अकबर: वह राजा जिन्होंने अपना धर्म चलाया था

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Nov 15, 2021, 04:50 PM IST

भारत के महानतम राजाओं को गिनना शुरु किया जाये तो मुगल वंश के तीसरे और सर्वाधिक सफल शासक अकबर निस्संदेह प्रथम पंक्ति में दर्ज किये जाएंगे.

डीएनए हिन्दी : भारत के महानतम राजाओं को गिनना शुरु किया जाये तो मुगल वंश के तीसरे और सर्वाधिक सफल शासक अकबर निस्संदेह प्रथम पंक्ति में दर्ज किये जाएंगे. अकबर ग़ज़ब के लड़ाका बादशाह थे किन्तु उनकी जनता के प्रति समभाव की नीतियाँ भी बेहद शानदार थीं. लगभग 50 सालों तक दिल्ली पर शासन करने वाले अकबर 1556 ईस्वी में चौदह साल की उम्र दिल्ली की गद्दी पर बीते थे. बैरम खान अकबर के गाइड के तौर पर उनके साथ आये थे.

युद्ध, राजपूताना और महानता

गद्दी पर आरूढ़ होने के कुछ सालों के दरमियान ही अकबर का सैन्य अभियान अपनी रफ़्तार पकड़ने लगा. अकबर को महान अपनी सैन्य विजयों के अतिरिक्त उनकी प्रशासकीय सूझबूझ के लिए भी माना जाता है. कहा जाता है कि उत्तर में अकबर के शासन की सीमाएँ हिंदुकुश की पहाड़ियों तक जाती थीं वहीं दक्षिण में मालवा के हिस्से और नर्मदा नदी भी शामिल होती थी.

राजपूताना विजय अकबर की सबसे बड़ी जीतों में शामिल थी. राजपूतों पर आधिपत्य जमाने के क्रम में अकबर ने सबसे पहले आमेर के राजा भारमल के साथ संधि प्रस्ताव रखा और उनकी बेटी हीर कुंवर से शादी की. हीर कुंवर को कई जगह जोधा बाई के नाम से भी पुकारा गया है. राजा भारमल के पुत्र मान सिंह बाद में अकबर की सेना के प्रमुख सैन्य रक्षकों में से एक रहे जिन्होंने अकबर के लिए कई युद्ध जीते.

मेवाड़ के राजा राणा प्रताप से अकबर की लगातार तनातनी रही.  दोनों के मध्य कई बार युद्ध हुए और राणा प्रताप ने अपने राज्य के बड़े हिस्से को अकबर की दखल से आज़ाद रखा.

मनसबदारी, नवरत्न , प्रशासन और दीन ए इलाही

अकबर ने अपनी सेना में मनसबदारी प्रथा की शुरुआत की थी. मनसबदारी प्रथा के अनुसार सैन्य और असैन्य अधिकारियों को चलाने के लिए एक-एक मनसब दिया गया और इसके अनुसार ही उनका वेतन और भत्ता तय किया गया. यह सुचारू सत्ता के स्थानीयकरण का अच्छा रूप था.  

अकबर के दरबार में तानसेन, टोडरमल और बीरबल जैसे विशिष्ट लोग थे जो उनके नौ रत्नों में शामिल थे. टोडरमल के बारे में कहा जाता है कि उनके समय में ही ज़मीन मापने की शुरुआत हुई थी.

शुरुआत में कट्टर मुस्लिम रहे अकबर ने बाद में सूफ़ी मत से प्रभावित होकर और इस्लाम की तात्कालीन अराजकता से चिढ़ कर दीन ए इलाही की स्थापना की. इसे बहुत हद तक तिब्बती बौद्ध धर्म के क़रीब माना जाता है.  

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