डीएनए हिंदी: आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (EWS) के लिए शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी ने कहा कि संविधान में किए जाने वाले किसी संशोधन से उसकी मूल संरचना का उल्लंघन होता है या नहीं यह तय करने के लिए कोई ‘फॉर्मूला’ या ‘थ्योरम’ नहीं हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने सोमवार को 10 प्रतिशत EWS आरक्षण को बरकरार रखा है.
इस आरक्षण में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की कोई हिस्सेदारी नहीं होगी. पीठ ने 103वें संविधान संशोधन को बरकरार रखते हुए अपने 155 पन्ने के फैसले में कहा, ‘यह संदेह से परे है कि जिस संशोधन पर विचार किया जा रहा है उसके खिलाफ मूल संरचना को तलवार बनाकर इस्तेमाल करना और (संविधान की) प्रस्तावना और राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में निहित आर्थिक न्याय करने के राष्ट्र के प्रयास को खारिज करना और अनुच्छेद 38, 39 वा 46 के प्रावधानों को नकारना संभव नहीं है.’
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जस्टिस माहेश्वरी ने कहा, ‘असमानता को समाप्त करने की यह प्रक्रिया, प्राकृतिक रूप से तर्कपूर्ण श्रेणीबद्धता की बात करती है ताकि सबके साथ समान व्यवहार हो और जो असमान हैं उनकी जरुरत के मुताबिक उनके साथ अलग व्यवहार किया जाए.’ सुप्रीम कोर्ट ने 40 याचिकाओं पर सुनवाई की और उनमें से ज्यादातर में जनहित आंदोलन द्वारा 2019 में दायर याचिका सहित 103वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती दी गई थी.
CJI ने ईडब्ल्यूएस का किया विरोध
ईडब्ल्यूएस पर एक फैसले में जहां जस्टिस माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम. त्रिपाठी और जस्टिस जे. बी. पारदीवाला ने आरक्षण को बनाए रखने का फैसला लिया. वहीं, भारत के चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति एस. रविन्द्र भट ने इसका विरोध किया. न्यायमूर्ति पारदीवाला ने फैसले के अपने हिस्से में कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए यह आरक्षण ‘ साध्य नहीं, बल्कि अपने लक्ष्य को पाने का साधन है और इसे निजी हित नहीं बनने दिया जाना चाहिए.
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डॉक्टर भीम राव आंबेडकर की बात दोहराते हुए जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि बाबा साहेब आंबेडकर का विचार महज 10 साल के लिए आरक्षण लागू करके सामाजिक सौहार्द लाने का था. लेकिन यह पिछले सात दशकों से जारी है. 117 पन्नों के फैसले में जस्टिस ने कहा कि आरक्षण अनंतकाल तक जारी नहीं रहना चाहिए और अगर ऐसा होता है तो वह ‘निजी स्वार्थ’ है. न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा कि विकास और शिक्षा के प्रसार से विभिन्न तबकों के बीच की दूरियां काफी हद तक कम हो गई हैं.
(PTI इनपुट के साथ)
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