UV Light से गलेगा प्लास्टिक का कचरा, रिसर्च में सामने आए राहत देने वाले नतीजे

आरती राय | Updated:May 27, 2022, 08:23 PM IST

दुनिया के लिए प्लास्टिक का कचरा एक बड़ी समस्या बना हुआ है लेकिन इसे खत्म करने के लिए अब UV Light से जुड़ी एक तकनीक इजात की गई है.

डीएनए हिंदी: हमारे रोजाना के जीवन में प्लास्टिक का उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है. इससे होने वाले प्रदूषण से हम सभी वाकिफ हैं लेकिन फिर भी इसके इस्तेमाल को रोकना फिलहाल तो संभव नहीं दिखता है.प्लास्टिक को बायोडिग्रेडेबल बनाने के लिए दुनियाभर में कई प्रयोग जारी हैं.कई ऐसे प्लास्टिक हैं जिन्हें खाद बनाने के लिए कुछ औद्योगिक परिस्थितियों की जरुरत होती है जो कि हमेशा संभव नहीं हैं. ऐसे में बाथ विश्वविद्यालय की नई खोज ने केवल यूवी लाइट का उपयोग करके प्लास्टिक को गलाने का एक आसान तरीका खोज लिया है.

क्या है बाथ विश्वविद्यालय की नई रिसर्च में

बाथ विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर सस्टेनेबल एंड सर्कुलर टेक्नोलॉजीज (CSCT) के वैज्ञानिकों का दावा है कि ऐसे छोटे कण जो धरती से कभी नहीं हो पाते हैं उन्हें UV किरणों के माध्यम से पूरी तरह ख़त्म किया जा सकता है. वैज्ञानिकों की टीम ने अपने शोध के दौरान पाया कि वे चुटकी भर चीनी की मदद से अलग-अलग  मोलेक्युल्स  से प्लास्टिक की डिग्रेडिबिलिटी  को कम कर सकते हैं. कम से कम तीन प्रतिशत चीनी के पॉलीमर की अलग  इकाइयों को अगर PLA polymers (Polylactic acid) के साथ मिला कर  UV की रोशनी के संपर्क में लाएं तो छह घंटे के भीतर इन पॉलीमर्स को  40% तक गलाया जा सकता है.

कितना प्लास्टिक जमा है धरती पर 

दुनिया में पहला सिंथेटिक प्लास्टिक बैकेलाइट 1907 में बनाया गया था. इस आविष्कार को शुरूआती दौर में  ज़्यादा पहचान नहीं मिली लेकिन सस्ती कीमत और  मज़बूती की वजह से  दुनियाभर में 1950 के बाद के 65 सालों में प्लास्टिक का सालाना  उत्पादन 2015 तक  200 गुना बढ़कर 381 मिलियन टन हो गया. आकड़ों के मुताबिक धरती पर  2021 तक लगभग 8.3 बिलियन टन प्लास्टिक जमा हो गया है. इसमें से  6.3 बिलियन टन यानी 80 फीसदी कचरा है.

हमारे शरीर में घुल रहा है प्लास्टिक 

प्लास्टिक हमारी प्लेट से लेकर सांसो तक में पहुंच चुका है. Dalberg और  University of Newcastle in Australia की 2019 में जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक एक आदमी  हर हफ्ते  औसतन एक Lego brick (बच्चो के खेलने में इस्तेमाल लाए जाने वाली ब्रिक ) के बराबर प्लास्टिक अपने शरीर के अंदर डाल लेता है. हर साल एक इंसान औसतन प्लास्टिक के 1,00,000 छोटे टुकड़े किसी न किसी माध्यम निगल लेता है. इतना ही नहीं प्लास्टिक पॉलीमर्स हमारे खून तक में घुल चुके हैं. 

बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का सच 

हाल ही में चीन में फेरमेंटशन से लैक्टिक एसिड का उपयोग करके बनाया गया पीएलए (पॉलीलैक्टिक एसिड) अब व्यापक रूप से कच्चे तेल के उत्पादों से प्राप्त प्लास्टिक को गलाने के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है . कप टीबैग्स से लेकर 3डी प्रिंटिंग और पैकेजिंग तक में इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक के लिए ये तकनीक उपयोगी साबित हुई है लेकिन अभी भी विज्ञान कोई ऐसी तकनीक नहीं खोज सका था जिससे प्लास्टिक को पूरी तरह से नष्ट कर पाए. 

जिस प्लास्टिक को हम अकसर बायोडिग्रेडेबल कहते हैं वो प्राकृतिक वातावरण में घुल तो जाता है लेकिन पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाता. उदाहरण के तौर पर कोई भी पॉलीमर मिट्टी या समुद्री जल या  ज़्यादा तापमान में नष्ट तो हो जाती है पर इसके छोटे कण मिटटी में या पानी में मिलकर भी पूरी तरह से खत्म नहीं होते हैं जो लोगों के लिए खतरनाक हैं. 

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नई तकनीक से कम होगा प्लास्टिक का कचरा

रासायनिक वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि आने वाले समय में प्लास्टिक उद्योग को प्लास्टिक कचरे  और अधिक सड़ने योग्य बनाने में मदद करने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल करना होगा जो कि बहुत कारगर साबित होगा. रॉयल सोसाइटी यूनिवर्सिटी रिसर्च फेलो, डॉ. एंटोनी बुचार्ड का मानना है "प्राकृतिक वातावरण   प्लास्टिक को और अधिक बायोडिग्रेडेबल बना सकता है.डॉ एंटोनी के अनुसार  प्लास्टिक उद्योग द्वारा इस तकनीक का इस्तेमाल बहुत कारगर साबित हो सकता है.

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