Shiv Sena Symbol Row: शिंदे गुट को क्यों सौंपी 'शिवसेना' की कमान? चुनाव आयोग ने बताई फैसले की वजह

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Feb 17, 2023, 11:35 PM IST

शिंदे गुट के पास रहेगी शिवसेना

Shiv Sena Name Symbol Row: चुनाव आयोग ने कहा कि पार्टी का संविधान, जिस पर ठाकरे गुट पूरा भरोसा कर रहा था, वह अलोकतांत्रिक था.

डीएनए हिंदी: चुनाव आयोग (Election Commission) ने शुक्रवार को आदेश दिया कि शिवसेना (Shiv Sena) का नाम और पार्टी का सिंबल 'धनुष और तीर' एकनाथ शिंदे गुट के पास ही रहेगा. चुनाव आयोग ने इसके पीछे की वजह बताते हुए कहा कि शिवसेना का वर्तमान संविधान अलोकतांत्रिक है. बिना किसी चुनाव पदाधिकारियों के रूप में एक मंडली के लोगों को अलोकतांत्रिक रूप से नियुक्त करने के चलते यह बिगड़ गया. आयोग ने कहा कि इस तरह की पार्टी संरचना विश्वास हासिल नहीं कर सकती है.

चुनाव आयोग ने कहा कि कि राजनीतिक दलों के संविधान में पदाधिकारियों के स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव का प्रावधान होना चाहिए. आयोग ने आंतरिक विवादों के समाधान के लिए एक स्वतंत्र व निष्पक्ष प्रक्रिया पर भी जोर दिया. इन प्रक्रियाओं में संशोधन करना कठिन होना चाहिए. संगठनात्मक सदस्यों का बड़ा समर्थन सुनिश्चित करने के बाद ही संशोधन किया जाना चाहिए.

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आयोग ने कहा कि पार्टी के संविधान को अक्सर बिना किसी चुनाव के पदाधिकारियों के रूप में एक मंडली के लोगों को अलोकतांत्रिक रूप से नियुक्त करने के लिए ‘विकृत’ किया जाता है. चुनाव आयोग ने पाया कि शिवसेना में मूल संविधान को गुपचुप तरीके से अलोकतांत्रिक तरीकों से लाया गया, यानी ऐसे प्रावधान की गए जिससे पार्टी निजी जागीर जैसी हो गई. 

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चुनाव आयोग ने बताई असली वजह
ऐसे तौर तरीकों को चुनाव आयोग ने 1999 में ही नकार दिया था, लेकिन बाद में इन्हें गुपचुप तरीके से शामिल किया गया. उन्होंने कहा कि ऐसी पार्टी भरोसा जगाने में असफल हो सकती है. आयोग ने कहा कि शिवसेना का 2018 में संशोधित किया गया संविधान आयोग के रिकॉर्ड में नहीं है. आयोग ने कहा कि उसने पाया कि पार्टी का संविधान, जिस पर ठाकरे गुट पूरा भरोसा कर रहा था, वह अलोकतांत्रिक था.

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शिंदे गुट को क्यों दी शिवसेना?
चुनाव आयोग ने अपने 78 पन्नों के आदेश में कहा कि शिंदे गुट को इसलिए पार्टी की कमान सौंपी गई कि साल 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना के 55 विजयी उम्मीदवारों में से एकनाथ शिंदे का समर्थन करने वाले विधायकों के पक्ष में लगभग 76 फीसदी मत पड़े. जबकि 23.5 प्रतिशत मत उद्धव ठाकरे धड़े के विधायकों को मिले. आयोग ने कहा कि प्रतिवादी (ठाकरे गुट) ने चुनाव चिह्न और संगठन पर दावा करने के लिए पार्टी के 2018 के संविधान पर बहुत भरोसा किया था, लेकिन पार्टी ने संविधान में संशोधन के बारे में आयोग को सूचित नहीं किया था.

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