डीएनए हिंदी: पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण (Shanti Bhushan) का मंगलवार शाम निधन हो गया. उन्होंने आज शाम 7 बजे दिल्ली में अपने घर पर आखिरी सांस ली.वो पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे. शांति भूषण 97 साल के थे. शांति भूषण मोरारजी देसाई सरकार में 1977 से 1979 तक कानून मंत्री का पदभार संभाला था. आपातकाल में उन्होंने आंदोलन में हिस्सा लिया था. बाद में भ्रष्टाचार के खिलाफ कई आदोंलनों में शिरकती.
शांति भूषण को सविंधान विशेषज्ञ के तौर पर जाना जाता था. कानून के मुद्दों पर उनकी पकड़ काफी मजबूत मानी जाती थी. 1971 में उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में इंदिरा गांधी के खिलाफ केस लड़ा था. दरअसल, इंदिरा गांधी ने 1971 में यूपी की रायबरेली सीट से लोकसभा चुनाव जीता था और प्रधानमंत्री बनी थीं. लेकिन इस सीट से उनके विरोधी जनसंघ के राजनारायण ने उन पर चुनाव में धांधली करके चुनाव जीतने का आरोप लगाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.
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इंदिरा गांधी को देना पड़ा था इस्तीफा
उस दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट में राजनारायण के लिए यह केस शांति भूषण ने लड़ा था. वह इस केस राजनारायण की तरफ से वकील थे. इस केस में उन्होंने जीत हासिल की थी. जिसके बाद देश की राजनीति में बवाल हो गया था और 1974 में इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. कोर्ट इंदिरा के छह साल तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी थी. जिसके बाद ही उन्होंने देश में इमरजेंसी लगाने का फैसला लिया था.
1977 में बनाया गया कानून मंत्री
इसके बाद 1977 में शांति भूषण को केंद्रीय मंत्रीमंडल में जगह दी गई थी. तत्कालीन मोरारजी देसाई सरकार ने उन्हें कानून मंत्री बनाया था. वह दो साल 1979 तक कानून मंत्री रहे थे. इसके बाद साल 1980 में शांति भूषण की जिंदगी में एक बड़ा बदलाव आया. उनकी तरफ से NGO Centre For Public Intrest Litigation की शुरुआत की गई. इस एनजीओ के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में देशहित से जुड़ी कई याचिकाएं लगाई गई थीं.
इसके बाद 2018 में शांति भूषण तब चर्चा में आए थे जब उन्होंने मास्टर ऑफ रोस्टर में बदलाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. बता दें कि शांति भूषण के बेटे प्रशांत भूषण भी सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं.
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