डीएनए हिन्दी: एक तरफ उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में विकास के तमाम दावे किए जा रहे हैं दूसरी तरफ एक डराने वाली तस्वीरें सामने आई हैं. एक सर्वे के बाद यूपी के 30 जिलों में करीब 1,065 परिवार ऐसे पाए गए हैं जिनकी कहानी सुनकर आप सन्न रह जाएंगे. इन घरों का मुखिया न तो बुजुर्ग हैं और न ही जवान. इन घरों में नाबालिग बच्चे जी-तोड़ मेहनत कर अपना परिवार चला रहे हैं. खेलने की उम्र में इन बच्चों के कंधों पर छोटे भाई-बहनों और बीमार मां के पेट पालने की जिम्मेदारी है.
यह सर्वे किसी एनजीओ ने नहीं करवाई है. यह सर्वे उत्तर प्रदेश सरकार का है. पिछले 45 दिनों में 30 जिलों में यह सर्वे हुआ है. अब सरकार इन परिवारों को बाल श्रमिक विद्या योजना में शामिल कर तमाम सुविधाएं देने की तैयारी कर रही है.
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कानपुर में भी ऐसे 37 परिवार मिले हैं. इन बच्चों के संघर्ष की कहानी सुनकर आपकी आंखें नम हो जाएंगी. हिन्दुस्तान अखबार में छपी खबर के मुताबिक, कानपुर के गोपाल नगर के राज की उम्र 11 साल है. राज के पिता ठेला लगाते थे. करीब 3 साल पहले उनकी मौत हो गई. परिवार को भोजन के लाले पड़ गए. राज की मां सुधा बेहद बीमार रहती हैं. चल भी नहीं पातीं. राज की एक 9 साल की बहन भी है. ऐसे में राज के सामने भोजन का संकट था. वह सिर्फ कक्षा 2 तक ही पढ़ पाया है. वह कानपुर के ही श्याम नगर के एक करखाने में काम करता है. जो मजदूरी मिलती है उससे परिवार का लालन-पालन करता है.
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राज अकेला नहीं है, उसकी तरह और बच्चे हैं. कानपुर के ही अनुज की कहानी और दर्दनाक है. उसकी उम्र 12 साल है. दूसरी कक्षा के बाद उसने स्कूल नहीं देखा. उसके पिता की 7 साल पहले मौत हो गई थी. मां की किडनी खराब है. 9 साल का एक भाई दिव्यांग है. बहन सिर्फ 7 साल की है. वह एक करखाने में काम करने जाता है. उसे रोज की दिहाड़ी 125 रुपये मिलती है. उससे पूरे परिवार का भरण-पोषण करता है.
राज और अनुज की तरह 1,065 ऐसे परिवार हैं जिन घरों के मुखिया नाबालिग बच्चे हैं. खेलने-कूदने की उम्र में उनके कंधों पर परिवार चलाने की जिम्मेदारी है.
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