डीएनए हिंदी: केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) से कहा है कि अलग धर्मों और सम्प्रदायों से संबंधित नागरिकों का व्यक्तिगत कानून देश का अपमान है. समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) से भारत का एकीकरण होगा. यह बयान ऐसे वक्त में आया है जब एक बार फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड पर देशभर में चर्चा हो रही है.समान नागरिक संहिता लागू किए जाने की अपील करने वाली एक याचिका के जवाब में दाखिल हलफनामे में केंद्र ने कहा कि वह लॉ कमीशन (Law Commission) की रिपोर्ट मिलने के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाने के मुद्दे पर अलग-अलग धर्मों और संप्रदाय के लोगों से बातचीत करेगा और इसकी गहन पड़ताल करेगा. याचिका की सुनवाई दिल्ली हाई कोर्ट में शुक्रवार को हुई.
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केंद्र ने मामले को बताया संवेदनशील
केंद्र सरकार ने कहा कि यह मामला महत्वपूर्ण और संवेदनशील है. इसके लिए देश के अलग-अलग समुदायों के पर्सनल लॉ का गहन अध्ययन करने की जरूरत है. केंद्र की ओर से वकील अजय दिग्पाल ने हलफनामे में कहा, 'संविधान का अनुच्छेद 44 धर्म को सामाजिक संबंधों और पर्सनल लॉ से अलग करता है. अलग-अलग धर्मों और सम्प्रदायों से संबंध रखने वाले नागरिक सम्पत्ति और विवाह संबंधी विभिन्न कानूनों का पालन करते हैं, जो राष्ट्र की एकता का अपमान है.'
केंद्र ने जानकारी दी है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड से संबंधित अलग-अलग मामलों की समीक्षा करने और उसके बाद सिफारिश करने के अनुरोध के आधार पर 21वें विधि आयोग ने व्यापक विचार-विमर्श के लिए अपनी वेबसाइट पर 'परिवार कानून में सुधार' पर एक परामर्श पत्र अपलोड किया था.
'यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए नहीं दिया जा सका निर्देश'
हलफनामे में कहा गया है कि इस मामले पर विधि आयोग की रिपोर्ट मिलने के बाद सरकार इस मामले में शामिल अलग-अलग समुदायों के साथ विमर्श के बाद इसकी पड़ताल करेगी. केंद्र सरकार ने कहा कि यह याचिका विचारणीय नहीं है क्योंकि यूसीसी बनाए जाने का काम 'नीतिगत मामला' है, जिस पर 'लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधि' फैसला करते हैं और इस मामले में कोई निर्देश जारी नहीं किया जा सकता.
किसने दायर की है याचिका?
हाई कोर्ट ने मई 2019 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर केंद्र की प्रतिक्रिया मांगी थी. इस याचिका में लैंगिक न्याय और समानता, महिलाओं की गरिमा और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए यूसीसी का मसौदा तैयार करने के लिए एक न्यायिक आयोग के गठन का अनुरोध किया गया है. चार अन्य याचिकाओं में भी दावा किया गया है कि भारत को समान नागरिक संहिता की तत्काल जरूरत है.
(भाषा इनपुट के साथ)
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