ममता बनर्जी ने क्यों कहा- 'सोनिया गांधी से मिलना जरूरी है क्या?'

कृष्णा बाजपेई | Updated:Nov 25, 2021, 01:13 PM IST

ममता ने दिल्ली में इस बार सोनिया गांधी से मुलाकात नहीं की. ममता कांग्रेस के पैरों तले जमीन खिसकाने की कोशिश में जुट गई हैं.

डीएनए हिंदीः वो ममता बनर्जी जिन्होंने कांग्रेस से नाराज होकर पार्टी छोड़ तृणमूल कांग्रेस बनाई और वही टीएमसी आज तीसरी बार पश्चिम बंगाल में तीसरी बार विधानसभा चुनाव जीती है. इन चुनावों में जीत के साथ सभी विपक्षी दलों को ममता में पीएम मोदी से टकराने की क्षमता दिख रही है. ऐसे में ममता  कांग्रेस के लिए चुनौती बन गई है. संसद सत्र से पहले दिल्ली पहुंची ममता बनर्जी से जब सोनिया गांधी को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने प्रश्न उठा दिया कि सोनिया गांधी से मिलना जरूरी है क्या ? उनका ये सवाल कांग्रेस के खिलाफ उनकी खीझ का संकेत है जो कि सोनिया की नेतृत्व क्षमता पर भी प्रश्न खड़े कर रहा है. 

नहीं मांगा था समय 

संसद के शीतकालीन सत्र से ठीक पहले ममता बनर्जी दिल्ली में हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात कर राज्य में कोविड वैक्सीन एवं बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र से संबंधित मुद्दों पर बातचीन की है. इसके विपरीत संभावनाएं थीं कि ममता की मुलाकात कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्षा सोनिया गांधी से भी हो सकती है. इसको लेकर जब ममता से सवाल पूछा गया तो उन्होंने आक्रामक तेवर दिखाते हुए कहा कि उन्होंने सोनिया से मिलने के लिए समय ही नहीं मांगा था.

मिलना जरूरी है क्या? 

ममता बनर्जी के तेवर अब कांग्रेस के लिए विपक्षी एकता के मुद्दे पर चुनौती खड़ी कर सकते हैं. सोनिया से मिलने के सवाल पर उन्होंने कहा, "मैं हर बार सोनिया गांधी ने क्यों मिलूं, हमें हर बार सोनिया से क्यों मिलना चाहिए? यह संवैधानिक रूप से अनिवार्य नहीं है."वहीं अपनी आक्रामकता को कंट्रोल करते हुए उन्होंने कहा, "अभी सभी नेतात पंजाब के चुनाव में व्यस्त हैं. काम पहले है, इसलिए सभी से मिलने की कोई जरूरत नहीं है।'

सोनिया की क्षमता पर सवाल 

सोनिया गांधी से मुलाकात को लेकर आक्रामकता दिखा कर ममता ने निश्चित ही सोनिया की नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े किए हैं. साथ ही ये भी संकेत मिलता है कि ममता सोनिया की अध्यक्षता वाले विपक्षी खेमें के ध्वज तले मोदी सरकार का मुकाबला करने को असहमत हो सकती हैं. दूसरी ओर एक खास बात ये भी है कि ममता तेजी के साथ कांग्रेस के पैरों से जमीन खींच रही हैं. हरियाणा में अशोक तंवर को अपनी पार्टी में शामिल करना इसका सटीक उदाहरण है. 

ममता एनसीपी, शिवसेना, आप, सपा, बसपा, डीएमके, जेडीएस, आरजेडी, आरएलडी, टीआरएस, टीडीपी, और बीजेडी जैसे दलों के साथ तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद में जुटी हुई हैं. वहीं जहां कांग्रेस एवं भाजपा की सीधी लड़ाई है, वहां ममता स्वयं चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं. असम, त्रिपुरा, गोवा और हरियाणा में टीएमसी का संगठन तैयार करने के लिए हो रहे प्रयास इसका उदाहरण हैं. खास बात ये है कि ममता टीएमसी का विस्तार करने के लिए भी कांग्रेस के नेताओं को टीएमसी में ज्वाइन करा रही हैं और उन्हें राज्य का कार्यभार सौंप रही हैं. 

अलग-थलग पड़ेगी पार्टी

ममता का ये रुख सोनिया गांधी की कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है क्योंकि ममता दीदी यदि समूचे राष्ट्र की क्षेत्रीय पार्टियों को एकत्र करने में कामयाब होती हैं तो निश्चित ही ममता का तीसरा मोर्चा कांग्रेस से अधिक मजबूत हो सकता है. वहीं इस एकता के चलते ममता को कांग्रेस के समर्थन की आवश्यकता भी महसूस नहीं होगी. अगर ममता अपने ध्वज तले एक राष्ट्रीय मोर्चा बनाने में समर्थ हो गईं तो निश्चित ही कांग्रेस का अलग-थलग पड़ सकती है.
 

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