डीएनए हिंदी : यह हैरत का विषय है कि किस तरह पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू अचानक से आम आदमी पार्टी की तारीफ़ में मुब्तिला हो गए हैं जबकि यही सिद्धू पंजाब विधान सभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी और इसके नेताओं की सख्त आलोचना किया करते थे.
सिद्धू का यह कहना कि भगवंत मान काफ़ी ज़िम्मेदार व्यक्ति हैं और उनके साथ बिताए हुए अच्छे खासे वक़्त ने कांग्रेस हाई कमान में कई लोगों की त्योरियां चढ़ा दी हैं. ख़बर है कि पार्टी सिद्धू की कथित पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के लिए बाध्य कर दिया है.
सोमवार को मान से मुलाक़ात के बाद सिद्धू ने ट्वीट किया था कि 'सबसे रचनात्मक 50 मिनट खर्च हुए हैं.' उन्होंने पंजाब समर्थक एजेंडे को भी स्वर दिया और कहा कि मैंने सालों साल दिए हैं, उस दौरान आय के स्रोत तैयार करने के बारे में बात की है. पंजाब की समस्याओं को ख़त्म करने का यही एक तरीका है. मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस पर ध्यान दिया और कहा कि वे जनता की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे.
राजनाति के विशेषज्ञों के अनुसार, सिद्धू कांग्रेस में अपने राजनैतिक भविष्य को लेकर संशय में हैं और सम्भवतः वे नई पारी खेलने के लिए आप में मौक़ा तलाश रहे हैं. हालांकि ऐसी कोई भी बात बात सिद्धू या आप नेतृत्व के द्वारा नहीं कही गई है.
सिद्धू के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की गुज़ारिश
सिद्धू से जुड़े एक नज़दीकी शख़्स ने बताया कि "राजनीतिज्ञ अपने क़दमों के बारे में पहले नहीं बताते हैं पर वे इशारा देते हैं. सिद्धू की मान से मुलाक़ात एक इशारे के तौर पर ली जा सकती है कि वे अपनी विचारधारा में बदलाव ला सकते हैं. पहले भाजपा नेता रहे सिद्धू कोई पहली बार ऐसा नहीं कर रहे होंगे."
इस स्रोत के विश्लेषण पर इसलिए भी भरोसा किया जा सकता है कि 23 अप्रैल को पंजाब और चंडीगढ़ के ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की कमान संभालने वाले हरीश चौधरी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर सिद्धू के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की गुज़ारिश की थी क्योंकि सिद्धू ने पंजाब में कांग्रेस सरकार के काम-काज के तरीक़े पर सवाल उठाया था. इसके अतिरिक्त सिद्धू के पीपीसीसी चीफ अमरिंदर सिंह राजा से रिश्ते भी खटास भरे हुए थे.
Punjab Assembly Election : पारम्परिक पार्टियों से 'आम आदमी' का मोहभंग क्यों हुआ?
पार्टी शिविर से ठीक पहले उठाया यह कदम
सूत्रों को लगता है कि सिद्धू ने जानबूझकर मान से तब मिलना चुना जब कांग्रेस पार्टी का तीन दिन लम्बा चिंतन शिविर 13 मई से राजस्थान के उदयपुर में शुरू होने वाला है. यह सम्भवतः उनका पार्टी को यह सन्देश भेजने का तरीक़ा था कि उन्हें हलके में नहीं लिया जा सकता है, इससे पहले कि पार्टी उन पर किसी तरह की अनुशासनात्मक कार्रवाई करे.
अफवाह यह भी उड़ रही है कि सिद्धू अपने राजनैतिक करियर के लिए कोई सख्त कदम उठा सकते हैं, साथ ही आप के प्रमुख अरविन्द केजरीवाल भी कोई मशहूर सिख चेहरा अपने साथ रखना चाहेंगे ताकि किसी भी परिस्थिति में अगर भगवंत मान केजरीवाल के सामने कभी किसी भी तरह की चुनौती पेश करें तो उनके पास विकल्प तैयार रहे.
(लेखक रवींद्र सिंह रॉबिन वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह जी मीडिया से जुड़े हैं. राजनीतिक विषयों पर यह विचार रखते हैं.)
(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)