डीएनए हिंदी : कल विश्व गोरैया दिवस था. गोरैयों(Sparrows) को मनुष्यों के सबसे शुरूआती मित्रों में गिना जाता है. कभी हमारे आस-पास और घर की छतों पर रहने वाले गोरैये अब अचानक तेज़ी से ग़ायब हो रहे हैं. गोरैयों का ग़ायब होना एक तरह से खाद्य शृंखला पर संकट के तौर पर भी देखा जा रहा है. माना जाता है कि ये छोटी चिड़ियां किसानों की भी अच्छी दोस्त होती हैं. इन्हें बचाने के लिए जीव संरक्षक तरह-तरह के जागरूकता अभियान ला रहे हैं. भारत के दक्षिणी-पश्चिमी राज्य ओडिशा के गंजाम(Ganjam, Odisha) ज़िले के बागाझरी गांव में गोरैयों को बचाने के अद्भुत उपाय किए गए. जानिए कैसे इस गांव में यह चिड़िया अपनी पूरी संख्या में चहचहा रही है?
गांव में बचे थे केवल पांच गोरैये
ओडिशा की राजधानी भुबनेश्वर से तक़रीबन 175 किलोमीटर दूर बसे गंजामGanjam, Odisha) ज़िले के इस गांव में दसेक साल पहले आंचलिक विकाश परिषद् (ABP) ने वन विभाग के साथ मिलकर एक जागरूकता अभियान चलाया था. इस अभियान में वे लोगों से गोरैयों को बचाने की बात करते थे. आंचलिक विकाश परिषद् के अध्यक्ष सागर पात्रा के अनुसार जिस वक़्त यह अभियान शुरू किया गया था, गांव भर में गोरैयों की कुल आबादी केवल पांच थी. यह संख्या अब लगभग 200 है.
इस अभियान में जन-भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए लोगों के बीच मिट्टी के बर्तन और आर्टिफिशियल घोंसले बंटवाए गए. घरों में इसे टांगा गया कि गोरैया आएं और उन जगहों पर अपना ठिकाना बनाएं. इस गांव का साथ देने के लिए पड़ोसी गाँव लंजिया और गुंथाबाधा के लोग भी साथ आए. सागर पात्रा बताते हैं कि अब तक हम दो सौ से अधिक कृत्रिम घोंसले लगा चुके हैं. पात्रा उम्मीद करते हैं कि गोरैयों की संख्या में और वृद्धि होगी.
गायब हो रही प्रजातियों में गोरैयों पर नहीं जा रहा है लोगों का ध्यान
गोरैयों को जैव विभिन्नता के प्रमुख अंग के तौर पर देखा जाता है. उनका ग़ायब होना एक पूरे जैविक तंत्र पर असर डाल सकता है पर गायब हो रहे जीवों की सूची में इन पर विरले ही ध्यान दिया जा रहा है.