डीएनए हिन्दी: जम्मू एवं कश्मीर (Jammu and Kashmir) में आर्टिकल 370 (Article 370) हटने के बाद आतंकवादियों के रणनीति में भी बदलाव देखने को मिल रहा है. अब आतंकी सुरक्षा बलों से सीधे मुठभेड़ की बजाय टारगेट किलिंग पर जोर दे रहे हैं. उनकी यह रणनीति घाटी में दहशत फैलाने की है. आतंकी एक बार फिर घाटी में 90 के दशक का माहौल खड़ा करना चाहते हैं. आइए हम जानने की कोशिश करते हैं कि घाटी में आर्टिकल 370 हटने के बाद कितने आतंकी वारदात हुए हैं और इन घटनाओं में कितने मासूम लोग मारे गए हैं.
जम्मू और कश्मीर में 5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 हटाई गई थी. कश्मीर में आर्टिकल 370 के हटते ही वहां 890 केंद्रीय कानून लागू हो गए थे. ये कानून पूरे देश में लागू थे लेकिन आर्टिकल 370 की वजह से कश्मीर में नहीं लागू थे.
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शुरू में अलगाववादी ग्रुप यह दावा कर रहे थे कि आर्टिकल 370 हटने से कश्मीर में भारी खून-खराबा देखने को मिलेगा. लेकिन, केंद्र के सख्त रूख से ऐसा कुछ हुआ नहीं. हां, आतंकवादियों ने अपनी चाल जरूर बदल दी. अब वे सीधे मुकाबले की जगह घात लगाकर टारगेट किलिंग पर जोर देने लगे. लेकिन, कई मौकों पर सुरक्षा बलों के सामने उन्हें मुंह की खानी भी पड़ी.
5 अगस्त 2019 से लेकर 9 जुलाई 2022 तक के आंकड़े हमारे पास उपलब्ध हैं. आइए इनका हम विश्लेषण करते हैं. इस दौरान आतंकी हमलों में 128 सुरक्षाबल के जवान मारे गए. वहीं, इस दौरान कुल 118 आम नागरिकों की भी हत्या इन आतंकियों ने की. इन 118 लोगों में से 5 कश्मीरी पंडित भी शामिल हैं. इसके अलावा 16 ऐसे लोग थे जो सिख या हिन्दू थे. सबसे बड़ी जो बात है वह यह है कि इस दौरान एक भी सैलानी या तीर्थयात्री की हत्या नहीं हुई.
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अगर हम सिर्फ साल 2022 की बात करें अब तक आतंकी हमलों में 23 लोगों की हत्या हो चुकी है. इनमें 7 हिन्दू और 16 मुसलमान हैं.
एक आंकड़े के मुताबिक इस दौरान कश्मीर में कुल 541 आतंकी घटनाएं हुईं. इसमें 439 आतंकवादी मारे गए.
अगर हम इन घटनाओं की तुलना आर्टिकल 370 हटने से 3 साल पहले करें तो इसमें काफी गिरावट देखने को मिलेगी. एक आंकड़े के मुताबिक, 5 अगस्त 1016 से लेकर 4 अगस्त 2019 तक घाटी में आतंकवाद की 930 घटनाएं देखने को मिलीं. इन घटनाओं में सुरक्षा बल के 290 जवान शहीद हुए वहीं, 191 आम नागरिक भी मारे गए थे.
अगर तुलनात्मक अध्ययन करें तो आतंक की घटनाओं में काफी कमी देखने को मिलेगी लेकिन अब भी आतंकी घात लगाकर अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने से बाज नहीं आ रहे हैं.
अभी कुछ दिन पहले ही घाटी में टारगेट किलिंग पर रोक लगाने लिए राष्ट्रीय सुरक्षा प्लानर्स ने अपनी सलाह दी थी. उनका मानना था कि 1980-90 के दशक में पंजाब में आतंकवाद इसलिए खत्म हो पाया क्योंकि वहां लोकल थाना को ज्यादा से ज्यादा इनवॉल्व किया गया था. उनकी राय में कश्मीर में आतंकवाद को खत्म करने के लिए इसी पॉलिसी को अपनाने की जरूरत है.
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