डीएनए हिन्दी: महाराष्ट्र का सियासी बवाल (Maharashtra Political Crisis) थमने का नाम नहीं ले रहा है. महाविकास अघाड़ी की सरकार संकट में दिख रही है. शिवसेना के 55 में से 40 विधायक बागी नेता एकनाथ शिंदे के साथ फिलहाल गुवाहाटी में हैं. महाराष्ट्र के सियासी पंडितों की मानें तो इन सब परिस्थितियों के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे खुद जिम्मेदार हैं.
महाराष्ट्र में पिछला विधानसभा चुनाव शिवसेना और बीजेपी ने मिलकर लड़ा था. लेकिन, कुछ मुद्दों को लेकर दोनों दलों के बीच का टकराव इतना बढ़ गया कि दोनों ने अपनी राहें अलग कर लीं. दशकों से जिस कांग्रेस और एनसीपी से शिवसेना लड़ती रही उद्धव ने उन्हीं पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बना ली. लेकिन, यहां शिवसेना प्रमुख ने एक बड़ी गलती कर दी. वह गलती थी मुख्यमंत्री का पद खुद लेना. यहीं से शिवसेना में धीरे-धीरे बगावत की आग सुलगने लगी.
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शिवसेना की परंपरा रही थी कि ठाकरे परिवार सत्ता से खुद को दूर रखता था. इस वजह से पार्टी में परिवार का रुतबा और दबदबा बरकरार रहता था. उद्धव इस परंपरा को तोड़ते हुए खुद सीएम बन गए और अपने बेटे को आदित्य ठाकरे को मंत्री बना दिया.
दरअसल एकनाथ शिंदे शिवसेना के ताकतवर नेता रहे हैं. वह खुद को सीएम के प्रबल दावेदार मान रहे थे. शिंदे पार्टी और सरकार में आदित्य ठाकरे के बढ़ते प्रभाव की वजह से भी खासे नाराज थे. उन्होंने ठाकरे परिवार को सबक सिखाने की ठान ली थी. बस मौके की तलाश में थे.
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महाराष्ट्र से जुड़े सिसायी पंडितों की मानें तो उद्धव की छवि अपने पिता की तरह जादुई भी नहीं है. बाला साहेब की तुलना में सरकार और पार्टी में उनकी पकड़ भी कमजोर है. साथ ही सत्ता का हिस्सा बनकर उद्धव ने कार्यकर्ताओं के बीच अपने परिवार के नैतिक प्रभाव को खत्म कर दिया.
अब स्थिति यह है कि सरकार तो सरकार उद्धव के हाथ से पार्टी भी निकलती नजर आ रही है. यही नहीं अगर सरकार जाती है और पार्टी टूट जाती है तो ठाकरे परिवार के लिए सत्ता और साख दोनों जाती दिख रही है.
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