Ranchi: बिरसा मुंडा जेल में कैदियों ने बनाए मास्क, कमाए लाखों रुपये

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Jan 03, 2022, 06:11 PM IST

बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल के जेलर मोहम्मद नसीम का कहना है कि यहां के कैदियों द्वारा बनाया गया मास्क लोगों को खूब पसंद आया.

डीएनए हिंदी: रांची के होटवार स्थित बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल के कैदियों ने कोरोना (Coronavirus) काल के दौरान बड़े पैमाने पर मास्क बनाए और इससे जेल प्रशासन को 12 लाख रुपये से भी ज्यादा की कमाई हुई. अब कोविड की तीसरी लहर की आशंकाओं को देखते हुए यहां एक बार फिर से मास्क बनाने का काम शुरू करने की तैयारी चल रही है.

Covid की पिछली दो लहरों के दौरान यहां के कैदियों ने लगभग 32 हजार मास्क बनाए थे और इनकी आपूर्ति विभिन्न सरकारी कार्यालयों और संस्थानों में की गई थी. बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल के जेलर मोहम्मद नसीम का कहना है कि यहां के कैदियों द्वारा बनाया गया मास्क लोगों को खूब पसंद आया. तीन लेयर वाले मास्क सूती कपड़ों से बनाए जाते हैं जिन्हें धोकर कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है. पिछली बार यहां तैयार किए गए मास्क रिम्स (RIMS) के विशेषज्ञों के पास भेजे गए थे. वहां से इसे निर्धारित मापदंडों पर उपयुक्त बताए जाने के बाद बड़े पैमाने पर मास्क बनाए गए.

बता दें कि इस कारा के सजायाफ्ता बंदी तौलिया, चादर, कंबल, मोमबत्ती, फाइल, कॉपी जैसे सामान बनाते हैं. राज्य के कई संस्थानों को उनकी जरूरतों के अनुसार जेल से आपूर्ति की जाती है. इसके अलावा प्रतिदिन जेल के कैदी वाहनों के जरिए रांची कचहरी स्थित विभिन्न स्थानों पर भी कैदियों के सामान की बिक्री की जाती है. सामान बनाने वाले कैदियों को उनकी मेहनत के अनुसार हर प्रोडक्ट पर लाभांश का हिस्सा दिया जाता है.

यहां बनाए जाने वाले कंबल की बाजार में खासी मांग है. यहां तीन तरह के कंबल बनते हैं. लाल कंबल की आपूर्ति की रिम्स व रिनपास के अलावा प्रदेश के सभी जेलों के अस्पताल में की जाती है. काले कंबल का उपयोग सेंट्रल जेल के अलावा प्रदेश की सभी जेलों में उपयोग में किया जाता है. तीसरा ऊनी कंबल सरकार के विभागों से मिले ऑर्डर के आधार पर तैयार किए जाते हैं.

कोविड काल के पहले जेल में मुख्य गेट के पास कैदियों के बनाए सामान की बिक्री के लिए काउंटर था जहां कैदियों से मिलने आने वाले लोग इसकी खरीदारी करते थे. कोविड के दौरान मुलाकातियों पर रोक होने की वजह से इस काउंटर से बिक्री प्रभावित हुई. इसके बाद कैदी वाहनों से शहर के विभिन्न इलाकों में कैदियों के बनाए सामान की बिक्री शुरू की गई है.
 

(इनपुट- आईएएनएस)

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