डीएनए हिंदी: बिलकिस बानो (Bilkis Bano Case) के दोषियों को रिहा किए जाने के मामले में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और गुजरात सरकार को नोटिस जारी करके पूरे मामले में जवाब मांगा है. चीफ जस्टिस एनवी रमण की अगुवाई वाली पीठ ने सजा में छूट पाने वालों को मामले में पक्षकार बनाने को कहा है. अब इस मामले की सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी.
बता दें कि गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत इस साल 15 अगस्त को बिलकिस बानो के दोषियों की रिहा कर दिया था. इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल और कार्यकर्ता रूपरेखा रानी ने सुप्रीम कोर्ट याचिका दायर कर गुजरात सरकार के आदेश को रद्द करने की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील से अपनी बात रखने के लिए कहा. इसपर कपिल सिब्बल ने सवाल किया कि 14 लोगों की हत्या और एक गर्भवती महिला से गैंगरेप के दोषियों को कैसे छोड़ दिया गया? हम चाहते हैं इसकी रिपोर्ट मंगाई जाए और देखा जाए कि कमेटी ने रिहाई की कैसे सिफारिश की.
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इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सभी दोषियों को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया. साथ ही गुजरात सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. सर्वोच्च न्यायालय बिलकिस बानो के 11 गुनहगारों की रिहाई का परीक्षण करेगा. अब इस मामले में अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी.
15 अगस्त को गुजरात सरकार ने किया था रिहा
गौरतलब है कि गुजरात में भड़की हिंसा के दौरान 3 मार्च 2002 को दाहोद में भीड़ ने 14 लोगों की हत्या कर दी थी. मरने वालों में बिलकिस बानो की 3 साल की बेटी सालेहा भी शामिल थी. घटना के समय बिलकिस बानो गर्भवती थीं और वह सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई थीं. इस मामले में 11 लोगों को दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी. माफी नीति के तहत गुजरात सरकार ने इस मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को 15 अगस्त को गोधरा के उप कारागार से रिहा कर दिया. जिसकी विपक्षी पार्टियों ने कड़ी निंदा की थी.
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दोषियों को 2008 में सुनाई गई थी उम्रकैद की सजा
मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी 2008 को सभी 11 आरोपियों को बिलकिस बानो के परिवार के 7 सदस्यों की हत्या और उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म का दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी. बाद में इस फैसले को बंबई हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा था. इन दोषियों को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के तहत विचार करने के बाद रिहा किया गया. शीर्ष अदालत ने सरकार से वर्ष 1992 की क्षमा नीति के तहत दोषियों को राहत देने की अर्जी पर विचार करने को कहा था. इन दोषियों ने 15 साल से अधिक कारावास की सजा काट ली थी जिसके बाद एक दोषी ने समयपूर्व रिहा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. इस पर शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार को मामले पर विचार करने का निर्देश दिया था.
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