चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य : जिसके शासन समय को स्वर्णयुग कहा जाता था 

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Nov 15, 2021, 05:18 PM IST

375 ईस्वी से 415 ईस्वी तक शासन करने वाले राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य  ने उज्जैन के शक आक्रमणकारियों को हराकर अपनी सत्ता स्थापित की थी

डीएनए हिन्दी: क्या आपने कभी उस राजा के विषय में सुना है जिसके शासन काल को  स्वर्णयुग कहा जाता है? अगर हाँ तो आप चन्द्रगुप्त द्वितीय या चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नाम से ज़रूर वाकिफ़ होंगे. गुप्त वंश के इस चक्रवर्ती राजा के बारे में जितना इतिहास है उतनी ही किंवदंतियाँ भी हैं. गुप्तवंश के तीसरे राजा और भारत के नेपोलियन के  तौर पर सुख्यात समुद्रगुप्त के पुत्र चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य को अपने वंश के सबसे प्रभावशाली राजाओं में से एक गिना जाता है.

ज़िक्र महरौली के लौह स्तम्भ में

चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य को उन शुरूआती राजाओं में गिना जाता है जिन्होंने बंग प्रदेश को जीता था. कुछ ऐतहासिक सूत्रों के अनुसार विक्रमादित्य चन्द्रगुप्त ने सिन्धु नदी के अभी सात मुहानों को जीत लिया था, साथ ही उनका राज्य कश्मीर में ब्यास नदी तक फ़ैला था. हालाँकि मत विरोध है फिर भी कई ऐतिहासिक सूत्रों का मानना है कि दिल्ली में महरौली में क़ुतुबमीनार परिसर में लगाये हुए  लौह स्तम्भ पर बंग प्रदेश को जीतने वाले जिस राजा विक्रमादित्य का ज़िक्र है, वह चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ही थे.

राजधानी पटना (पाटलीपुत्र) से उज्जैन (उज्जयिनी)

तमाम वर्णित सूत्रों के अनुसार गुप्त वंश की राजधानी पाटलीपुत्र थी पर 375 ईस्वी से 415 ईस्वी तक शासन करने वाले राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य  ने उज्जैन के शक आक्रमणकारियों को हराकर अपनी सत्ता स्थापित की थी और तब ही अपनी राजधानी को पाटलीपुत्र से हटाकर उज्जैन किया था. इस तथ्य की पुष्टि इतिहासविद् डी सी सरकार ने भी की है.

चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने राज्य परम्परा इतनी दुरुस्त रखी थी कि अपराध संख्या लगभग नगण्य थी. सम्पंदा और अन्न की कमी नहीं थी अतः ग़रीबी और भूख जैसी समस्याएँ भी लगभग शून्य ही थी.

उज्जैन के बाद मालवा के विजय ने उन्हें अपने राज्य को व्यवसायिक तौर पर बेहतर  बनाने में मदद की. चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य को कुशल प्रशासक और अभूतपूर्व योद्धा के अतिरिक्त कला, संस्कृति और विज्ञान के प्रश्रयकर्ता के रूप में भी देखा जाता है. सूत्रों सह किंवदन्तियो के अनुसार उन्होंने अपने दरबार में नवरत्नों को रखा था जिसमें कालिदास, आर्यभट्ट और वराहमिहिर सरीखे विद्वान शामिल थे. कई सूत्रों के अनुसार विक्रमादित्य चन्द्रगुप्त अपने पूर्ववर्ती मौर्य शासक अशोक महान से ख़ासे प्रभावित थे. पाटलीपुत्र में उन्होंने अशोक के महल में रहना भी चुना था.

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