केंद्रीय समिति ने इंटरनेट बंदी के नियमों पर उठाए सवाल, कानून में बदलाव का सुझाव

कृष्णा बाजपेई | Updated:Dec 02, 2021, 03:23 PM IST

शशि थरूर की अध्यक्षता वाली सूचना एवं प्रौद्योगिकी संबंधी संसदीय समिति ने इंटरनेट बंदी संंबंधी कानूून की परिभाषा को स्पष्ट करने का सुझाव दिया है.

डीएनए हिंदीः देश में कहीं भी यदि इंटरनेट बंद होता है तो उस इलाके का तकनीक से जुड़ा सारा कामकाज ठप हो जाता है. ऐसे में ये प्रश्न उठता है कि  इंटरनेट बंद करने की स्थितियां क्या है. मुख्य तौर पर केंद्र या राज्यों की सरकार के दिशानिर्देशों पर इंटरनेट बंदी की जाती है किन्तु कुछ विशेष  परिस्थितियों में ये बंदी या संचालन का अधिकार स्थानीय वरिष्ठ अधिकारियों को भी दिया जा सकता है. 

इस पूरे तंत्र के बीच मूलभूत प्रश्न पुनः यही रहता है कि वो विशेष परिस्थितियां क्या हो सकती है जिनके चलते केंद्र एवं राज्यों की सरकारें समेत प्रशासन इंटरनेट बंदी कर देता है जिससे एक बड़ा आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ता है. कुछ ऐसे ही गंभीर सवाल सूचना एवं प्रोद्योगिकी से संबंधित समिति ने उठाए हैं. 

कैसे होती है इंटरनेट बंदी

आज की स्थिति में राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा किसी क्षेत्र में दूरसंचार और इंटरनेट सेवाओं के निलंबन को उचित ठहराने के लिए जो कानून अपनाया जाता है, वो सार्वजनिक सुरक्षा और सार्वजनिक आपातकाल, भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5 (2) के तहत आता है. इसके विपरीत इसको लेकर विशेष स्थितियां परिभाषित नहीं कि गई है. खास बात ये कि इंटरनेट बैन करने का मुख्य उद्देश्य सोशल मीडिया से फैलने वाली अफवाहों को रोकना है. 

संसदीय समिति ने उठाए सवाल 

इंटरनेट बैन होने के इसी कानून सार्वजनिक आपात स्थिति और जन सुरक्षा की कोई भी स्पष्ट परिभाषा नहीं बताई गई है. इसके चलते समिति ने इसकी वृहद परिभाषा देने का प्रस्ताव दिया है. संचार और सूचना प्राद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति ने इंटरनेट बैन को लेकर प्रस्ताव दिया है कि सरकार को दूरसंचार और इंटरनेट सेवा बंद होने से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव का आंकलन करना चाहिए. 

इसके साथ ही इस शशि थरूर की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने सुझाव दिया है कि आपात स्थिति और जन सुरक्षा से निपटने में इसका प्रभाव का पता लगाया जाना चाहिए, क्योंकि मुख्य तौर पर इस तरह की इंटरनेट बंदी की आलोचना ही की जाती है. 

नहीं है कोई मानदंड 

वहीं हाल के इंटरनेट बंदी के फैसलों को लेकर केंद्रीय समिति ने कहा, “मौजूदा स्थिति में ऐसा कोई मानदंड नहीं है जिससे दूरसंचार/इंटरनेट बंद करने के औचित्य या उपयुक्तता के बारे में निर्णय किया जा सके. इस रिपोर्ट में कहा गया, “ऐसे मानदंडों के नहीं होने से इंटरनेट बंद करने का आदेश जिला स्तर के अधिकारी के मूल्यांकन और जमीनी स्थितियों के आधार पर दिया जाता है और यह काफी हद तक कार्यकारी निर्णयों पर आधारित है.”

सोशल मीडिया बंदी पर हो फोकस

एक यथार्थ सत्य ये है कि सोशल मीडिया के जरिए ही स्थिति जटिल बनती है. इसको लेकर ही इंटरनेट बंद होता है. ऐसे में संसदीय समिति ने एक सकारात्मक विकल्प की ओर काम करने का सुझाव भी दिया है. इस रिपोर्ट में कहा गया, “सरकार इंटरनेट बंद करने के बजाय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को बंद करने का विकल्प तलाशे जिनका संकट के समय आतंकी या राष्ट्रविरोधी ताकतें खास क्षेत्र में अशांति फैलाने के लिए  दुरुपयोग करते हैं.”

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