Same Sex Marriage: समलैंगिक शादियों का मुद्दा फिर पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, फैसले पर पुनर्विचार की उठी मांग

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Nov 01, 2023, 09:57 PM IST

Same Sex Marriage Supreme Court Verdict

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक शादियों को कानूनी वैधता देने से इनकार कर दिया था. हालांकि इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट बेंच का फैसला 3-2 के बहुमत से बंटा हुआ आया था.

डीएनए हिंदी: Same Sex Marriage Case Updates- सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर समलैंगिक विवाह को कानूनी वैधता देने की मांग वाली याचिका दाखिल की गई है. यह याचिका टॉप कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दाखिल की गई है, जिसमें समलैंगिक विवाह (Gay Marriage) को कानूनी घोषित करने से इंकार कर दिया गया था. अब याचिकाकर्ताओं में से एक उदित सूद ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री में इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए समीक्षा याचिका दाखिल की है. याचिकाकर्ता का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को लेकर दिया गया फैसला 'स्व-विरोधाभासी और अन्यायपूर्ण' है. याचिकाकर्ता ने इस फैसले पर एक बार फिर विचार करने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की है.

17 अक्टूबर को दिया था सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने विभाजित फैसला

सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाह की कानूनी वैधता के मुद्दे पर दाखिल 21 याचिकाओं पर सुनवाई की थी. सुप्रीम कोर्ट ने लगातार 10 दिन सुनवाई के बाद 11 मई को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था. यह फैसला 17 अक्टूबर को सुनाया गया है, जिसमें ऐसे विवाह को कानूनी वैधता देने से कोर्ट ने इंकार कर दिया था. हालांकि यह फैसला संविधान पीठ के जजों की सर्वसम्मति वाला नहीं था. इस फैसले को संविधान पीठ के 5 जजों में 3-2 के बहुमत से माना गया था यानी 3 जज इसके पक्ष में थे, जबकि 2 जज इसे गलत मान रहे थे. 

'वैधता विधायी मसला है, जो कानून के जरिये ही मिल सकती है'

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा था कि समलैंगिक विवाह की कानूनी वैधता एक विधायी मामला है. ऐसी अनुमति केवल कानून को जरिये दी जा सकती है, जो बनाना कार्यपालिका का काम है. कोर्ट विधायी मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक जोड़ों को बच्चे गोद लेने आदि समेत कई तरह की छूट के लिए कानूनी प्रक्रिया तैयार करने का निर्देश केंद्र सरकार को दिया था. अब इसी फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गई है.

याचिका में कही गई है ये बात

पुनर्विचार याचिका के मुताबिक, फैसले में विलक्षण समुदाय के साथ होने वाले भेदभाव को माना गया, लेकिन इस भेदभाव के असली कारण को नहीं हटाया गया है. विधायी विकल्प समलैंगिक जोड़ों को समान अधिकारों से वंचित करके उन्हें इंसानों से कमतर मानते हैं. सरकार का स्टैंड दिखाता है कि प्रतिवादी LGBTQ लोगों को एक समस्या मानते हैं. याचिका में आगे कहा गया है कि बहुमत के फैसले ने इस बात की अनदेखी की है कि शादी मूल रूप से सुलभ सामाजिक अनुबंध है. इस अनुबंध का अधिकार सहमति देने में सक्षम किसी भी व्यक्ति के लिए उपलब्ध है. किसी भी धर्म या बिना विश्वास वाले व्यस्क इसमें शामिल हो सकते हैं. लोगों का कोई भी समूह दूसरे के लिए यह परिभाषित नहीं कर सकता कि 'विवाह' का क्या अर्थ है. 

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