यह जानकारी बहुत कम लोगों को है कि भक्ति काल की प्रमुख कवी और कृष्ण भक्त मीरा बाई और राणा प्रताप एक ही परिवार से थे. मीरा बाई दरअसल राणा प्रताप की ताई थीं. वे राणा के पिता उदय सिंह द्वितीय के बड़े भाई राणा भोजराज की पत्नी थीं.
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अपने शासन का विस्तार करते हुए अकबर ने कई राजपूत राजाओं को अपने पक्ष में कर लिया था. कुछ राजपूत राजाओं के साथ पारिवारिक सम्बन्ध भी स्थापित किए थे पर राणा प्रताप कभी अकबर के सामने नहीं झुके. कबर से युद्ध हारने के बाद उन्होंने समर्पण करने की जगह जंगलों में भटकना मंजूर किया.
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हल्दीघाटी का युद्ध हारने के बाद चित्तौड़ पर मुगलों का कब्ज़ा हो गया था. उस वक़्त राणा अपने आप को मुगलों के अधीन होने से बचाने के लिए जंगलों में भटकने लगे और साथ ही अपनी शक्ति को फिर से एकत्रित करने की कोशिश में लग गए. कहा जाता है कि वह समय उनके लिए बेहद मुश्किल था, जिसे उन्होंने घास की रोटियां खाकर बिताई थीं. कन्हैया लाल सेठिया ने इस पर एक कविता 'हरे घास री रोटी' भी लिखी है.
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भामाशाह रणथम्भौर के किलेदार भामा शाह राणा प्रताप के अनन्य मित्र थे. उन्हें जब राणा के जंगल-जंगल भटकने के बारे में पता चला, उन्होंने राणा को अपनी सारी संपत्ति दे दी. माना जाता है कि भामा शाह ने राणा को इतना धन दिया था कि 25000 सैनिकों को 12 साल के लिए रखा जा सकता था.