डीएनए हिंदी: स्टेट ऑफ इंडिया बर्ड रिपोर्ट (State of India's Bird Report – 2020) के मुताबिक 867 Species जिनका आंकलन किया गया था उनमें से आधी से ज्यादा चिड़िया अब गायब होने की कगार पर हैं. रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि शहर को प्लान करने वाले लोग अब सोच समझ कर और वहां के पेड़ पौधों को ध्यान में रख कर अपना डिजाइन प्लान करे इसी में इकोसिस्टम की भलाई है. इंसानों के साथ साथ चिड़ियों का भी शहरीकरण हो रहा है. नेचर कंजर्वेटिव फाउंडेशन के वैज्ञानिकों ने कई वैज्ञानिकों के साथ मिलकर चिड़िया की अलग अलग प्रजातिय़ों पर जो रिसर्च की है जिसके नतीजे हैरान करने वाले हैं.
टेंशन में रहती है शहर की चिडिया
इस रिसर्च के मुताबिक अब शहर में रहने वाली चिड़िया गांव में रहने वाली चिडियों से आकार में छोटी, व्यवहार में उग्र यानी Aggressive और तनाव की शिकार है. शहर में रहने वाली चिड़िया अब शहर में रहने वाले लोगो के जितना ही टेंशन में रहती है ऐसा भी स्टेट ऑफ इंडिया बर्ड रिपोर्ट की रिसर्च की रिव्यू में पाया गया है. इसकी वजह शहरों का शोर वाला वातावरण हो सकता है.
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महानगरों में चिड़िया क्यों घट रही हैं?
शोध में पता चला है कि शहर में जो थोड़ी बहुत चिड़िया की प्रजातियां बाकी बची हैं उन्हें अपने गुजर बसर के लिए किस तरह के बदलाव करने पड़े हैं. ये बदलाव बहुत कुछ ऐसे हैं जैसे गांव से नौकरी की तलाश में शहर आए लोगों को करने पड़ते हैं. शहरों में बसने के लिए चिड़िया को घोसला बनाने के लिए घने पेड़ नसीब नहीं होते इसलिए कई चिड़िया बहुत दिनों तक बिना आशियाने के रहने को मजबूर होती हैं या फिर हाई राइज़ फ्लैट्स के वेंटिलेशन वाली दरारों के बीच जैसे-तैसे घोंसला बनाती हैं.
चिड़िया को बदलनी पड़ती हैं आदतें
इसी तरह चिड़िया को अपने खाने पीने की आदत भी बदलनी पड़ती है- गांवों कस्बों में आस पास खेतों से दाना चुगने की आदत छोड़नी पड़ती है. चिड़िया को Picky Eater यानी गिनी-चुनी चीजें ही खाने वाली प्रजाति माना जाता है लेकिन शहर में चिड़िया इस आदत को छोड़ने को मजबूर है. फ्लैट्स और छोटे तंग घरों में ना आंगन होते हैं ना घरों की दहलीज ऐसी होती है कि वहां तक चिड़िया की पहुंच आसान हो जिससे उसे आसानी से खाना मिल सके.
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चिड़िया को शहर में आना पड़े तो...
अगर किसी गांव में रहने वाली चिड़िया को शहर में आना पड़े तो कुछ चीजों में खास बदलाव लाना पड़ेगा. सबसे पहले तो उन्हे चुन-चुन कर अपनी पसंदीदा चीज खाने की आदत छोड़नी पड़ सकती है, घोंसले बनाने की आदत को शायद छोड़ना पड़ेगा और अपनी चहचहाहट की आवाज पर काम करना पड़ेगा. शोधकर्ताओं के अनुसार जिन चिडियों ने शहर के मुताबिक अपने आप में बदलाव किया है उनमें कुछ खास परिवर्तन महसूस किया जा रहा है, जैसे की इन चिड़ियों में इंसानों के प्रति डर खत्म हो चुका है. इनके अंदर नए खान पान को खोजने की आदत पाई गई है और इनका व्यवहार दूसरे पक्षियों पर काफी उग्र देखा गया है.
बदल रही है चहचहाने की आवाज
इतना ही नहीं इनके गाने की आवाज में भी काफी बदलाव देखा गया है. ज्यादातर चिड़ियों को शहर में बढ़ते ट्रैफिक से हो रहे noise pollution की वजह से अपने गाने की आवाज और तरीके को बदला है. चिड़िया प्रजनन के समय तेज़ आवाज़ में गाती है या शोर करती है। ये उनकी प्रजनन या अंडे देने की प्रक्रिया का ज़रुरी और अहम हिस्सा होता है. इस प्रक्रिया को लॉमबर्ड इफेक्ट भी कहते है. कुछ पक्षी जैसे यूरेशियन ब्लैकबर्ड ने अपने गाने की आवाज को बढ़ा दिया है. कुछ पक्षी जैसे यूरोपियन रॉबिंस ने अब रात को गाना शुरू कर दिया है जिससे कि उनकी आवाज में शोर की वजह से कोई पर्दा ना पड़े.
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Tinted ग्लास भी हैं नुकसान दायक
रिपोर्ट के मुताबिक शहर में हरे भरे पेड़ पौधों के नाम पर ऑर्नेमेंटल पेड़ पौधे का इस्तेमाल ज्यादा होता है. यानी वो पौधे जो देखने में खूबसूरत हों लेकिन इनकी जगह अगर कोई फल देने वाले या फिर घने पेड़ लगाए जा सकें तो ज्यादा फायदेमंद परिणाम मिलेंगे. ऐसे प्लांट अच्छे घोंसले बनाने की जगह देते हैं. दूसरा सिटी डिजाइन, जो चिड़ियों के लिए घातक है. आजकल शहरों की इमारतों में Tinted ग्लास का इस्तेमाल होता है. सारे उड़ने वाले पक्षी उसमें अपनी परछाई देखकर उसकी तरफ आने की कोशिश करते है जिससे उन्हे काफी चोट पहुंचती है.
आप कर सकते हैं ये काम
यानी अगर चिड़िया को बचाना है तो पर्यावरण के अनुकूल माहौल के करीब जाना होगा. घरों में ऐसे पौधे लगाएं तो पक्षियों के हिसाब से घने हों. चिड़िया के लिए अनाज का प्रबंध करें. शोर कम रखें. जहां वाहनों का शोर कम होगा, फैक्ट्रियों का धुआं नहीं होगा और पेड़ पौधों की हरियाली होगी, वहां आप चिड़िया को देखकर कुछ देर के लिए शहर के शोर और तनाव को भूल सकते हैं.