डीएनए हिंदी: राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ा नाम माने जाने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार का करियर ग्राफ महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार के गठबंधन के कारण काफी दागदार हो गया है. राज्य के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ 100 करोड़ की वसूली से जुड़े आरोप और उन पर पहले शरद पवार की चुप्पी और केस की कड़ियां खुलने के बावजूद उनका बचाव उनके राजनीतिक करियर पर धब्बा लगा सकता है जिसका सीधा नुकसान एनसीपी की राजनीति पर भी दिख सकता है.
केन्द्र सरकार पर हमला
केन्द्रीय जांच एंजेसिंयों द्वारा लगातार महाराष्ट्र के मंत्रियों और राजनेताओं पर कार्रवाई हो रही है. ऐसे में अब अपने नेताओं के बचाव में शरद पवार जांच एजेंसियों पर भड़क उठे है. उन्होंने एक प्रेसवार्ता के दौरान कहा- “अनिल देशमुख का ही मामला देख लीजिए. जिस अधिकारी ने आरोप लगाए थे, वह भगोड़ा घोषित कर दिया गया. कहां गायब है पता नहीं? कौन से देश में है मालूम नहीं? समन जारी हो चुका है पर हाजिर नहीं हो रहा. अनिल देशमुख आज जेल के अंदर हैं. इस का मुख्य कारण है केंद्र की सत्ता का दुरुपयोग को कुछ लोगों ने धंधा बना लिया है.”
पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा पर ही निशाना साधते हुए उन्होंने इन कार्रवाई को सत्ता की छटपटाहट से जोड़ दिया है. शरद पवार ने कहा, “सत्ता हाथ से चले जाने से कुछ लोग अस्वस्थ्य हैं, हर रोज केंद्र को लिस्ट भेजते हैं और यह मांग करते है इनकी जांच करो.” स्पष्ट है कि अपने नेता की गिरफ्तारी को सीधे एजेंसियों के दुरुपयोग से जोड़कर देख रहे हैं.
बचाव न बन जाए मुसीबत
शरद पवार के भतीजे और महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अनिल देशमुख के खिलाफ पहले ही प्रवर्तन निदेशालय चीनी मिल की खरीद एवं सहकारी बैंक के घोटाले से संबधित केस में कार्रवाई कर रहा है जिसके रडार में पवार परिवार के कई सदस्यों के नाम भी हैं. इन सभी के चलते लगातार एनसीपी का राजनीतिक साख गिर रही है. ऐसे वक्त में भी शरद पवार अपने एक जेल में बंद पूर्व मंत्री का बचाव कर रहे हैं जो कि पहले ही समन के बावजूद फरार थे.
वहीं इस केस से जुड़े मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह भी फरार हैं. ऐसे जटिल केस पर भी अपने नेता का बचाव करना शरद पवार के लिए घाटे का सौदा हो सकता है, वहीं वसूली से जुड़े महाराष्ट्र के एक और मंत्री अनिल परब का नाम भी खूब उछला है जिसके चलते उन्हें भी प्रवर्तन निदेशालय के सामने लगातार पेश होना पड़ा है. इन सभी का बचाव राज्य की राजनीति में एनसीपी के प्रति नकारात्मकव देखने को मिल सकता है.