डीएनए हिंदी: How To Deal With Depression- हमें कभी कभी गुस्सा आ जाता है, कभी रोना आ जाता है, कभी-कभी किसी की बात बुरी लग जाती है, हमें लगता है कि इसमें गलत क्या है. यह तो बहुत ही सामान्य है? इस केस में मैं औसत स्वास्थ्य के साथ जीवन जी सकती हूं, लेकिन अगर इस औसत स्वास्थ्य में थोड़ी सी भी बड़ी परिस्थिति आ जाती है, तो मेरा औसत स्वास्थ्य कभी-कभी उसका सामना नहीं कर पाता है.
मान लो, मुझे पैर में दर्द है और मैं इसी को जीवन का हिस्सा मान लेती हूं लेकिन अगर किसी दिन भागना पड़ गया उसी पैर से तो मैं ऐसा नहीं कर पाऊंगी और उस दिन मैं गिर जाऊंगी. मुझे खड़ा होने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति की मदद की ज़रूरत पड़ेगी. परन्तु उस दिन जब मैं दर्द में थी, यदि उसी टाइम मैं खुद की मदद कर लेती तो शायद मैं कभी ना गिरती. जी हां आज बीके शिवानी (BK Shivani) हमें इसपर ही शिक्षा दे रही हैं कि ये जीवन में कई चीजें हमें उदास कर देती हैं, डिप्रेशन जैसी बीमारी भी जीवन में आ जाती है, ऐसे में कैसे हम परिस्थितियों का सामना करें.
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कुछ ऐसे दर्द हैं जिन्हें हमने जीवनभर के लिए स्वीकार कर लेते हैं, हमें लगने लगता है कि गुस्सा करना, टेंशन करना, किसी की बात का बुरा मान लेना ये सब बहुत ही सामान्य बात है. लेकिन वास्तव में ये सारी चीज़ें भावनात्मक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं हैं. क्योंकि हमने इसे सामान्य मान लिया है, हम इस बारे में कुछ कर नहीं सकेंगे. वास्तव में पूरी दुनिया ने इसे सामान्य मान लिया है. पुरानी बातें पकड़ कर रखना, किसी को माफ़ नहीं कर पाना. इसका परिणाम यह हुआ कि हम अन्दर ही अन्दर भारी होते गए. इसलिए आज हमें इतनी भावनात्मक बीमारियां हो रही हैं, हम मेंटल रूप से बीमार पड़ रहे हैं.
दूसरे शब्दों में हमने बीमारी को असामान्य कह दिया. 25 साल पहले जब हम स्कूल में थे तब स्ट्रेस नाम का कोई शब्द नहीं था. उन दिनों हम सिर्फ एग्जाम के दिनों में ही थोड़ा बहुत टेंशन में रहते थे. एग्जाम समाप्त तो टेंशन भी समाप्त. टेंशन माना डिस्कम्फर्ट था. अगर हम उसका इलाज उसी समय कर लेते तो वो स्ट्रेस में ना बदलता. हमें इस समीकरण पर ध्यान देना है कि स्ट्रेस = प्रेशर/रेसिलिंस. यहां प्रेशर (दबाव), चैलेंजज (चुनौतियां) हैं. क्या हम कह सकते हैं कि पिछले 20 सालों में नुमेरटर इनक्रीस हो गया है? नहीं
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Depression कैसे बढ़ गया
यहां denominator रेसिलिंस यानी आतंरिक शक्ति है. तो हम कह सकते हैं कि पिछले 20 सालों में प्रेशर नहीं बढ़ा है, बल्कि हमारी आतंरिक शक्ति में कमी आ गई है. आतंरिक शक्ति क्या है, जीवन की परिस्सथितियों का सामना करने की शक्ति, क्षमा करने की शक्ति, समाने की शक्ति, बड़ी बात को छोटा करने की शक्ति इसे कहते हैं. देखा जाए तो पिछले कुछ सालों में ये आतंरिक शक्ति बहुत तेजी से घट गई है. यानी नुमेरटर बढ़ गया है, डिनोमिनेटर घट गया है. ये बहुत तेजी से हुआ है. परिणाम यह हुआ कि वो स्ट्रेस नहीं रहा, डिप्रेशन बन गया
हमें अपनी डिक्शनरी को बदलना होगा, आज से सकारात्मक शब्द कहना शुरू कर दें - मैं खुश हूँ, चाहे मैं खुश ना भी हूँ, लेकिन अगर मैं ऐसा कहूँगी तो ख़ुशी आ जाएगी. डिप्रेशन इसलिए हो रहा है क्योंकि हम अपना बहुत जल्दी मूड ऑफ कर लेते हैं. इसके विपरीत यदि हम अपने आपको खुश रखेंगे तो ख़ुशी की वाइब्रेशन ऑफिस में, घर पर हर जगह फैलेगी. अगर मेरा मूड बार बार स्विंग हो रहा है, कभी ऑन कभी ऑफ तो डिप्रेशन के चांसेज बढ़ जायेंगे और अगर हमने यह सोच लिया की कुछ भी हो जाए मुझे खुश रहना है, तो कोई भी बात मेरी ख़ुशी छीन नहीं सकेगी
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