नई संसद के उद्घाटन का बायकॉट कर रहा विपक्ष, NDA ने सुनाई खरी खोटी, 4 विरोधी दलों ने दिया साथ
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NDA गठबंधन का कहना है कि विपक्षी दलों का यह फैसला संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है. लोग स्वस्थ्य लोकतंत्र की संकल्पना को ही खारिज कर रहे हैं. उद्घाटन समारोह में हिस्सा न लेने का फैसला, गलत है.
डीएनए हिंदी: संसद के नए भवन के उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार को लेकर विपक्षी दलों परसत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए ने कटाक्ष किया है. एनडीए ने कहा है कि विपक्षी दलों के बहिष्कार का फैसला निंदनीय है. यह महज अपमानजनक फैसला नहीं है, बल्कि इस महान देश के लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक मान्यताओं पर हमला है. एनडीए के घटक दलों ने विपक्षी दलों से बहिष्कार के अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने का भी अनुरोध किया. एनडीए दलों का कहना है कि विपक्ष सैद्धांतिक तौर पर बेहद गलत कर रहा है.
एनडीए के नेताओं का कहना है कि विपक्ष को अपने फैसले पर फिर से विचार करना चाहिए. एनडीए ने संयुक्त रूप से एक बयान जारी कर कहा है, 'हम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से जुड़े दल 19 विपक्षी दलों द्वारा नए संसद भवन के उद्घाटन के विरोध के फैसले की घोर निंदा करते हैं. सर्वविदित है कि 28 मई 2023 को नए संसद भवन का उद्घाटन होना तय हुआ है. विपक्ष का यह महज अपमानजनक फैसला नहीं है, बल्कि इस महान देश के लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक मान्यताओं पर हमला है.'
4 विरोधियों दलों ने भी दिया साथ
भले ही ज्यादातर विपक्षी दलों ने उद्घाटन समारोह से किनारा किया है लेकिन कुछ विरोधियों ने साथ भी दिया है. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की अगुवाई वाली पार्टी बीजू जनता दल ने कहा है कि उनके नेता समारोह का हिस्सा होंगे. आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी की पार्टी YSRCP भी समारोह में शामिल होगी. अकाली दल और बसपा जैसी पार्टियां भी समारोह में हिस्सा ले रही हैं.
'संसद पवित्र संस्था, लोकतांत्रिक मर्यादा का हनन कर रहा विपक्ष'
NDA की ओर से कहा गया है कि लोकतंत्र में संसद, एक पवित्र संस्था है, लोकतंत्र के दिल की जीवंत धड़कन है. यहीं देश की उन नीतियों पर फैसले होते हैं, जिनसे लोगों के जीवन में बदलाव आता है. मुल्क की नियति बदलती है. ऐसी महान संस्था के प्रति विपक्षी दलों द्वारा यह अनादर और अपमान, महज बौद्धिक दिवालियापन नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की मूल आत्मा और मर्यादा पर कुठाराघात है.
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एनडीए ने इस फैसले पर अफसोस जताते हुए कहा कि तिरस्कार और बहिष्कार की यह पहली घटना नहीं है. पिछले नौ सालों में देखें, तो इन विपक्षी दलों ने बार-बार संसदीय प्रक्रियाओं नियमों की अवमानना की है. सत्रों को बाधित किया है. महत्वपूर्ण विधायी कामों के दौरान सदन का बहिष्कार किया है और अब बहिष्कार का यह फैसला लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की खुलेआम धज्जी उड़ाने की इसी कड़ी में आत्मघाती फैसला है.
'विपक्ष की संसदीय मर्यादा पाखंड'
एनडीए ने आरोप लगाया कि विपक्ष का संसदीय व्यवस्था, मर्यादा और लोकतांत्रिक शुचिता के प्रति यह तिरस्कार पूर्ण रवैया लगातार बढ़ रहा है. नकारात्मक फैसला और कदमों की इस स्थिति में विपक्ष की संसदीय मर्यादा और संवैधानिक मूल्यों के प्रति उपदेशात्मक भूमिका, हास्यास्पद और पाखंड है. यह लोक स्मृति में दर्ज है कि इन विपक्षी दलों ने जीएसटी के विशेष सत्र का बहिष्कार किया था, जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने की थी. उन्हें भारत रत्न दिए जाने के समारोह का भी बहिष्कार इन्हीं तत्वों ने किया. यहां तक कि रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर सामान्य शिष्टाचार और औपचारिकता निभाने में भी इन दलों को विलंब हुआ.
