Domestic Violence Case: FIR कोई पॉर्न साहित्य नहीं, 'कूलिंग पीरियड' के दौरान गिरफ्तारी भी नहीं: हाई कोर्ट

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Jun 16, 2022, 01:57 PM IST

घरेलू हिंसा

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने घरेलू हिंसा से जुड़े एक मामले में बड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट का कहना है कि FIR पॉर्न साहित्य नहीं हो सकता है...

डीएनए हिन्दी: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने घरेलू हिंसा से जुड़े एक मामले में बड़ी टिप्पणी की है. अदालत ने इस मामले में महिला की शिकायत (FIR) की तुलना 'अश्लील साहित्य' से कर दी है. साथ ही यह स्पष्ट किया है कि कूलिंग पीरियड (FIR दर्ज होने के बाद 2 महीने तक का समय) के दौरान गिरफ्तारी नहीं हो सकती है.

महिला ने शिकायत में अपने पति, ससुर और देवर के ऊपर यौन शोषण करने का आरोप लगाया है. साथ ही दहेज के लिए प्रताड़ित करने का भी आरोप है. इस मामले में महिला ने अपनी सास और ननद को भी आरोपी बनाया है.

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यह मामला उत्तर प्रदेश के पिलखुआ का है. पिलखुआ थाने में आईपीसी की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है. 498 A(वैवाहिक कलह, क्रूरता), 307 (हत्या की कोशिश), 120-B (आपराधिक षड्यंत्र), 323 (व्यक्तिगत रूप से चोट पहुंचाना) जैसी धाराएं लगी हैं.

महिला ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया है कि मेरे ससुर ने मुझसे सेक्शुअल संबंध की मांग की. वहीं, मेरे देवर ने जबरदस्ती करने की कोशिश की. साथ ही महिला ने अपनी सास और ननद पर अबॉर्शन के लिए दबाव बनाने का आरोप लगाया है. यही नहीं महिला ने अपने पति पर जबरन और अप्राकृति सेक्स करने के भी आरोप लगाए हैं. महिला का कहना है कि मुझसे बराबर दहेज की मांग की जाती थी और इसके लिए मुझे अपमानित किया जाता और मेरे साथ मारपीट भी की जाती थी.

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इस केस पर जस्टिस राहुल चतुर्वेदी ने कहा कि, एफआईआर वह जगह है जहां अपराधों के बारे में जानकारी दी जाती है, सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के बारे में जानकारी दी जाती है. लेकिन यह कोई पॉर्न साहित्य नहीं है, जहां इसकी चित्रमय प्रस्तुति की जाए.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस मामले से संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि आईपीसी की धारा 498ए के तहत दर्ज वैवाहिक कलह के मामलों में 2 महीने की 'कूलिंग पीरियड' की समाप्ति से पहले कोई गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए.

इसके अलावा, इस पीरियड के दौरान, मामले को तुरंत परिवार कल्याण समिति (एफडब्ल्यूसी) को भेजा जाएगा जो वैवाहिक विवाद को सुलझाने का प्रयास करेगी. आईपीसी की धारा 498ए में किसी महिला के पति या उसके रिश्तेदारों को क्रूरता करने पर सजा का प्रावधान है.

जस्टिस राहुल चतुर्वेदी ने मुकेश बंसल (ससुर), मंजू बंसल (सास) और साहिब बंसल (पति) द्वारा दायर याचिका में आदेश पारित किया, जिसमें निचली अदालत द्वारा उनके निर्वहन आवेदन को खारिज करने को चुनौती दी गई थी.

अदालत ने ससुराल वालों की आरोपमुक्त करने की अर्जी मंजूर कर ली, लेकिन पति की याचिका खारिज करते हुए निचली अदालत में पेश होने का निर्देश दिया.

आईपीसी की धारा 498ए के दुरुपयोग के बारे में कोर्ट ने कहा, 'आजकल हर वैवाहिक मामले को कई गुना बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है, जिसमें पति और परिवार के सभी सदस्यों पर दहेज संबंधी अत्याचार के आरोप लगे होते हैं.' हालांकि, अदालत ने पति और ससुराल वालों द्वारा कथित यौन उत्पीड़न और दहेज की मांग के आरोप की भी निंदा की.

कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि एफडब्ल्यूसी को आईपीसी की धारा 498ए और आईपीसी की अन्य धाराओं में सिर्फ उन्हीं मामलों को भेजा जाएगा जिनमें 10 साल से कम की सजा हो, लेकिन महिला को कोई शारीरिक चोट न हो.

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