Uttar Pradesh News: अस्पतालों की लापरवाही से 14 बच्चों की जिंदगी दांव पर, ब्लड ट्रांसफ्यूजन में बने एड्स-हेपेटाइटिस के मरीज

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Oct 24, 2023, 04:10 PM IST

AIDS (Representational Image)

Shocking News: बच्चों के इन घातक संक्रामक बीमारियों की चपेट में आने के लिए उन्हें चढ़ाए खून को जिम्मेदार माना जा रहा है. संभावना है कि खून चढ़ाने से पहले उसके परीक्षण में लापरवाही की गई थी.

डीएनए हिंदी: Kanpur News- उत्तर प्रदेश के कानपुर में डॉक्टरों की लापरवाही ने 14 बच्चों की जिंदगी दांव पर लगा दी है. इन बच्चों का खून बदलने (Blood Transfusion) के बाद लाला लाजपत राय (LLR) अस्पताल में टेस्ट हुआ था. टेस्ट में ये सभी बच्चे हेपेटाइटिस-बी (Hepatitis B), हेपेटाइटिस-सी (Hepatitis C) और एचआईवी (HIV) यानी एड्स (Aids) के संक्रमण से पीड़ित मिले हैं. इससे स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया है. सभी पीड़ित बच्चे नाबालिग हैं. अस्पताल में सोमवार को उनके संक्रमित होने की जानकारी मिली है. इसके बाद यह जांच शुरू हो गई है कि संक्रमित होने का कारण क्या है. हालांकि पहली नजर में बच्चों के संक्रमण का कारण उन्हें चढ़ाए जाने से पहले डोनेशन के तौर पर मिले खून के वायरस टेस्ट में लापरवाही दिखाए जाने का मामला लग रहा है. इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों का कहना है कि पक्के तौर पर संक्रमण का कारण पिनपॉइंट करना बेहद मुश्किल है. यह भी स्पष्ट नहीं है कि इन सभी को LLR में ब्लड ट्रांसफ्यूजर के दौरान यह बीमारी लगी है या बीच में निजी अस्पतालों में ट्रांसफ्यूजन के दौरान ये संक्रमण की चपेट में आए हैं.

6 से 16 साल की उम्र के हैं सभी बच्चे

Hindustan Times की रिपोर्ट के मुताबिक, इन बच्चों में से सभी की उम्र 6 साल से 16 साल के बीच है. इनमें 7 बच्चों के हेपेटाइटिस-बी से, 5 को हेपेटाइटिस-सी से और 2 को एचआईवी से पीड़ित पाया गया है. ये सभी बच्चे कानपुर शहर, कानपुर देहात, फर्रूखाबाद, औरेया, इटावा और कन्नौज के रहने वाले हैं.

संबंधित विभागों में रेफर किए हैं बच्चे

रिपोर्ट के मुताबिक, LLR अस्पताल के पीडियाट्रिक्स विभाग के एचओडी डॉ. अरुण आर्या के मुताबिक, बच्चों में ऐसे गंभीर संक्रमण के लक्षण मिलना चिंता की बात है. हालांकि ब्लड ट्रांसफ्यूजन में यह रिस्क बना रहता है. इस सेंटर के नोडल ऑफिसर डॉ. आर्या ने बताया कि पीड़ित बच्चों में से हेपेटाइटिस से संक्रमित मरीजों को गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग और HIV पेशेंट्स को कानपुर में संबंधित रेफरल सेंटर में रेफर कर दिया गया है. 

HIV संक्रमण को लेकर ज्यादा हंगामा

अस्पताल में सबसे ज्यादा हंगामा बच्चों के अंदर HIV संक्रमण पाए जाने को लेकर मचा हुआ है. डॉ. आर्या ने भी इस बात को माना है कि यह बात चिंताजनक है. सभी पीड़ित बच्चे पहले से ही थैलेसीमिया कंडीशन (Thalassemia condition) के कारण जिंदगी को लेकर जोखिम में जी रहे थे. माना जा रहा है कि इन संक्रमण के बाद अब उनके लिए खतरा और ज्यादा बढ़ गया है. साथ ही उन्हें अब बाकी सब मरीजों से पहले खून चढ़ाए जाने की प्राथमिकता में रखना होगा.

180 थेलैसीमिया मरीजों का ब्लड ट्रांसफ्यूजन होता है LLR में

LLR अस्पताल के थैलेसीमिया सेंटर में फिलहाल 180 मरीजों का इलाज चल रहा है. इन मरीजों का ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया जाता है. साथ ही इन सभी का हर 6 माह में एक बार वायरल बीमारियों की चपेट में आने के खतरे के चलते सघन जांच की जाती है. इन 180 मरीजों में ही संक्रमित मिले 14 बच्चे भी शामिल हैं. अस्पताल प्रबंधन के मुताबिक, इन 14 बच्चों ने अर्जेंट जरूरत पड़ने पर निजी और जिला अस्पतालों में भी ब्लड ट्रांसफ्यूजन कराया है. ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि उन्हें ये बीमारी LLR में इलाज के दौरान मिली है या बाहर किसी अस्पताल में हुई लापरवाही के कारण ये संक्रमण की चपेट में आए हैं.

क्या होती है डोनेशन से ट्रांसफ्यूजन तक की प्रक्रिया

डॉ. आर्या के मुताबिक, जब कोई ब्लड डोनेट करता है तो उस खून की लैब में जांच होती है. जांच में यह देखा जाता है कि यह खून दूसरे व्यक्ति के उपयोग के लिए सुरक्षित है या नहीं. इस दौरान उस खून की हर बीमारी के लिए सघन जांच होती है. हालांकि इंसान में एक ऐसी स्थिति भी होती है, जब वह संक्रमण की चपेट में आ चुका होता है, लेकिन उसके खून के टेस्ट में वायरस पकड़ में नहीं आता है. इसे मेडिकल टर्म्स में 'विंडो पीरियड' कहा जाता है. इस पीरियड में यदि वह किसी को खून देता है और उसके खून में वायरस होता है तो दूसरा व्यक्ति भी संक्रमित हो जाता है.

ब्लड ट्रांसफ्यूजन के समय उठाने चाहिए थे ये कदम

डॉ. आर्या के मुताबिक, ब्लड ट्रांसफ्यूजन के समय डॉक्टरों द्वारा बच्चों को हेपेटाइटिस-बी संक्रमण रोकने वाली वैक्सीन भी लगानी चाहिए थी. उन्होंने कहा, जिला स्तरीय अस्पतालों को वायरल हेपेटाइटिस कंट्रोल प्रोग्राम के तहत इस संक्रमण की जड़ खोजनी चाहिे. इसके लिए एक टीम गठित की जानी चाहिए, जो हेपेटाइटिस और एचआईवी के संक्रमण की शुरुआत वाले स्थान को चिह्नित करे.

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