डीएनए हिंदी: महाराष्ट्र की राजनीति में एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार (Sharad Pawar) को चाणक्य कहा जाता है और अब वो अपने अनुभव के जरिए ही बेटी सुप्रिया सुले (Supriya Sule) को पार्टी में स्थापित कर रहे हैं. बीजेपी की तरफ बढ़ते भतीजे अजित पवार के रुख को लेकर शरद पवार अलग राय रख चुके हैं. ऐसे में शरद पवार ने हाल में ही बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था, जिससे सीधे तौर पर अजित पवार का राजनीतिक कद गिर गया था. अब शरद पवार अजित पवार के करीबियों को उनसे दूर करने लगे हैं, जिसका हालिया उदाहरण सुनील तटकरे हैं.
दरअसल, अजित पवार के करीबी सुनील तटकरे ने पिछले दिनों बयान दिया था कि एनसीपी को बीजेपी के साथ नजदीकी बढ़ानी चाहिए. इसको लेकर पार्टी में टकराव की स्थिति आ गई थी. सुनील तटकरे को अजित पवार से दूर करने के लिए उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बना दिया गया है. साथ ही जितेंद्र आव्हाड जैसे शरद पवार के करीबी को ऊंचा पद दिया गया है.
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अजित पवार का क्या है प्लान?
अजित पवार को भी पता है कि उनके हाथों से एनसीपी फिसल रही है. उनका स्पष्ट मत है कि वह विधानसभा में नेता विपक्ष बनने के बजाए, संगठन में रहना पसंद है. इतना ही नहीं, हाल ही उन्होंने जयंत पाटिल के पांच साल से ज्यादा प्रदेश अध्यक्ष बने रहने के मामले में भी सवाल उठाया है. एनसीपी पार्टी के नियम और शर्तों के मुताबिक तीन साल से ज्यादा कोई प्रदेश अध्यक्ष पद पर नहीं रह सकता. इस मामले को मुद्दा बनाकर पार्टी की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे.
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सुप्रिया सुले का बढ़ा कद
अजित पवार की गिरती ताकत का नया नमूना बुधवार को दिखा था. सुप्रिया सुले के कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद दिल्ली में एनसीपी की पहली राष्ट्रीय कार्यकारिणी मीटिंग में अजित पवार मंच से नदारद थे और न ही पोस्टरों में उनको जगह दी गई थी. मंच से लेकर पोस्टरों ने यह बता दिया है कि अब भतीजे अजित पवार से शरद पवार ने हाथ खींच लिए हैं.
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महाराष्ट्र तक सीमित हो जाएगी अजित पवार की राजनीति?
इतना ही नहीं, बीते 23 जून को मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों की एकजुटता के लिए पटना में हुई बैठक में भी अजित पवार नहीं दिखे थे. सुप्रिया सुले अजित पवार के साथ एनसीपी का नेतृत्व कर रही थीं. हालांकि माना जा रहा है कि पार्टी अजित पवार को शांत करने के लिए महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष का पद दे सकती है लेकिन इसमें भी यह तो तय है कि अजित पवार को सुप्रिया सुले के ही नेतृत्व में ही काम करना पड़ेगा.
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