डीएनए हिंदी: मध्य प्रदेश का मालवा 2006-07 तक कभी बूंद-बूंद पानी के लिए तरसता था. मध्य प्रदेश का मालवा 2006-07 तक कभी बूंद-बूंद पानी के लिए तरसता था. यहां के देवास रेलवे स्टेशन पर पीने के लिए पानी की गाड़ी आती थी तब लोगों की प्यास बुझ पाती थी. नजर आते हैं. अब यहां के किसान साल में दो से तीन फसलें उगा लेते हैं. यह सब किसी चमत्कार से कम नहीं है. ये सब बातें कहते हुए देवास जिले के एक किसान प्रेम सिंह खिंची की आंखें नम हो गईं. वह मालवा की एक पुरानी कहावत 'पग-पग रोटी, डग-डग नीर.' के बारे में बात करते हैं. वह बताते हैं- ''हमारी धरती के पेट से पानी ही खत्म हो गया था. ये 'जलाधीश' उमाकांत उमराव जी (Umakant Umrao) का कमाल है कि हम फिर से सुखी संपन्न हो गए. आज मालवा में छोटे-बड़े ताल-तलैयों की संख्या 10 हजार से ज्यादा हो गई है.''
60 फीसदी बोरवेल सूख चुके थे
मालवा में पानी को लेकर हालात इतने बिगड़ गए थे कि एक कस्बे में माफियाओं से पानी को बचाने के लिए चंबल नदी के बांध पर पुलिस का पहरा बिठाना पड़ा. पानी की कमी के चलते 6 हजार कर्मचारियों वाली एशिया की सबसे बडी फायबर बनानेवाली फैक्ट्री ग्रेसिम के भी चक्के थम गए. नागदा के अलावा कमोबेश पूरे मालवा इलाके में पानी के हालात बदतर हो गए थे. 60 फीसदी से ज्यादा बोरवेल सूख चुके थे. मालवा के देवास जिले में भी पानी की कमी के चलते कई फैक्ट्रियों पर ताला लगाना पड़ा था. 2006-07 के दौरान देवास में इंजिनीयरिंग बैकग्रांउड के एक जिलाधीश उमाकांत उमराव का आगमन क्या हुआ कि उन्होंने सिर्फ देढ़ साल के अपने कार्यकाल के दौरान जिले में पानी रचने की एक जोरदार कहानी गढ़ ली. उन्होंने किसानों का साथ लेकर ‘भागीरथ कृषक अभियान’ चलाया और देखते ही देखते देवास के गांवों की तस्वीर बदलने लगी. इस योजना में तब की सरकार का कोई पैसा भी नहीं लगा था. यह काम पूरी तरह से उमराव की पहल पर समाज के हाथों से शुरू हुआ था.
खेती अब यहां फायदे का सौदा बन गई
दिलचस्प बात यह है कि कलेक्टर उमराव जब देवास नियुक्त हुए तो उन्होंने देखा कि यहां रेल टैंकर के जरिए पानी लाया जा रहा था. भूजल का स्तर 500-600 फीट तक नीचे उतर चुका था. पक्षी के नाम पर यहां सिर्फ कौए ही दिखते थे. उन्होंने देवास के बड़े किसानों को इस बात के लिए राजी किया कि वे अपनी कुल जमीन की 10 फीसदी हिस्से पर तालाब का निर्माण कराएं. किसानों को बात समझ में आ गई और उन्होंने तालाब बनाना शुरु कर दिया. अब पानी की प्रचुरता की वजह से यहां एक की बजाए दो-तीन फसल ली जाने लगी हैं. अनाज का उत्पादन प्रति हेक्टेयर बढ़ गया है और किसानों को खेती फायदे का सौदा लगने लगी है. इस इलाके में न सिर्फ आर्थिक समृद्घि आई है बल्कि यहां का सामाजिक ताना-बाना भी तेजी से बदलने लगा है. आदिवासी समुदाय का जीवन बदल रहा है. लड़कियां स्कूल और कॉलेज पढ़ने जाने लगी हैं. बाल विवाह पर नियंत्रण लगा है. अपराध करनेवाली जनजाति अब खेती-किसानी या दूसरे पेशों से जुड़ रही हैं.