डीएनए हिंदी: राजस्थान में सियासी उठापटक (Rajasthan Political Crisis) के बीच मंत्री शांति सिंह धारीवाल (Shanti Singh Dhariwal) का एक वीडियो सामने आया है. जिसमें वो कह रहे हैं कि एक षड्यंत्र के तहत आशोक गहलोत (Ashok Gehlot) से सीएम पद से इस्तीफा मांगा जा रहा था. धारीवाल ने कहा कि पंजाब की राजस्थान में भी षड्यंत्र रचा जा रहा है. जिस तरह कांग्रेस ने पंजाब को खोया था और उसी तरह राजस्थान को भी खो सकती है. इसलिए हमें वक्त रहते संभल जाना चाहिए.
शांति सिंह धारीवाल अशोक गहलोत समर्थक माने जाने हैं. विधायक दल की बैठक होने से पहले धारीवाल ने रविवार को अपने घर पर एक मीटिंग की थी. जिसमें गहलोत समर्थक सभी विधायक पहुंचे थे. यहीं पर गहलोत समर्थक विधायकों ने सामूहिक इस्तीफा देने का फैसला लिया. इसके बाद ये सभी विधायक विधानसभा स्पीकर के घर पहुंचे और अपना इस्तीफा दिया. गौरतलब है कि कांग्रेस विधायक दल की बैठक रविवार शाम 7 बजे को मुख्यमंत्री आवास पर होनी थी, लेकिन गहलोत के समर्थक कई विधायक बैठक में नहीं आए. उन्होंने संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल के बंगले पर बैठक की और फिर वहां से वे विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी से मिलने गए.
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सोनिया गांधी ने एक-एक विधायक से बात करने का दिया था निर्देश
अजय माकन ने बताया कि इन विधायकों के प्रतिनिधि के रूप में धारीवाल, मुख्य सचेतक महेश जोशी और मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास उनसे मिलने आए थे और उन्होंने कहा था कि विधायक सशर्त प्रस्ताव पारित कराना चाहते हैं. माकन ने कहा कि जो विधायक बैठक में नहीं आए, उन्हें हम लगातार कहते रहे कि हम एक-एक करके सबकी बात सुनने के लिए यहां आए हैं. माकन ने बताया कि उन्होंने विधायकों से कहा कि ‘‘जो बात आप कहेंगे, वह हम दिल्ली जाकर बताएंगे. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हमें सबसे अलग-अलग आमने-सामने बात करने के निर्देश दिए थे.
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गहलोत समर्थक विधायकों ने रखी शर्त
मकान ने बताया कि शांति धारीवाल इस्तीफा देने वाले विधायकों के प्रतिनिधियों के तौर पर हमसे बात करने आए और उन्होंने तीन शर्तें रखीं. सबसे पहले तो उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस अध्यक्ष को निर्णय लेने का अधिकार देने का प्रस्ताव पारित करना है तो बेशक ऐसा किया जाए, लेकिन उस पर फैसला 19 अक्टूबर के बाद होना चाहिए.
माकन ने कहा कि इस पर गहलोत समर्थक विधायकों को मैंने जवाब दिया गहलोत अगर यह प्रस्ताव पेश करते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष पर सब निर्णय छोड़ दिए जाएं, तो इससे हितों का टकराव पैदा हो सकता है. उन्होंने कहा, क्योंकि अब गहलोत खुद कह चुके हैं कि वे कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ेंगे तो 19 अक्टूबर के बाद यदि वह खुद अध्यक्ष बन जाते हैं और अपने ही प्रस्ताव पर खुद को ही अधिकार देते हैं तो इससे बड़ा हितों का टकराव नहीं होगा.
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