डीएनए हिंदी: Supreme Court News- चुनावों से पहले लुभावनी घोषणाएं करने की परंपरा हमारे देश में नई नहीं है. फ्री बिजली, कर्ज माफी जैसी मुफ्त की रेवड़ी (Election Freebies) बांटने जैसी घोषणाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले ही राजनीतिक दलों को ताकीद कर चुका है. इसके बावजूद यह चलन नहीं थम रहा है. अब राजस्थान और मध्य प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनावों से पहले भी राजनीतिक दलों में 'फ्री' के नाम पर वोटर्स को लुभाने की होड़ लगी हुई है. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट नाराज हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले में चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया. साथ ही केंद्र सरकार, मध्य प्रदेश सरकार और राजस्थान सरकार को भी नोटिस दिया गया है. इन सभी से 4 सप्ताह के अंदर जवाब मांगा गया है.
मध्य प्रदेश और राजस्थान में सीएम घोषणाओं को दी गई है चुनौती
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट बेंच उस जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों द्वारा 'चुनावी वादे' के तौर पर नकद सहायता प्रस्तावों की घोषणा करने को चुनौती दी गई है. चीफ जस्टिस ने इस याचिका के साथ ही उन सभी याचिकाओं को भी जोड़ने का आदेश रजिस्ट्री को दिया है, जिनमें चुनावी वादे के नाम पर लुभावनी घोषणाएं करने को चुनौती दी गई है. अब इन सभी याचिकाओं की सुनवाई एक साथ होगी. जनवरी 2022 में भाजपा नेता व वकील अश्विनी उपाध्याय ने चुनावी रेवड़ी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी. उन्होंने इस चलन पर रोक लगाने की अपील की थी. उपाध्याय ने ऐसा करने वाले दलों की मान्यता रद्द करने का निर्देश चुनाव आयोग को देने की मांग टॉप कोर्ट से की थी. यह याचिका अगस्त 2022 में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने सुनी थी. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट से Freebies की परिभाषा तय करने की अपील की थी.
अब याचिका में उठाया गया है एमपी और राजस्थान की अर्थव्यवस्था का मुद्दा
सुप्रीम कोर्ट में एमपी और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों की घोषणाओं को भट्टूलाल जैन ने चुनौती दी है. उनका कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के हिसाब से इन दोनों राज्यों की वित्तीय हालत बेहद खराब है. इसके बावजूद दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री चुनावों से पहले नकद लाभ देने वाली घोषणाएं कर रहे हैं. मध्य प्रदेश को पहले ही कर्ज लेने के लिए अपनी संपत्ति गिरवी रखनी पड़ी है. ऐसे में ये नए वादे सरकार को डिफॉल्टर बना सकते हैं.
चीफ जस्टिस बोले, 'क्या कंट्रोल कर सकते हैं वादे'
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने जैन के वकील से पूछा कि चुनावों से पहले वादे करने की परंपरा है. क्या उन्हें कंट्रोल किया जा सकता है? वकील ने कहा कि सार्वजनिक हित के लिए एक रेखा खींचनी ही होगा. चुनावों से छह महीने पहले नकदी बांटना शुरू हो जाता है, जिसका बोझ टैक्सपेयर्स पर पड़ता है. इस तर्क के बाद चीफ जस्टिस ने इस मामले में सुनवाई की मंजूरी दे दी. हालांकि उन्होंने याचिकाकर्ताओं को मुकदमे में मुख्यमंत्रियों के बजाय राज्य सरकारों को पार्टी बनाने का निर्देश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने पहले जताई थी विस्तृत सुनवाई की जरूरत
अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर अगस्त 2022 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुआई वाली तीन सदस्यीय बेंच ने सुनवाई की थी. उस महीने में कई सुनवाई इस मुद्दे पर की गई थी. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गरीबों की भलाई और अर्थव्यवस्था पर असर के बीच बैलेंस बनाने की जरूरत बताई थी. कोर्ट ने फ्रीबीज और वेलफेयर वर्क के बीच अंतर बताया था.
कोर्ट ने फ्रीबीज के मुद्दे पर समिति गठित करने की जरूरत बताई थी, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के साथ ही नीति आयोग, फाइनेंस कमीशन, चुनाव आयोग, RBI, CAG और राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि शामिल करने का निर्देश दिया था. कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी सर्वदलीय बैठक बुलाकर राजनीतिक दलों द्वारा खुद ही फ्रीबीज की सीमा तय करने के लिए भी कहा था. चुनाव आयोग ने फ्रीबीज को अपने दायरे से बाहर की बात बताया था और सुप्रीम कोर्ट से ही इसकी परिभाषा तय करने के लिए कहा था. इस पर तत्कालीन चीफ जस्टिस एनवी रमना ने केस में विस्तृत सुनवाई की जरूरत कहते हुए नई बेंच को रेफर कर दिया था.
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