आपकी गाढ़ी कमाई से मजाक तो नहीं कर रहा आपका बच्चा? National Achievement Survey में हुआ खुलासा

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: May 28, 2022, 10:31 AM IST

नेशनल अचीवमेंट सर्वे 2021 के मुताबिक, आपका बच्चा जैसे-जैसे एक-एक कक्षा की सीढ़ी को पार करता है, उसकी परफॉर्मेंस बिगड़ती जाती है.

डीएनए हिंदी: वक्त बीतने के साथ-साथ पढ़ाई का तौर तरीका भी बदल रहा है. हालात अब पहले से ज्यादा सहज हो रहे हैं. ऐसे में हर वर्ग और हर तबके के मां-बाप के लिए बच्चों की पढ़ाई प्राथमिकता बनती जा रही है. भले ही मां-बाप को खुद पढ़ाई के वो संसाधन और माहौल न मिल पाया हो लेकिन अब वो अपने बच्चों को बेहतर से बेहतर शैक्षणिक संस्थान और लाइफ स्टाइल मुहैया कराना चाहते हैं. इसके लिए वे अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई खर्च करने में जरा भी संकोच नहीं करते हैं लेकिन क्या बच्चे अपने मां-बाप के इस समझौते की कीमत को समझ रहे हैं? 

दरअसल, साक्षरता विभाग की ओर से देश भर के स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई को लेकर एक सर्वे किया गया. इसके पीछे की वजह तीसरी, पांचवी, आठवीं और दसवीं क्लास के बच्चों और शिक्षकों के पढ़ने-पढ़ाने की क्षमता समेत स्कूल की शिक्षा प्रणाली का मूल्यांकन करना था. इस शिक्षा सर्वे में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के 1,18,274 स्कूलों के 34,01,158 लाख छात्रों और 5,26,824 टीचर्स को शामिल किया गया.

सर्वे के नतजे चिंताजनक थे. नेशनल अचीवमेंट सर्वे 2021 (National Achievement Survey-2021) के मुताबिक, आपका बच्चा जैसे-जैसे एक-एक कक्षा की सीढ़ी को पार करता है, उसकी परफॉर्मेंस बिगड़ती जाती है.

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बीते साल यानी 2021 नवंबर में किए गए इस नेशनल सर्वे के नतीजे बताते हैं कि छात्रों की एवरेज परफॉर्मेंस लगातार बिगड़ती चली गई. तीसरी क्लास के बच्चे की लर्निंग स्किल दसवीं तक पहुंचते-पहुंतचे काफी घट चुकी थी. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की तरफ से जारी सर्वे के नतीजे सभी पेरेंट्स और टीचर्स के लिए चिंता का विषय हैं.

इस सर्वे को आसान भाषा में समझें तो मान लीजिए कि जिस बच्चे के तीसरी क्लास के मैथ्स में एवरेज नंबर 57 प्रतिशत थे, वो पांचवीं में 44 प्रतिशत, आठवीं में 36 प्रतिशत तो दसवीं 32 प्रतिशत तक घटते चले गए. इतना ही नहीं, साल 2017 में कराए गए राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण के मुकाबले 2021 के सर्वे में बच्चों का प्रदर्शन ज्यादा निराशा जनक है. बता दें कि जहां मैथ्स का एवरेज स्कोर 2017 में 64 फीसदी था, अब वो घटकर महज 57 फीसदी रह गया है.

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कोरोना महामारी कितना बड़ा फैक्टर?  
सर्वे के मुताबिक, स्कूल में पढ़ने वाले 25 फीसदी बच्चों का मानना है कि कोरोना के दौरान पढ़ाई में उन्हे पेरेंट्स से सहायता नहीं मिली. वहीं, 24 फीसदी बच्चों के घर पर डिजिटल डिवाइस की सुविधा नहीं है जो कि कोविड के दौरान उनके लिए सबसे बड़ा नुकसान साबित हुआ. 38 फीसदी बच्चों ने माना कि कोविड महामारी के दौरान पढ़ाई में उन्हे काफी मुश्किलें हुईं तो 80 फीसदी बच्चों के मुताबिक, स्कूल में दोस्तों से मिलने वाली मदद के चलते चीजों को बहुत बेहतर तरीके से सीख पाए.

सर्वे में पंजाब का प्रदर्शन अच्छा
इस सर्वे में पंजाब का प्रदर्शन उभर कर सामने आया है. वहां के 97 प्रतिशत टीचर्स ने अपनी जॉब को लेकर संतुष्टि जताई. यहां दसवीं क्लास का एवरेज 46 पर्सेंट है वहीं नेशनल एवरेज 35 पर्सेंट है.

लड़कों को पछाड़ लड़कियां निकलीं आगे
लड़कियों को लेकर पिछड़ी धारणा रखने वालों की आंखे इस सर्वे के परिणाम से खुल जाएंगी. सर्वे के लगभग सभी स्तर पर लड़कियां, लड़कों से बहुत आगे हैं. इंग्लिश और साइंस जैसे सब्जेक्ट में उन्होंने लड़कों को पीछे छोड़ दिया है. जहां तीसरी क्लास की भाषा परीक्षा में लड़कियों के राष्ट्रीय औसत अंक 323 रहे तो वहीं लड़कों के 318 थे. 10वीं क्लास की इंग्लिश में लड़कियों के औसत अंक 294 तो लड़कों के 288 अंक ही रहे.

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शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ाई का अंतर हुआ कम
सर्वे के नतीजों के मुताबिक, 2021 में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच जो पढ़ाई का अंतर पहले बहुत ज्यादा था अब वो तुलनात्मक रूप से कम हुआ है. हालांकि चिंता का विषय यह है कि इंग्लिश में गांव के बच्चों का प्रदर्शन शहर की तुलना में अभी भी कमजोर ही है.

सर्वे के हिसाब से स्कूल जाने वाले 18 फीसद बच्चों की मां की साक्षरता न के बराबर है. वहीं, 7 फीसदी की मां साक्षर तो हैं लेकिन कभी स्कूल नहीं गईं. सर्वे में 96 फीसदी बच्चों ने स्कूल जाना पसंद न करने की बात कही तो 94 फीसदी बच्चों ने बताया कि वो खुद को स्कूल में सुरक्षित महसूस करते हैं.

(रिपोर्ट- दीक्षा पांडेय)

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