डीएनए हिंदीः बीन्स और दालों को सही अवधि के लिए भिगोने से उनके पोषक तत्वों और पाचन क्षमता बढ़ जाती है लेकिन हर दाल को भीगाने का समय अलग-अलग होता है. खाना पकाने से पहले दालों को भिगोने से इसका प्रोटीन कई गुना बढ़ सकते हैं. यह न केवल पोषक तत्वों के अवशोषण में सुधार करता है, बल्कि यह एंटी-न्यूट्रिएंट फाइटिक एसिड को हटाने में मदद करता है और कैल्शियम, आयरन और जिंक को बांधने में मदद करता है.
दाल को बिना भिगोए खाने के नुकसान भी बहुत होते हैं. इससे यूरिक एसिड बढ़ जाता है और पाचनशक्ति भी कमजोर होने लगती है. सभी दालें समान अवधि के लिए नहीं भिगोई जाती हैं हर किसी को भीगाने का सही समय क्या है चलिए जान लें.
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क्योंकि कुछ को 3 से 4 घंटे ही भीगाना काफी है तो कुछ को कम से कम 8 से 10 घंटे तक भीगाना जरूरी होता है. न्यूट्रिशनिस्ट जूही कपूर ने अपने इंस्टाग्राम पर सभी किस्मों की दाल और बीन्स को भिगोने का सही समय बताया है.
दालें
ली मूंग दाल, चना दाल, उड़द दाल, तुवर दाल आदि को पकाने से करीब 4-6 घंटे पहले भिगोने चाहिए.
साबुत फलियां
लोबिया, हरी मूंग दाल, कुलतीह या मोठ जैसी छोटी फलियाें को करीब 6-8 घंटे के लिए भिगोना सही है.
बीन्स और छोले
सोयाबीन, किडनी बीन्स यानी राजमा, बंगाल चना, ब्लैक बीन्स, छोले या मटर आदि बड़ी फलियों को 8-10 घंटे तक भिगोना चाहिए.
दालों को सही समय तक भिगोना क्यों जरूरी है.
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1-भिगोने से खाना पकाने का समय कम हो जाता है और इस प्रकार पोषक तत्वों के नुकसान से बचा जाता है.
2-दालें और फलियां पचाने में आसान हो जाती हैं और इससे एसिडीटी नहीं बनती और पेट पर हल्का रहता है.
3-फलियों में पोषक तत्वों के प्रभाव बढ़ जाता है.
4- फलियां या छोले आदि खाने के बाद सूजन और पाचन संबंधी परेशानी की संभावना कम हो जाती है.
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.)
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