर दबाव बनाया. आखिरकार तारा को आकाश का विवाह रुकवाने में सफलता मिली. छोटी बहन का बाल विवाह रुकवाने वाली तारा को पिछले साल 12वीं कक्षा में 85 प्रतिशत अंक मिले. तारा घुमंतू जनजाति बंजारा समुदाय की अपने इलाके की पहली ऐसी लड़की है जिसने 12वीं पास किया है.

पशु-मवेशी चराने वाले, मजदूरी करके जीने वाले और जंगलों से लकडि़यां चुनकर बेचने वाले बंजारा समुदाय के लिए यह किसी चमत्‍कार से कम नहीं है. पांच-छह साल की उम्र में मां के साथ सड़कों पर झाड़ू लगाने वाली तारा ने खुद भी कभी नहीं सोचा होगा कि वह भी पढेगी-लिखेगी और एक दिन अव्‍वल नंबरों से 12वीं पास करेगी. सामाजिक जागरुकता पैदा करने के लिए तारा को फिल्‍म स्‍टार शाहिद कपूर के हाथों रिबॉक फिट टू फाइट अवार्ड से भी सम्‍मानित किया जा चुका है. वर्तमान में वह कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन फाउंडेशन की फ्रीडम फेलोशिप की लाभार्थी भी है, जिसके तहत उसे पढ़ने-लिखने की सुविधाएं दी जा रही हैं. वर्तमान में वह बीए की पढ़ाई कर रही है. 

तारा जैसी ऐसी हजारों लड़कियां हैं जिनके जीवन को श्री कैलाश सत्‍यार्थी ने बदला है. इसलिए वे सिर्फ बाल अधिकार कार्यकर्ता के तौर पर ही नहीं बल्कि महिलाओं के अधिकारों, शिक्षा, सुरक्षा, प्रतिष्‍ठा और गरिमा को बहाल करने वाले प्रतिष्‍ठापक के रूप में भी अपनी अमिट छाप छोड़ते हैं.

यहां यह उल्‍लेख करना जरूरी है कि श्री सत्‍यार्थी ने बाल दासता के खिलाफ अपनी लड़ाई की शुरुआत चार दशक पहले साबो नाम की एक बाल बंधुआ मजदूर को पंजाब के सरहिंद के ईंट-भट्ठे से मुक्‍त कराकर की थी. साबो को दासता से मुक्‍त कराने से प्रेरित और उत्‍साहित होकर ही श्री सत्‍यार्थी ने ‘‘बचपन बचाओ आंदोलन’’ की 1980 में स्‍थापना की थी.

श्री कैलाश सत्‍यार्थी द्वारा स्‍थापित कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन संचालित सैकड़ों बाल मित्र ग्राम (बीएमजी) की लड़कियां आज बदलाव निर्माता के रूप में राष्‍ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर नाम कमा रही हैं. ये लड़कियां कभी बाल मजदूर थीं लेकिन इन्‍हें जब श्री सत्‍यार्थी के नेतृत्‍व में बाल मजदूरी के चंगुल से मुक्‍त कराकर बीएमजी से जोड़ते हुए शिक्षा के महत्‍व से अवगत कराया गया, तब से ये अपने आस-पास के गांवों की महिलाओं और बच्चों को सशक्त करने के उद्देश्‍य से जागरुकता कार्यक्रमों को संचालित कर रही हैं. इन्‍होंने गांव और बाल पंचायतों के साथ मिलकर सैकड़ों बाल विवाहों को रुकवाया है. ये अपने आस-पास के गांवों में बाल विवाह के साथ-साथ छुआछूत और जातिप्रथा के खिलाफ भी संघर्ष कर रही हैं. ये बच्‍चों का स्‍कूलों में दाखिला करवा रही हैं और स्‍कूलों की समस्‍याओं का भी ग्राम पंचायत के साथ मिलकर समाधान पेश कर रही हैं.

बदलाव की वाहक ये लड़कियां आज के दिन बच्‍चों को उनके अधिकारों और सुरक्षा के लिए गोलबंद करने में जुटी हुई हैं. बाल मित्र ग्राम से मतलब ऐसे गांवों से है जहां कोई भी बाल मजदूर नहीं होता और सभी बच्‍चे स्‍कूल जाते हैं. बदलाव की ऐसी निर्माताओं में राजस्‍थान की पायल जांगिड़ एवं ललिता दुहारिया और झारखंड की चम्‍पा कुमारी के नाम उल्‍लेखनीय हैं. इन नायिकाओं पर देश-दुनिया की नजर है.

