सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला गढ़ रही Yogi सरकार, क्या 2024 साधने की हो रही तैयारी?

अभिषेक शुक्ल | Updated:Mar 26, 2022, 11:00 PM IST

PM Narendra Modi and CM Yogi Adityanath (Photo Credit @BJP/twitter)

योगी आदित्यनाथ की नई कैबिनेट में कई पुराने चेहरों को जगह नहीं दी गई है. मंत्रिमंडल में भी कई नए मंत्रियों को शामिल किया गया है.

डीएनए हिंदी: लखनऊ (Lucknow) के अटल बिहारी वाजपेयी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में शुक्रवार को योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने लगातार दूसरी बार उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मुख्यमंत्री (Chief Minister) पद की शपथ ली. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और कई केंद्रीय मंत्री मौजूद थे.
 
योगी सरकार ने शानदार सोशल इंजीनियरिंग की है. मिशन 2024 को साधने की पहली कोशिश उत्तर प्रदेश में ही दिखी है. योगी मंत्रिमंडल में कुल 52 मंत्रियों ने शपथ ली. इनमें से सबसे ज्यादा 20 मंत्री ओबीसी समुदाय से हैं जबकि 8 मंत्री दलित समुदाय से हैं.

योगी के मंत्रिमंडल में 7 ब्राह्मण, 6 ठाकुर, 4 बनिया, 2 भूमिहार, 1 कायस्थ, 1 सिख, 1 मुस्लिम, 1 आदिवासी और 1 पंजाबी खत्री समुदाय से है. उत्तर प्रदेश के चुनाव में जिन जातियों ने बीजेपी को समर्थन दिया, उन्हें कैबिनेट में प्रमुखता दी गई है. मंत्रियों का चयन इस तरह किया गया है कि यह पिछड़ों और दलितों की सरकार लगती है.

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मंत्रिमंडल से कई दिग्गजों का कटा पत्ता!

2017 में जब पहली बार योगी सरकार बनी तो ओबीसी समुदाय के 22 नेताओं को कैबिनेट में मंत्री बनाया गया. तब सरकार में मंत्रियों की संख्या भी 60 थी. हालांकि, इस बार यह संख्या 52 हो गई है. दिनेश शर्मा, सिद्धार्थनाथ सिंह, श्रीकांत शर्मा और जय प्रताप सिंह जैसे कई वरिष्ठ नेताओं को योगी मंत्रिमंडल से हटा दिया गया है.

इस बार भी योगी आदित्यनाथ की टीम में दो डिप्टी सीएम हैं. उनमें से पहले केशव प्रसाद मौर्य हैं जो पहले कार्यकाल में भी डिप्टी सीएम थे. हालांकि इस बार वह चुनाव हार गए थे. दूसरे डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक हैं. ब्रजेश पाठक 2017 के विधान सभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे.

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सोशल इंजीनियरिंग पर है BJP का जोर

योगी कैबिनेट 2.0 का विश्लेषण करने पर लगता है कि बीजेपी सभी जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश में है. समाजवादी पार्टी की मुस्लिम और यादव समीकरण में भी सेंध लगा चुकी बीजेपी चाहती है कि उसके चुनावी समर में सारे जातीय समीकरण ध्वस्त हों. यूपी में योगी आदित्यनाथ की वापसी साफ संकेत दे रही है कि बीजेपी ने भी सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला गढ़ लिया है. 

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मिशन 2024 साध रही है बीजेपी

2012 के विधानसभा चुनावों तक जातीय समीकरण बहुत हावी रहे हैं. समाजवादी पार्टी को 2012 में मिली जीत भी इसका सटीक उदाहरण थी. 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद बीजेपी के हिंदुत्व फॉर्मूले के आगे सारे जातीय समीकरण ध्वस्त हो रहे हैं. बीजेपी ने बसपा के वोटबैंक में भी सेंध लगा लिया है. दलित वोटर भी बीजेपी की ओर शिफ्ट हो गए हैं. यही वजह है कि 8 दलित मंत्रियों को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है. दूसरी राजनीतिक पार्टियां जहां हार की समीक्षा में जुटी हैं, वहीं बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों में जुट गई है.

उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं. हर बार की तरह 2024 में भी यूपी ही तय करेगा कि दिल्ली की गद्दी पर कौन बैठेगा. यूपी में बीजेपी के पास 63 लोकसभा सीटें हैं. अब बीजेपी की प्राथमिकता है एक बार फिर 2014 के विधानसभा चुनावों की तरह 71 से ज्यादा सीटें हासिल की जाएं. बीजेपी उसी राह पर बढ़ती नजर आ रही है.

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