Azamgarh by Election: अखिलेश यादव का ऐतिहासिक फैसला, यादव बहुल आजमगढ़ से उतारा दलित चेहरा

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Jun 03, 2022, 05:01 PM IST

अखिलेश यादव

यादव और मुस्लिम बहुल आजमगढ़ लोकसभा सीट से अखिलेश यादव ने दलित उम्मीदवार उतारा है. एसपी ने सुशील आनंद को कैंडिडेट बनाया है...

डीएनए हिन्दी: उत्तर प्रेदश के आजमगढ़ (Azamgarh) से बड़ी खबर आ रही है. समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के मुखिया अखिलेश यादव ने आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव के लिए सपा के कैंडिडेट के नाम की घोषणा कर दी है. शुक्रवार को अखिलेश यादव ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए सुशील आनंद को प्रत्याशी बनाया है. सुशील राजनीति में बिल्कुल नए हैं. लेकिन, सबसे बड़ी बात यह है कि वह एक दलित चेहरा हैं.

यादव बहुल आजमगढ़ लोकसभा सीट से दलित उम्मीदवार को कैंडिडेट को उतार कर अखिलेश ने नया दांव चला है. गौरतलब है कि आजमगढ़ सीट पर हमेशा यादव या मुस्लिम कैंडिडेट जीतते आए हैं. अब देखना लाजिमी होगा कि अखिलेश यादव का यह दांव कितना सफल होगा.

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सुशील आनंद के पिता बलिहारी बाबू बीएसपी और बामसेफ के संस्थापक सदस्य रहे हैं. अप्रैल 2021 में बलिहारी बाबू की कोरोना से मौत हो गई थी. उसके कुछ दिन पहले ही वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे.

अब माना जा रहा था कि आजमगढ़ सीट से अखिलेश यादव अपनी पत्नी डिंपल यादव या फिर बाहुबली रामाकांत यादव को कैंडिडेट बना सकते हैं. लेकिन, दलित चेहरा सुशील आनंद को कैंडिडेट बनाकर अखिलेश ने सबको हैरान कर डाला है.

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ध्यान रहे कि पिछले विधानसभा चुनाव में पूरे यूपी में भले बीजेपी की लहर रही हो, लेकिन आजमगढ़ जिले में बीजेपी का खाता तक नहीं खुला पाया था. जिले की सभी 10 सीटों पर समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की थी.  गौरतलब है कि आजमगढ़ लोकसभा सीट पर यादव या मुस्लिम कैंडिडेट जीतते आए हैं. 2014 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने बीजेपी के रामाकांत यादव को हराया था. वहीं 2019 में अखिलेश यादव ने बीजेपी कैंडिडेट दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को हराया था.

बहुजन समाजवादी पार्टी ने आजमगढ़ से गुड्डू जमाली को कैंडिडेट बनाया है. बीजेपी ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव के लिए 23 जून को वोटिंग है.

क्यों उतारा दलित चेहरा
प्रदेश के राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अखिलेश खास रणनीति के तहत जनरल सीट से दलित को कैंडिडेट बनाया है. अखिलेश का मानना है कि बीएसपी खात्मे की तरफ बढ़ रही है. दलित उससे दूर हो रहे हैं. ऐसे में दलितों के बीच यह संदेश देने के लिए कि समाजवादी पार्टी उनके साथ है, सुशील आनंद को कैंडिडेट बनाया है. पिछले विधानसभा में यह ट्रेंड देखने को मिला था कि बड़ी संख्या में दलित वोटरों ने बीएसपी का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था, जिसका खामियाजा अखिलेश यादव को भुगतना पड़ा था.

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