'शादी के बारे में जानते हुए भी संबंध बनाए रखना, रेप नहीं, लव एंड पैशन', केरल हाईकोर्ट की टिप्पणी

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Oct 09, 2022, 07:23 PM IST

सांकेतिक तस्वीर

केरल हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में दर्ज FIR में कहीं ये सामने नहीं आया कि आरोपी लड़के ने शादी का वादा कर लड़की से संबंध बनाए.

डीएनए हिंदी: केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने रेप के एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि शादी के बारे में जानते हुए भी लड़के के साथ संबंध बनाए रखना रेप नहीं कहलाएगा. दरअसल, 33 साल के एक शख्स ने हाईकोर्ट में याचिका की थी. याचिका में उसने बताया कि एक लड़की ने उसके खिलाफ शादी का झूठा वादा कर संबंध बनाने और बलात्कार की IPC की धारा 376 के तहत मुकदमा दर्ज कराया है, जो की गलत आरोप है.

हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए पाया कि जिस लड़के के साथ लड़की के संबंध थे, उसे पहले से पता था कि लड़का शादीशुदा है. दोनों एक दूसरे को साल 2010 से जानते थे. लेकिन 2013 में लड़के की शादी हो गई. इस बारे में लड़की को भी पता चल गया लेकिन उसके बावजूद लड़की ने उसके साथ संबंध बनाए रखे. इसके बाद लड़के का तलाक हो गया, बावजूद दोनों का संबंध बना रहा. कोर्ट ने कहा कि ऐसे में शादी का झूठा वादा करके संबंध बनाने का आरोप नहीं बनता है. इसलिए शिकायतकर्ता पर लगे रेप के आरोप को खारिज किया जाता है.

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रेप नहीं, 'लव एंड पैशन'
हाईकोर्ट ने अपने फैसले के दौरान शारीरिक संबंध बनाने को लेकर अहम टिप्पणी भी की. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में दर्ज FIR में कहीं ये सामने नहीं आया कि आरोपी लड़के ने लड़की से शादी करने का वादा किया और ना ही ये बात निकलकर आई की आरोपी ने लड़की को धोखा देने की कोशिश की है. दोनों के बीच आपसी समहति से संबंध बना था. ऐसे में इस दौरान के बने संबंध को बलात्कार के दायरे में नहीं रखा जा सकता, बल्कि ये महज 'लव एंड पैशन' (Love & Passion) की बात है.

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एक्ट्रेस उत्पीड़न मामले में कार्रवाई शुरू
वहीं, केरल हाईकोर्ट ने 2017 के अभिनेत्री उत्पीड़न मामले में निचली अदालत के न्यायाधीश के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए फिल्म निर्देशक बैजू कोट्टारक्कारा के खिलाफ अदालत की अवमानना ​​की कार्रवाई शुरू की. अभिनेत्री उत्पीड़न मामले में अभिनेता दिलीप भी आरोपी हैं. अदालत ने कहा कि आपने संबंधित न्यायाधीश के चरित्र और क्षमता पर भी सवाल उठाए. इससे मुकदमे सुनवाई पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है.

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