डीएनए हिन्दी: उत्तर प्रदेश में कई ऐसे गांव हैं जहां आज भी दशहरा (Dussehra) नहीं मनाया जाता और न ही रावण (Ravana) का पुतला फूंका जाता है. बागपत का बड़ागांव इन्हीं में से एक है. रेवेन्यू रिकॉर्ड में आज भी इस गांव का नाम आज भी 'रावण' है. यहां 'राक्षसराज रावण' का पुतला कभी नहीं जला और न ही दशहरा मनाया गया.
बताया जाता है कि यह गांव बेहद प्राचीन हैं. इसकी पुष्टि यहां मिले मृदभांड भी करते हैं. इतिहासकार इन मृदभांडों को उत्तर वैदिक काल का मानते हैं. ऐसा माना जाता है कि हिमालय में कठिन साधना करके रावण ने 'शक्ति' प्राप्त की थी. इसके बाद रावण इस गांव से गुजरा और एक किसान को अपनी 'शक्ति' दे दी, लेकिन वह किसान उस 'शक्ति' का भार सहन नहीं कर पाया और उसे जमीन पर रख दिया.
बड़ागांव के मंदिर के पुजारी गौरी शंकर ने बताया कि हमारा गांव एक प्राचीन गांव है. हमेशा से इसे रावण कहा जाता है. हम पीढ़ियों से राक्षसराज से जड़ी दंत कथाएं सुनते आ रहे हैं. गौरी शंकर बताते हैं कि रावण ने 'शक्ति' प्राप्त करने के लिए सालों हिमालय में तपस्या की.
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गौरी शंकर आगे बताते हैं कि रावण 'शक्ति' प्राप्त कर जब पहाड़ से लौटने लगे तो इस गांव से गुजरे. उन्होंने 'शक्ति' एक किसान को सौंप दी. लेकिन, किसान उसका वजन सहन नहीं कर सका और उसे जमीन पर रख दिया. इसके बाद से 'शक्ति' ने रावण के साथ जाने से इनकार कर दिया. उसी जगह पर रावण ने मां मनसा देवी के नाम से एक मंदिर बनवाया. यह मंदिर आज भी है.
यह गांव बेहद प्राचीन है. इतिहासकार डॉक्टर केके शर्मा बताते हैं कि गांव में किए गए पुरातात्विक सर्वे में हमें चित्रित मृदभांग के बर्तन मिले हैं. ये बर्तन ईसा से 1,500 साल पहले के हैं. इसलिए हम दावे के साथ कह सकते हैं कि इस गांव का अस्तित्व बहुत पहले से है.
ऐसा की एक गांव गौतमबुद्धनगर में भी है. बिसरख गांव में लोग दशहरा नहीं मनाते हैं. यहां की करीब 5,500 आबादी के लिए यह दुख का दिन है. गांव वालों का मानना है कि बिसरख में ही रावण और उसके दो भाइयों का जन्म हुआ था.
आगरा में सारस्वत ब्राह्मण समाज भी राक्षसराज रावण का पुतला नहीं जलाता है बल्कि उसकी पूजा करता है. कहते हैं कि रावण भगवान शिव का बड़ा भक्त था. वह ज्ञान का भंडार था.सारस्वत ब्राह्मण खुद को रावण का वंशज मानते हैं. इसलिए वह रावण का सम्मान करते हैं. आगरा में लंकापति दशानन पूजा समिति के संयोजक डॉक्टर मदन मोहन शर्मा कहते हैं कि रावण के बारे में कई अच्छी बातें हैं जिसे आज सबके सामने लाने की जरूरत है. साथ ही उनका मानना है कि रावण एक राजा था और राजा का पुतला नहीं जलाना चाहिए. हां, बुराई को नष्ट करना चाहिए.
यूपी के बिजनौर में भी एक गांव है जहां के लोग दशहरा नहीं मनाते हैं. हालांकि, इसका राक्षसराज रावण से कुछ लेना-देना नहीं है. बताया जाता है कि 15वीं शताब्दी में इलाके के दो प्रमुख जातीयों में संघर्ष हुआ था. ये दोनों जातीयां थीं त्यागी और ठाकुर. दोनों के बीच लंबा संघर्ष था. इस मामले को सुलझाने के लिए दशहरा का दिन तय हुआ. बताया जाता है कि दशहरा के दिन त्यागियों ने हमला बोल दिया. इस दौरान में भीषण नरसंहार हुआ. तब से ठाकुर इसे दुख के दिन के रूप में याद करते हैं और दशहरा का त्योहार कभी नहीं मनाते हैं.
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