Supreme Court on Caste Subcategory: सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण नियमों को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संवैधानिक बेंच ने अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति में उपजातियों के वर्गीकरण यानी 'कोटे के अंदर कोटा' तय करने का अधिकार राज्य सरकारों को दे दिया है. बेंच ने अपने से छोटी संवैधानिक बेंच का 20 साल पुराना फैसला पलटते हुए कहा है कि इससे मूल और जरूरतमंद कैटेगरी को आरक्षण का ज्यादा फायदा मिलेगा और कोटे में कोटा लागू करना किसी भी तरह असमानता के खिलाफ नहीं है. यह फैसला सात में से 6 जजों के बहुमत से किया गया है. बेंच में मौजूद इकलौती महिला जज ने इस फैसले से असहमति जताई है. इससे पहले साल 2004 में दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा था कि एससी/एसटी (SC/ST) के अंदर सब-कैटेगरी तय नहीं की जा सकती हैं. इस फैसले से राज्य सरकारों को उन विसंगतियों को दूर करने में मदद मिलेगी, जिनके चलते आरक्षण का लाभ आरक्षित वर्ग में कुछ खास जातियों को ही मिलने का आरोप लगाया जाता है.
'सरकार ज्यादा पीड़ित लोगों को कर सकती है चिह्नित'
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संवैधानिक बेंच ने कहा कि अनुसूचित जातियों व जनजातियों में सभी समूह एक जैसे नहीं हैं. ऐसे में सरकार ज्यादा पीड़ित लोगों को चिह्नित कर उन्हें 15% आरक्षण सीमा के अंदर ज्यादा अहमियत देने के लिए सब कैटेगरी बना सकती है. इस बेंच में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल हैं. बेंच के फैसले में केवल जस्टिस बेला ने सब कैटेगरी तय करने की इजाजत के खिलाफ राय दी है.
'सरकार अपनी मर्जी से नहीं तय कर सकती सब कैटेगरी'
सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा,'अनुसूचित जातियों के अंदर ज्यादा भेदभाव है. ऐसे में SC कैटेगरी के अंदर सब-कैटेगरी बनाने का फैसला उनके भेदभाव की डिग्री के आधार पर किया जाना चाहिए. राज्य सरकार अपनी इच्छा से किसी भी जाति को सब कैटेगरी में शामिल नहीं कर सकती बल्कि राज्य सरकारों को ये काम सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में एडमिशन के आंकड़ों से पीड़ित उप जातियों के प्रतिनिधित्व का अनुभवजन्य डेटा जुटाकर उसके जरिये करना होगा.'
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी ही संविधान पीठ का फैसला पलटा
सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की बेंच ने इस फैसले के साथ ही 20 साल पुराना अपना 5 जजों की संवैधानिक बेंच का फैसला पलट दिया है. साल 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में संवैधानिक बेंच ने राज्य सरकारों को SC/ST जातियों की सब कैटेगरी तय करने का अधिकार नहीं होने का फैसला सुनाया था.
क्यों पड़ी है सुप्रीम कोर्ट को अब इस व्याख्या की जरूरत
सु्प्रीम कोर्ट ने आरक्षित जातियों के अंदर उपजातियां तय करने पर रोक लगाने वाले फैसले की व्याख्या अब पंजाब सरकार के कारण की है. दरअसल पंजाब सरकार ने अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों में से 50 फीसदी सीट वाल्मिकी व मजहबी सिखों के लिए आरक्षित करने का प्रावधान किया था. पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार के इस फैसले पर रोक लगा दी थी. यह रोक सुप्रीम कोर्ट के साल 2004 के फैसले के आधार पर लगाई गई थी. इसके खिलाफ पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. पंजाब सरकार की अपील पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान बेंच ने साल 2020 में कहा था कि वंचित वर्ग तक असली लाभ पहुंचाने के लिए यह होना बेहद जरूरी है. इसके बाद यह मामाल सात जजों की संविधान बेंच को भेजा गया था. जो अब मामला सुन रही है.
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