एनडीए की ओर से कहा गया है कि हमारे देश की वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के प्रति इनका दिखाया गया अनादर राजनीतिक मर्यादा के निम्नस्तर पर पहुंच गया. उनकी उम्मीदवारी का घोर विरोध न केवल उनका अपमान था, बल्कि हमारे देश की अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का सीधा अपमान था.
इमरजेंसी को लेकर कांग्रेस पर सियासी हमला
इमरजेंसी को याद करते हुए बयान में कहा गया है, 'हम यह नहीं भूल सकते कि संसदीय लोकतंत्र के प्रति विपक्ष के इस व्यवहार तिरस्कार की जड़ें इतिहास में गहरी हैं. इन्हीं पार्टियों ने आपातकाल लागू किया. भारत के इतिहास की वह भयावह अवधि, जब नागरिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को निलंबित कर दिया गया. अनुच्छेद 356 का लगातार आदतन दुरुपयोग, संवैधानिक सिद्धांतों के प्रति विपक्ष की घोर अवहेलना व अवमानना को उजागर व प्रमाणित करता है.'
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विपक्ष पर संसद से भागने का आरोप लगाते हुए कहा गया है कि विपक्ष का अर्ध राजशाही सरकार के प्रति झुकाव और परिवारों द्वारा संचालित दलों के लिए प्राथमिकता, जीवंत लोकतंत्र और देश के लोकाचार के खिलाफ है और जीवंत लोकतंत्र के प्रति इनके घृणा के भाव को दर्शाता है.
विपक्षी दलों की राष्ट्रीय एकता पर एनडीए ने उठाए सवाल
विपक्षी दलों की एकता पर सवाल उठाते हुए एनडीए ने कहा है कि इनकी एकता, राष्ट्रीय विकास के लिए एक साझा दृष्टि नहीं, बल्कि वोट बैंक की राजनीति के लिए साझा अभ्यास है और भ्रष्टाचार के प्रति स्पष्ट रुझान व झुकाव है. ऐसी पार्टियां कभी भी भारतीय लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकती हैं. ये विपक्षी पार्टियां जो कर रही हैं, वह महात्मा गांधी, डॉ. बाबा साहब आंबेडकर, सरदार पटेल और देश की ईमानदारी से सेवा करनेवाले ऐसे अनगिनत अन्य लोगों के आदर्शो का अपमान है, जिन्होंने समर्पण - प्रतिबद्धता से देश निर्माण में जीवन लगा दिया. विपक्षी दलों के ये काम उन महान नेताओं के मूल्यों-योगदान को कलंकित करते हैं, जिन्होंने हमारे लोकतंत्र को स्थापित करने के लिए अथक परिश्रम किया.
राजनीतिक लाभ ढूंढ रहा है विपक्ष
एनडीए ने अपने बयान में कहा, 'हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं. यह वक्त हमें बांटने का नहीं, बल्कि एकता और हमारे लोगों के कल्याण के लिए एक साझा प्रतिबद्धता दिखाने का अवसर है. हम विपक्षी दलों से अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करते हैं. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो भारत के 140 करोड़ लोग, भारतीय लोकतंत्र और उनके चुने हुए प्रतिनिधियों के प्रति विपक्ष के इस घोर अपमान को नहीं भूलेंगे. विपक्ष का यह फैसला और कदम, इतिहास के पन्नों में गूंजेंगे. उनकी विरासत पर लंबी काली छाया रहेगी. हम उनसे देश के बारे में सोचने का आग्रह करते हैं, न कि निजी राजनीतिक लाभ के बारे में.'
विपक्ष पर भड़के हैं NDA के कौन-कौन से दल?
बीजेपी, शिवसेना (शिंदे गुट), नेशनल पीपल्स पार्टी, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, मिजो नेशनल फ्रंट, जननायक जनता पार्टी, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी, अपना दल, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, तमिल मनीला कांग्रेस, एआईएडीएमके, इंडिया मक्कल कलवी मुनेत्र कातची और आजसू पार्टी जैसे राजनीतिक दलों ने संयुक्त बयान जारी कर विपक्ष पर हमला बोला है. (इनपुट: IANS)
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