Literature : ट्रांसजेंडर कवियों ने साहित्य अकादमी के कविता पाठ में जीवन को उकेरा

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Mar 15, 2022, 05:12 PM IST

साहित्योत्सव के अंतर्गत रवींद्र भवन परिसर में ’ट्रांसजेंडर कवि सम्मेलन’ में  देश के भिन्न भागों से ट्रांसजेंडर कवियों ने हिस्सा लिया

डीएनए हिंदी : साहित्य के सप्तरंगों को साहित्योत्सव में उकेरा गया. मौका साहित्योत्सव के अंतर्गत रवींद्र भवन परिसर में ’ट्रांसजेंडर कवि सम्मेलन’ के आयोजन का था. 14 मार्च को सम्पन्न हुए इस आयोजन में  देश के भिन्न भागों से ट्रांसजेंडर कवियों ने हिस्सा लिया था. भिन्न भाषा-भाषी इन कवियों ने जीवन और उसके रंगों का विस्तृत वर्णन पेश किया. 
कविताओं में व्यक्त जीवन संघर्ष
बांग्ला कवि पार्थसारथी मजूमदार ने अपनी मूल बाङ्ला कविताओं के हिंदी अनुवाद का पाठ किया. उनकी लालच कविता में ‘पृथ्वी का सबसे पुराना लालच इंसान को दबाए रखने' का भाव उभर कर आया. हिंदी कवि रेशमा प्रसाद ने ‘मैं किन्नर हूं’ शीर्षक से कविता का पाठ किया. उनकी कविता ने मर्मस्पर्शी रही.  उनकी कविता कुछ यूं थी,  ‘‘संघर्ष है वजूद का, संघर्ष है सम्मान का, मैं किन्नर हूं, मुझको आजादी का झंडा वापिस कर दो’’. उड़िया कवि मीरा परिडा  सामाजिक चिंतन की बात पर क़ायम रहीं. 
मराठी कवि दिश शेख़ ने कविता में समाज को उलाहना देते हुए कहा कि ‘‘हमारे हजार वर्षों के शोषण चित्र दिखते नहीं क्या, तुम्हारे चेहरे पर पशु की क्रूरता झलकती है. मुझे तुम्हारे सामने हाथ पसारने की जरूरत नहीं’’. मलयालम कवि विजयराजमल्लिका ने लोरी कविता के माध्यम से वात्सल्य भाव को प्रस्तुत किया. उनकी कविता ने किन्नर बच्चे की पीड़ा का भी ज़िक्र किया. 
उड़िया कवि साधना मिश्र ने अपनी भावनाओं को कविता में इस तरह उकेरा - ‘‘रामायण ने बोला किन्नर, महाभारत ने बोला शिखंडी, विष्णुपुराण ने बोला अर्द्धनारिश्वर.’’ उन्होंने कविता-पाठ क्रम को जारी रखते हुए अदृश्य हाथ शीर्षक से कविता का वाचन किया - ‘‘अकेले अकेले होते हैं तो कभी-कभी अकेला नहीं होता, वो अदृश्य हाथ हमारे साथ होते हैं’’.

हिंदी कवि धनंजय चौहान कविता-पाठ से पूर्वअपने जीवन की समस्याओं को बयां करते हुए कहा कि जीवन और समाज में हमारा अस्तित्व संध्या की तरह है. हम सब आत्माएं हैं और आत्मा को स्त्री-भाव से संबोधित करते है. समय के साथ धीरे-धीरे बदलाव हुए है लेकिन हमारा संघर्ष जारी है. उन्होंने  ट्रांसजेंडर समुदाय के ऐतिहासिक परिपेक्ष्य पर भी कविता-पाठ किया.

सत्र की अध्यक्ष बांग्ला कवि मानवी बंद्योपाध्याय ने अपने संबोधन में कहा कि "ट्रांसजेंडर का कोई माझी नहीं वो बहुत अकेला है, लेकिन वे अपने अधिकारों के लिए निरंतर संघर्षरत हैं.  इस अवसर पर उन्होंने अपनी बाङ्ला कविताओं का हिंदी अनुवाद का भी पाठ किया." 

बड़े प्लेटफ़ॉर्म पर ट्रांसजेंडर लेखकोंं की सहभागिता सुनिश्चित करेगा साहित्य अकादमी  

कार्यक्रम  की शुरुआत में साहित्य अकादेमी सचिव के. श्रीनिवासराव ने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि साहित्य जीवन और प्रकृति को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम है. उन्होंने कहा कि लेखक, लेखक होता है, उसे उम्र, महिला-पुरुष और अन्य किसी तरह से विभाजित नहीं किया जा सकता. 

ज्ञात हो कि साहित्य अकादेमी ने 2018 से ट्रांसजेंडर कवि-सम्मेलन की शुरुआत की थी. इस अवसर पर साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशनाधीन ट्रांसजेंडर कविता संचयन और सार्क देशों के ट्रांसजेंडर लेखकों का ऑनलाइन सम्मेलन करने की बात भी कही गई. 

transgender poet Sahitya Akademi साहित्य अकादमी ट्रांसजेंडर कवि-सम्मेलन