Who is Rani Chennamma: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को चुनावी मंच से पू्र्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर निशाना साधा है. कर्नाटक के बेलगावी में जनसभा के दौरान पीएम मोदी ने राहुल गांधी के उस बयान का जिक्र किया, जिसमें राहुल ने देश के राजा-महाराजाओं को अत्याचारी और गरीबों की जमीन हड़पने वाला बताया है. पीएम मोदी ने कहा, कांग्रेस के शहजादे ने इस बयान के जरिये छत्रपति शिवाजी महाराज, कित्तूर की रानी चेन्नम्मा जैसे महान लोगों का अपमान किया है, जिनकी देशभक्ति आज भी सबको प्रेरित करती है. इसके उलट नवाबों, बादशाहों और सुल्तानों के अत्याचारों को लेकर शहजादे (राहुल) के मुंह पर ताला लग जाता है. प्रधानमंत्री मोदी के कर्नाटक में चुनावी मंच से रानी चेन्नम्मा का जिक्र करने के बाद उन्हें लेकर चर्चा शुरू हो गई है. आइए आपको भी रानी चेनम्मा के बारे में बताते हैं.
'कर्नाटक की लक्ष्मीबाई' कहलाती हैं रानी चेन्नम्मा
रानी चेन्नम्मा की कहानी भी झांसी का रानी लक्ष्मीबाई जैसी ही है, जिन्होंने गोद लिए बच्चे को राजगद्दी का हक दिलाने और इसकी आड़ में अंग्रेजों को अपना राज्य हड़पने से रोकने की कोशिश की थी. रानी चेन्नम्मा को अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम से भी पहले सशस्त्र विद्रोह करने वाली पहली भारतीय शासक माना जाता है. कर्नाटक की कित्तूर रियासत की रानी चेन्नम्मा ने मुट्ठी भर सैनिकों के साथ अंग्रेजों की सेना को कई बार धूल चटाई, जिसके लिए उनके ऊपर गांव-देहातों में आज भी किस्से-कहानी सुनाए जाते हैं.
छोटे से गांव में जन्मी, फिर बनीं रानी
कर्नाटक के मौजूदा बेलगावी जिले के छोटे से गांव ककाती में रानी चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर, 1778 को हुआ था. उनकी खूबसूरती और अक्लमंदी के कारण वे कित्तूर रियासत के राजा मल्लासारजा को भा गईं, जो देसाई राजवंश के शासक थे. राजा मल्लासारजा के साथ विवाह होने पर चेन्नम्मा कित्तूर की रानी बन गईं. उनके बेटे की साल 1824 में मौत हो गई, जिसके बाद उन्होंने एक बच्चे शिवलिंगप्पा को गोद लेकर अपनी गद्दी का वारिस घोषित किया. उस समय भारत को अपना गुलाम बना रही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने कित्तूर रियासत हड़पने के लिए शिवलिंगप्पा को गद्दी का वारिस मानने से इंकार कर दिया और उसे राज्य से निर्वासित करने का आदेश दिया, जिसे रानी चेन्नम्मा ने ठुकरा दिया. अंग्रेजों की नजर कित्तूर के खजाने पर थी, जिसकी कीमत उस समय करीब 15 लाख रुपये आंकी गई थी.
कित्तूर पर कब्जे के लिए अंग्रेजों ने किया हमला
रानी चेन्नम्मा ने बॉम्बे प्रेसिडेंसी के गवर्नर एलफिंस्टन को पत्र लिखकर कित्तूर रियासत के मामले में हड़प नीति नहीं लागू करने की चेतावनी दी. इस पर एलफिंस्टन ने कित्तूर पर हमले के लिए फौज भेज दी. अंग्रेजों ने अक्टूबर, 1824 में 20,000 सिपाहियों और 400 बंदूकधारियों के साथ कित्तूर पर हमला किया, लेकिन रानी चेन्नम्मा ने छोटी सी सेना के साथ भी उन्हें धूल चटा दी. अंग्रेजों के एजेंट सेंट जॉन ठाकरे के साथ ही अंग्रेजी सेना के बहुत सारे सैनिक मारे गए. दो ब्रिटिश अधिकारी वॉल्टर एलियटऔर स्टीवेंसन बंधक बना लिए गए. इस युद्ध में रानी चेन्नम्मा के साथ उनके सहयोगी अमातर बेलप्पा ने बहुत वीरता दिखाई.
अंग्रेजों ने दिया धोखा, माफी मांगकर दोबारा किया हमला
अपने अफसरों के बंधक बनने से चिंतित अंग्रेजों ने रानी चेन्नम्मा को धोखा दिया. उन्होंने दोबारा हमला नहीं करने का वादा किया, जिस पर रानी ने ब्रिटिश अफसर रिहा कर दिए. लेकिन अंग्रेजों ने दगाबाजी करते हुए दोबारा हमला कर दिया. ब्रिटिश जनरल चैपलिन के नेतृत्व में पहले से भी ज्यादा बड़ी सेना ने हमला किया, लेकिन रानी चेन्नम्मा ने अपने सहयोगियों संगोल्ली रयन्ना और गुरुसिद्दप्पा के साथ मिलकर अंग्रेजों को नाको चने चबा दिए. सोलापुर का सब कलेक्टर मुनरो मार दिया गया.
अपनों की धोखेबाजी से हारीं युद्ध, कैद में हुई मौत
रानी चेन्नम्मा की सेना जब युद्ध में अंग्रेजों पर भारी पड़ रही थी, तभी उनकी सेना में शामिल गद्दारों ने रानी के मरने की अफवाह फैला दी. इससे रानी की सेना का मनोबल टूट गया और अंग्रेज भारी पड़ गए. रानी को गिरफ्तार कर लिया गया. अंग्रेजों ने उन्हें बेलहोंगल के किले में कैद किया, जहां कैद में ही उनका 21 फरवरी 1829 को स्वर्गवास हो गया. रानी चेन्नम्मा की समाधि बेलहोंगल में ही बनाई गई है. उनकी वीरता का जश्न आज भी हर साल 22 से 24 अक्टूबर तक कित्तूर में उत्सव की तरह मनाया जाता है. दिल्ली संसद परिसर में भी कित्तूर की रानी चेन्नम्मा की प्रतिमा लगी हुई है.
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