राजस्‍थान के हिंसला बीएमजी का प्रतिनिधित्‍व करने वाली पायल जांगिड़ को न्यूयॉर्क में दो साल पहले बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा ‘चेंजमेकर’ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. राजस्‍थान की ही रहने वाली राष्‍ट्रीय महा बाल पंचायत की अध्‍यक्ष ललिता दुहारिया को एक ओर जहां ‘रिबॉक फिट टू फाइट अवार्ड’ से सम्‍मानित किया जा चुका है, वहीं वह अशोका यूथ वेंचर की ओर से यूथ फेलो भी है. झारखंड के गिरिडीह जिले में जामदार बीएमजी की चंपा को यूनाइटेड किंगडम का प्रतिष्ठित डायना अवार्ड मिल चुका है. चंपा झारखंड के गिरिडीह जिले की अभ्रक खदानों में अभ्रक चुनने का काम करती थी.

तारा, पायल, ललिता, चंपा के अलावा राधा पांडेय, सरस्‍वती, प्रीति, पूजा, दीपिका, इंद्रा, देवली, रजिया, नंदी, फूलजहां, फगुनी की राजकुमारी, साहिबा आदि बहादुर लड़कियां भी हैं, जिन्‍होंने समाज के सामने मिसाल कायम की हैं. बाल मजदूर रह चुकीं ये लड़कियां आज बदलाव की वारिस बनकर भारत को बेटियों के अनुकूल बनाने के अभियान में जुटी हुई हैं.

देश में बच्‍चों खासकर लड़कियों का यौन शोषण बढ़ता ही जा रहा है. श्री सत्‍यार्थी भारत में दिन-प्रतिदिन बढ़ते बाल यौन शोषण को अनैतिक महामारी की संज्ञा देते हैं. इस पर लगाम लगाने के लिए अपने स्‍तर पर पुरजोर प्रयास कर रहे हैं. इसी मकसद से उन्‍होंने बाल यौन शोषण और ट्रैफिकिंग को खत्‍म करने के लिए 2017 में देशव्‍यापी ‘‘भारत यात्रा’’ का आयोजन किया. पूरे 35 दिनों तक चली भारत यात्रा में लाखों महिलाओं, युवाओं, बुजुर्गों और आम लोगों ने भाग लेकर श्री सत्‍यार्थी के सरोकार का समर्थन किया. यात्रा का केंद्र और राज्‍य सरकारों पर दबाव बना और उन्‍होंने बच्‍चों के अधिकारों और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के वास्‍ते नीतियों और कानूनों में बदलाव करने के प्रयास शुरू किए. 

वर्तमान में कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन द्वारा ‘जस्टिस फॉर एवरी चाइल्‍ड’  अभियान चलाया जा रहा है. अभियान का लक्ष्‍य देश के 100 जिलों में कम से कम 5000 मामलों में पॉक्‍सो (बच्‍चों का यौन अपराधों से संरक्षण) अधिनियम के तहत न्‍याय दिलाना है. इसके तहत फाउंडेशन यौन शोषण और बलात्कार के पीडि़त बच्‍चों को कानूनी और स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं, पुनर्वास, शिक्षा और कौशल विकास के अवसरों की सुविधाएं भी प्रदान करेगा. बाल यौन शोषण के पीडि़तों और उनके परिवारों को मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सहायता भी फाउंडेशन की ओर से मुहैया कराया जाएगा.

बाल मजदूरी के दलदल में लड़के और लड़कियां दोनों को समान रूप से धंसाया जाता है. लेकिन लड़कियों को तब दोहरे अभिशाप के दौर से गुजरना पड़ता है, जब उनका यौन शोषण होता है. इस तरह से श्री सत्‍यार्थी आधी आबादी को दोहरे-तिहरे अभिशाप से मुक्‍त कराकर उनकी आजादी, शिक्षा, सुरक्षा, प्रतिष्‍ठा और गरिमा को बहाल करने के कारवां को आगे बढा़ने में जुटे हुए हैं. उनके विश्‍वव्‍यापी अभियान से एक उम्‍मीद बंधती है कि बेटियों के लिए हम एक सुरक्षित और खुशहाल दुनिया बना पाएंगे.

पंकज चौधरी लेखक हैं और कैलाश सत्यार्थी के साथ लंबे समय से काम कर रहे हैं. लेख में उनके निजी विचार हैं.

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