डीएनए हिंदी: इंडियन स्पाइनल इंजरी सेन्टर के संस्थापक चेयरमैन पद्म श्री मेजर एचपीएस अहलूवालिया का शुक्रवार शाम को 85 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. वह सेवानिवृत फौजी के अलावा एक प्रशिक्षित पर्वतारोही, लेखक और समाज सेवक थे.
सन् 1965 में महज़ 26 साल की उम्र में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाले वह भारत के शुरुआती पर्वतारोहियों में से एक थे. इसके छह महीने बाद भारत-पाक युद्ध के दौरान उनकी पोस्टिंग गुलमर्ग में हो गई थी.
यहां युद्ध के दौरान एक बंदूक की गोली उनकी रीढ़ की हड्डी में जा लगी थी, जिसकी वजह से वह व्हील चेयर पर आ गए थे. इसके बाद भी उन्होंने जीवन में कभी हार नहीं मानी. वह कहते थे कि एवरेस्ट चढ़ने से भी ज्यादा मुश्किल अपने मन के भीतर बने पहाड़ पर फतह हासिल करना. वह कहते थे कि मन में ताकत हो तो सब कुछ हासिल किया जा सकता है.
युद्ध में घायल होने के बाद एक समय ऐसा भी था जब डॉक्टरों ने कहा था कि वह नहीं रहेंगे, लेकिन वह दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़े और एक ऐसा काम किया जिसे अब उनके जाने के बाद भी दुनिया याद करेगी. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि नई दिल्ली के वसंत कुंज में इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर की स्थापना करना कहा जाएगा.
जिस वक्त उनकी रीढ़ में गोली लगी थी, उस दौरान देश में रीढ़ की बीमारियों के इलाज के लिए अच्छी सुविधा नहीं थी. इसलिए उन्हें इलाज के लिए विदेश भी भेजा गया था. बाद में उन्होंने रीढ़ की चोट व गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए इंडियन स्पाइन इंजरी सेंटर की स्थापना की. ताकि देश में ही रीढ़ की बीमारियों का विश्वस्तरीय इलाज मिल सके.
अब इस अस्पताल में रीढ़ की बीमारियों के इलाज के लिए विदेशों से भी मरीज पहुंचते हैं. मेजर अहलूवालिया खेल, पर्यावरण संरक्षण व दिव्यांगों के जीवन स्तर में सुधार के लिए भी अहम योगदान दे चुके हैं. इसके मद्देनजर केंद्र सरकार उन्हें पद्म भूषण, पद्म श्री और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है. उन्हें तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार भी मिल चुका है. मेजर अहलूवालिया अपने पीछे अपनी पत्नी भोली अहलूवालिया और बेटी सुगंध अहलूवालिया को छोड़ गए हैं.