डीएनए हिंदीः आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर भारत मुख्य तौर पर तीन मोर्चों पर आंतकवादी और उग्रवादी घटनाओं से जूझ रहा है. जहां देश की उत्तर में जम्मू और कश्मीर (J&K) में सीमा पार आतंकवाद कई दशकों से भारत के लिए समस्या बना हुआ है.
पूर्वोत्तर भारत में विद्रोह जनित हिंसा और मध्य भारत में नक्सली हिंसा का शिकार रहा है. आइए जानते हैं कि इतना सालों में मोदी सरकार (BJP) के आतंरिक सुरक्षा की इस चुनौती से निपटने में कितनी सफल रही है ?
J&K से 370 हटने के बाद भी अपेक्षित शांति नहीं
जम्मू-कश्मीर में साल 2002 से साल 2012 तक आतंकवाद की घटनाओं में कमी आई थी. लेकिन साल 2012 के बाद से हालात और तनावपूर्ण होते गए. साल 2014 से साल 2020 तक जम्मू कश्मीर में कुल 1912 लोगों की जान गई है. जिसमें 481 सुरक्षा बल और 215 नागरिक भी शामिल हैं.
साल 2014 में जहां 110 आतंकियों के साथ कुल 185 जानें गई थी. वहीं साल 2018 में कुल हताहत का आकंड़ा दोगुना बढ़कर 387 मौतों तक पहुंच गया. हालांकि साल 2019 और 2020 में इसमें मामूली कमी आई है. मगर धारा 370 के हटने के बाद अभी वहां पर अपेक्षित शांति स्थापित नहीं हो पाई है.
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वामपंथी हिंसा में कमी, पर अभी खतरा बरकरार
देश को सबसे ज्यादा आतंरिक खतरा वामपंथी उग्रवाद से है. हालांकि वामपंथी उग्रवाद हिंसा के भौगोलिक प्रसार में भी काफी कमी आई है. जहां साल 2013 में वामपंथी हिंसा 10 राज्यों के 76 जिलों के 328 पुलिस स्टेशन क्षेत्र में फैला हुआ था. वहीं साल 2020 में अब ये 9 राज्यों के 53 जिलों के 226 पुलिस स्टेशन क्षेत्र तक सीमित हो गई है. लगभग 30 जिलों में कुल हिंसा के 88 प्रतिशत घटनाएं घटी हैं. अगर हिंसां की घटनाओं की बात करें तो साल 2011 में 1760 घटनाओं में 611 लोगों की मौत हुई, वहीं साल 2020 तक सिलसिलेवार कमी देखी गई , जहां देश ने 670 घटनाओं में कुल 263 जानें खोई हैं.
पूर्वोत्तर भारत में कम हुआ उग्रवाद
अगर सबसे ज्यादा सफलता की बात करें तो पूर्वोत्तर भारत में देश को बेहतर परिणाम मिले हैं. नागा हिंसा को छोड़ दे बाकी ज्यादातर विद्रोही गुटो शांति की राह पर हैं. साल 2014 में जहां पूर्वोत्तर भारत विद्रोह में हिंसा की कुल 824 घटनाओं में 212 नागरिकों समेत कुल 413 लोगों की जान गई थी. साल 2020 तक आते आते कुल घटनाओं में 80 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई. वहीं मौतों की संख्या में और ज्यादा कमी आई है. साल 2020 में हिंसा की कुल 162 घटनाओँ मे कुल 28 लोगों की जान गई है जिसमें 21 उग्रवादी थे.
क्यों मनाया जाता है आतंकवाद विरोधी दिवस ?
21 मई 1991 को देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में हत्या कर दी गई थी. उनकी हत्या के बाद ही 21 मई को आतंकवाद विरोधी दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया गया था. इस वर्ष राजीव गांधी की 31 वीं पुण्यतिथि मनाई गई है.
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