डीएनए हिंदी: महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को बड़ा झटका लगा है. भारतीय चुनाव आयोग ने शुक्रवार को शिवसेना का नाम और पार्टी का सिंबल 'धनुष और तीर' (Bow And Arrow)को शिंदे गुट को सौंप दिया है. शिवसेना के नाम और पार्टी के चिन्ह पर हक को लेकर उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट के बीच पिछले कुछ समय से तनातनी चल रही थी. चुनाव आयोग ने कहा कि उद्धव ठाकरे गुट की पार्टी का संविधान अलोकतांत्रित है. इसमें लोगों को बिना किसी के चुनाव के नियुक्त किया गया था.
चुनाव आयोग ने यह भी पाया कि शिवसेना के मूल संविधान में अलोकतांत्रिक तरीकों को गुपचुप तरीके से वापस गया, जिससे पार्टी निजी जागीर के समान हो गई. इन तरीकों को चुनाव आयोग ने 1999 में नामंजूर किया था. इसी के साथ अब महाराष्ट्र में उद्धव गुट की दावेदारी खत्म मानी जा रही है. चुनाव आयोग ने कहा कि वर्ष 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना के 55 विजयी उम्मीदवारों में से एकनाथ शिंदे का समर्थन करने वाले विधायकों के पक्ष में लगभग 76 फीसदी मत पड़े. महाराष्ट्र में 2019 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना के विजयी उम्मीदवारों के पक्ष में मिले मतों से 23.5 प्रतिशत मत उद्धव ठाकरे गुट के विधायकों को मिले थे.
शिंदे ने बताया बालासाहेब विचाराधार की जीत
निर्वाचन आयोग के फैसले के बाद महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा कि आयोग द्वारा उनके गुट को वास्तविक शिवसेना के रूप में मान्यता दिए जाने के फैसले को बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा की जीत है. उन्होंने आयोग के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, ‘मैं निर्वाचन आयोग को धन्यवाद देता हूं. लोकतंत्र में बहुमत का महत्व होता है.’ शिंदे ने कहा कि यह बालासाहेब की विरासत की जीत है. हमारी शिवसेना वास्तविक है. हमने बालासाहेब के विचारों को ध्यान में रखते हुए पिछले साल महाराष्ट्र में (भारतीय जनता पार्टी के साथ) सरकार बनाई.’
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हमें चुनाव आयोग के फैसले पर भरोसा नहीं- राउत
वहीं, चुनाव आयोग के फैसले के बाद शिवसेना के सांसद संजय राउत ने ट्वीट किया, 'इसकी स्क्रिप्ट पहले ही लिखी जा चुकी थी. देश तानाशाही के ओर बढ़ रहा है, जबकि कहा गया था कि नतीजा हमारी पक्ष में होगा. लेकिन अब अचानक चमत्कार हो गया. लड़ते रहो. हमें इस तरह के फैसले की उम्मीद थी. हमें निर्वाचन आयोग पर भरोसा नहीं है.'
शिवसेना के प्रवक्ता आनंद दुबे ने कहा कि इस फैसले से साफ पता चलता है कि चुनाव आयोग भाजपा का एजेंट है. अभी मामला सुप्रीम कोर्ट में है, फिर भी आनन-फानन में कैसे फैसला सुना दिया गया कि पार्टी का नाम और सिंबल उस गुट का होगा. चुनाव आयोग अपनी विश्वसनीयता खो चुका है.
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