किताब में बताए जा रहे हैं दहेज के फायदे, Twitter पर छिड़ गई बहस

| Updated: Apr 05, 2022, 11:28 AM IST

विवादित किताब में कहा गया है कि फर्नीचर, रेफ्रिजरेटर और वाहनों जैसी चीजों के साथ 'दहेज नया घर स्थापित करने में सहायक है.'

डीएनए हिंदी: दहेज समाज की एक कुप्रथा है. एक तरफ जहां समाज को इससे आजाद कराने की कवायद तेज है वहीं दूसरी तरफ किताबों में इसके फायदे बताए जा रहे हैं. सोशल मीडिया पर किताब की एक तस्वीर वायरल हो रही है. इस तस्वीर में आप देख सकते हैं कि किताब में दहेज की खूबियां बताई जा रही है. हैरानी की बात यह है कि इस किताब का विषय यह नहीं है. बल्कि यह किताब तो भारतीय नर्सिंग परिषद (Indian Nursing Council) के सिलेबस में शामिल है. अब इस किताब को लेकर सोशल मीडिया पर खूब हंगामा हो रहा है. 

राज्य सभा सांसद ने शेयर की किताब की फोटो

इस किताब में एक सब टाइटल है जिस वजह से सारा विवाद शुरू हुआ है. इसका नाम है 'दहेज के फायदे' जिसकी लेखिका टीके इंद्राणी हैं. यह तस्वीर इंटरनेट पर वायरल है और इसे शेयर करने वालों में  शिवसेना नेता और राज्य सभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी भी शामिल हैं. उन्होंने शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से ऐसी किताबों को सिलेबस से हटाने का आग्रह किया और कहा कि हमारे सिलेबस में ऐसे टॉपिक का होना 'शर्म की बात है'.

किताब में बताए गए दहेज के ये फायदे

विवादित किताब में कहा गया है कि फर्नीचर, रेफ्रिजरेटर और वाहनों जैसी चीजों के साथ 'दहेज नया घर स्थापित करने में सहायक है.' इसके बाद दहेज में माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा पाने वाली लड़कियों को प्रथा का विरोध करने वालीं लड़कियों के रूप में बताया गया है. गौरतलब है कि यह किताब उसी देश के सिलेबस में पढ़ाई जा रही है जहां यह कई सालों से गैरकानूनी है. हमारे समाज में दहेज की मांग को लेकर महिलाओं को मानसिक रूप प्रताड़ित करने, शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने, मारने और आत्महत्या के लिए प्रेरित करने की खबरें आज भी आती रहती हैं.

इस किताब में लेखक का कहना है कि दहेज प्रथा का एक 'अप्रत्यक्ष फायदा' यह है कि माता-पिता ने अब अपनी लड़कियों को शिक्षित करना शुरू कर दिया है ताकि उन्हें कम दहेज देना पड़े. पेज के आखिर पॉइंट में लिखा है कि दहेज प्रथा 'बदसूरत दिखने वाली लड़कियों' की शादी कराने में मदद कर सकती है. ट्विटर यूजर्स ने किताब की जमकर आलोचना की है. लोगों ने इसके अंश शेयर करते हुए कहा है कि यह चौंकाने वाली बात है कि ऐसी किताबें कॉलेज लेबल के स्टूडेंट्स के सिलेबस का हिस्सा हैं.

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