जब Nagaur और Bikaner की रियासतों के बीच तरबूज को लेकर बहा था हजारों सिपाहियों का खून!

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Feb 03, 2022, 12:45 PM IST

तरबूज को लेकर लड़ी गई इस लड़ाई को 'मतीरे की राड़' के नाम से इतिहास में दर्ज है.

डीएनए हिंदी: आपने अपने जीवन में कई युद्धों के बारे में  पढ़ा और सुना होगा. इनके कारण भी बड़े रहे होंगे. इतिहास की बात करें तो उस समय अक्सर राज्यों के विस्तार को लेकर लड़ाइयां होती रहती थीं लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे इतिहास में एक युद्ध फल के कारण भी लड़ा गया था? इसे 'मतीरे की राड़' के नाम से जाना जाता है.

दरअसल राजस्थान के कुछ हिस्सों में तरबूज को मतीरा कहा जाता है और राड़ का मतलब झगड़ा होता है. यानी यह एक ऐसा युद्ध था जो महज एक तरबूज के लिए लड़ा गया था. इतना ही नहीं, इस लड़ाई में हजारों सैनिकों ने अपनी जान गंवाई थी.

क्या थी वजह? 
यह लड़ाई 1644 ईस्वी में लड़ी गई थी. कहा जाता है कि बीकानेर रियासत के आखिरी गांव सीलवा में एक मतीरे की बेल लगी हुई थी लेकिन उसका फल नागौर रियासत के आखिरी गांव जाखणियां में उगा. ये दोनों गांव ही अपनी-अपनी रियासतों की आखिरी सीमा पर मौजूद थे. इसके चलते सीलवा गांव के लोगों का कहना था कि बेल उनके यहां का है इसलिए फल उनका है, वहीं नागौर रियासत के लोगों का कहना था कि क्योंकि फल उनके यहां पर उगा है इसलिए इस फल पर उनका अधिकार है.

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राजा थे लड़ाई से अनजान!
बस इसी बात को लेकर दोनों रियासतों के बीच बहस होने लगी और देखते ही देखते यह बहस एक खूनी लड़ाई में तब्दील हो गई. हालांकि दोनों रियासतों के राजाओं को इस लड़ाई के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. बीकानेर की ओर से सेना की अगुवाई रामचंद्र मुखिया कर रहे थे जबकि नागौर सेना की अगुवाई सिंघवी सुखमल ने की थी.

हजारों सैनिकों ने गवाई थी जान
इधर जैसे ही युद्ध की जानकारी राजाओं को लगी, उन्होंने मुगल दरबार से इसमें हस्तक्षेप करने की मांग की. हालांकि तब तक बहुत देर हो गई थी. बीकानेर की सेना जीत चुकी थी और दोनों तरफ से हजारों सैनिक काल के गाल में समा चुके थे.

राजस्थान बीकानेर नागौर मतीरे की राड़