2024 के लिए BJP ने तय किया चुनावी एजेंडा, संशय में विपक्ष, क्या समान नागरिक संहिता पर होगी सियासी रार?

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Jul 01, 2023, 05:14 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. 

भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा चुनाव 2024 के लिए चुनावी एजेंडा मिल गया है. अब समान नागरिक संहिता पर बीजेपी दांव खेल रही है. कई राज्यों में इसे लागू करने की कवायद शुरू हुई है.

डीएनए हिंदी: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) को चुनावी एजेंडा मिल गया है. पार्टी के दिग्गज नेताओं के बयान इस ओर इशारा कर रहे हैं कि अब सियासत समान नागरिक संहिता पर होगी. बीजेपी का यह पुराना मुद्दा है. अनुच्छेद 370 और राम मंदिर के बाद यही एक मुद्दा ऐसा रह गया है, जिसे बीजेपी पूरा करना चाहती है. एक तरफ राम मंदिर के कपाट खुलने का लोगों को इंतजार है, दूसरी तरफ बीजेपी समान नागरिक संहिता पर आगे बढ़ने की सोच रही है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समान नागरिक संहिता पर दिए गए बयान पर भी बीजेपी खेमा उत्साहित है. यूसीसी का कार्यान्वयन अब बीजेपी की सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई है. अगर यह आम चुनाव से पहले अमल में नहीं आता है तो भी यह मुद्दा पार्टी को अपनी हिंदू साख को मजबूत करने में मदद करेगा. बीजेपी को भरोसा है कि कम से कम यूपी में यूसीसी का बड़ा विरोध नहीं होगा.

समान नागरिक संहिता की राह पर है भारत

बीजेपी एक पदाधिकारी ने कहा 'हमने अनुच्छेद 370 को हटाने का वादा किया था और हमने उसे कर दिखाया. हमने राम मंदिर का वादा किया था और वो सपना भी सच हो रहा है. हमने समान नागरिक संहिता का वादा किया था. हम उस रास्ते पर हैं. भले ही हम चुनाव से पहले ऐसा करने में असमर्थ हों, लेकिन लोग जानते हैं कि हमें इस मुद्दे से मतलब है.'

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'मौलवियों तक सीमित रहेगा मुस्लिमों का विरोध'

योगी आदित्यनाथ सरकार के एक मंत्री का कहना है कि सबसे पहले, मुस्लिम महिलाएं हमारा समर्थन करती हैं क्योंकि वो जानती हैं कि यूसीसी उनके भविष्य की रक्षा करेगा. उन्हें मोदी नेतृत्व पर भरोसा है, जिसने तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाया और मुस्लिम महिलाओं को सुरक्षा की भावना दी. इसलिए, यूसीसी का मुस्लिम प्रतिरोध मौलवियों तक ही सीमित रहेगा.

UCC पर क्यों उत्साहित है बीजेपी?

यूसीसी पर BJP खेमे के उत्साहित रहने का एक अन्य कारण भी है. जो है सिख, पारसी और जैन जैसे अन्य अल्पसंख्यक समुदायों से यूसीसी का कोई विरोध नहीं हुआ है. यूसीसी के लागू होने से मुस्लिम समाज में केवल पुरुष वर्चस्व को खतरा है क्योंकि पुरुष नहीं चाहते कि महिलाओं को समान अधिकार मिले.

कोर्ट पर केंद्र को क्यों है भरोसा?

यूसीसी के लिए केंद्र सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा कर रहा है, जिसने बार-बार नागरिकों को समान न्याय सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर दिया है. इसका असर तब देखने को मिला जब सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को खत्म करने का फैसला लिया.

पहली बार अदालतों ने सुप्रीम कोर्ट में शाहबानो मामले के दौरान यूसीसी के बारे में बात की थी. शाह बानो बेगम मामले (1985) के दौरान, शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को राष्ट्रीय एकता के हित में समान नागरिक संहिता बनाने के लिए प्रोत्साहित किया.

कोर्ट ने कहा, 'अब समय आ गया है कि अनुच्छेद 44 के तहत विवाह और तलाक के लिए एक समान संहिता प्रदान करने के लिए विधायिका को हस्तक्षेप करना चाहिए.'

सपा कर रही है बीजेपी का मुखर विरोध?

इस बीच समाजवादी पार्टी इस आधार पर यूसीसी का पुरजोर विरोध करने के लिए तैयार है कि इसकी प्रकृति विभाजनकारी है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि यह मूल मुद्दों से ध्यान भटकाने की बीजेपी की एक और कोशिश है.

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पार्टी सांसद शफीकुर रहमान बर्क ने कहा, इससे देश में सिर्फ नफरत फैलेगी. लोकसभा चुनाव नजदीक है, कुछ राज्यों में भी चुनाव होने हैं. बीजेपी को मुद्दों पर चर्चा करने की कोई इच्छा नहीं है और वह देश को नफरत की आग में झोंकना चाहती है. यह कानून बनाने से काम नहीं चलेगा. यूसीसी देश की विविधता पर सीधा हमला होगा.

सपा सांसद बर्क की टिप्पणी विधि आयोग के उस बयान के बाद आई है, जिसमें उसने कहा था कि समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर नए सिरे से विचार करने, जनता और धार्मिक संगठनों के सदस्यों सहित अलग-अलग पक्षों की प्रतिक्रिया जानने की जरूरत है. (इनपुट: IANS)

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