How Drugs Work in Body: दवा को कैसे पता होता है शरीर में किस मर्ज का इलाज करना है?

Written By ऋतु सिंह | Updated: Feb 20, 2024, 06:32 AM IST

दवा शरीर की बीमारियों पर कैसे करती है काम

दवा को कैसे पता चलता है कि उसे शरीर के किस हिस्से का दर्द या बीमारी (How medicine know which disease to treat) का उसे इलाज करना है? केवल उसी जगह दवा कैसे काम करती है, जहां उसे करना होता है? आपके मन में ये सवाल है तो इसका जवाब इस आर्टिकल में छिपा है.

सिर या पेट में दर्द (Headache or Stomach Ache )हो या किसी इंफेक्शन के इलाज (Treatment of Infection) के लिए हम दवा खाते हैं, लेकिन कभी सोचा है कि दवा को कैसे पता होता है कि उसे शरीर में किस मर्ज का इलाज करना है? शरीर के सारे भाग को छोड़कर दवा केवल उसी जगह पर काम करती है, जहां उसे काम करने के लिए भेजा दाता है, क्योंकि हमारा शरीर इसके लिए एक रोडमैप बनाता है और शरीर की कोशिकाएं (Body Cells) दवाओं को रास्ता दिखाती हैं कि उसे कहां काम करना है. 

ये तो सीधे शब्दों में बता दिया लेकिन असल में दवा शरीर के अंदर जाने के बाद कहां-कहां जाती है और कैसे मर्ज तक पहुंचती है. आइए इसे समझते हैं.

मुंह से पेट, फिर कहां और कैसे बीमारी तक पहुंचती है दवा

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ.अनिल बंसल बताते हैं कि जब आप कोई दवा (तरल या गोली के रूप में) किसी मर्ज के लिए निगलते हैं, तो ये दवा सीधे आपके पेट में जाती है और ब्लड में शामिल होती है. ब्लड में अवशोषित ये दवा एक विशेष 'राजमार्ग' जिसे हेपेटिक पोर्टल शिरा (Hepatic Portal Vein) कहा जाता है, वहां जाती है और माध्यम से छोटी आंत और फिर लिवर में आती है. लिवर में, गोली अपने दवा टूटती है और वापस ब्लड स्ट्रीम में जाती है

दवाएं दो तरह से शरीर में काम करती हैं. पहली वो दवाएं जो किसी इंफेक्शन या दर्द के लिए हों और दूसरी वो जो किसी बीमारी जैसे ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या कोलेस्ट्रॉल की हों. दोनों के इलाज के लिए अलग तरीके से दवा काम करती है. दर्द या इंफेक्शन होने पर दवा प्रोस्टाग्लैंडीन रसायन को खोजती है, वहीं किसी मर्ज के इलाज के लिए दवा रिसेप्टर को खोजती है. अब ये प्रोस्टाग्लैंडीन रसायन  और रिसेप्टर क्या हैं, इसे जान लें.

प्रोस्टाग्लैंडीन रसायन क्या है?

और यहां वह प्रोस्टाग्लैंडीन रसायन की ओर आकर्षित होती है. असल में जब शरीर में किसी जगह चोट, दर्द या बीमारी हो तो वहां की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, तो वे प्रोस्टाग्लैंडीन नामक एक रसायन छोड़ती हैं और शरीर की तंत्रिका तंत्र प्रोस्टाग्लैंडीन के प्रति बहुत संवेदनशील होती हैं. आप इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि आपके शरीर में मौजूद सेल्स एक ताले की तरह होती हैं और ये एक अनोखी चाबी से ही खुल सकती हैं. दवा वही चाबी होती है जो वहीं खुलती है जहां, प्रोस्टाग्लैंडीन के स्राव हो रहा होता है.  इस तरह दवा वहीं काम करती हैं जहां उसके करने के लिए आपने शरीर में भेजा है.

जब दवा काम करने लगती है तो कोशिकाएं प्रोस्टाग्लैंडीन छोड़ना बंद कर देती हैं , तो तंत्रिका तंत्र मस्तिष्क को दर्द संदेश भेजना बंद कर देता है. जब मस्तिष्क को दर्द या बीमारी के संदेश मिलना बंद हो जाते हैं, तो आपको दर्द महसूस होना बंद हो जाता है. साफ शब्दों में कहें तो ये प्रोस्टाग्लैंडीन ही दवाओं को अपनी ओर आकर्षित कर मर्ज का इलाज करने में मदद करते हैं.

रिसेप्टर क्या है?
औषधियां मूलतः एक तरह का रसायन होती हैं. इन रसायनों को इस तरह से डिज़ाइन किया जाता है कि वे शरीर में केवल कुछ प्रोटीन अणुओं से ही जुड़ें, जिन्हें रिसेप्टर्स के रूप में जाना जाता है. कई अलग-अलग प्रकार के रिसेप्टर्स होते हैं जो कोशिका की सतह पर या कोशिका के अंदर भी मौजूद होते हैं. प्रत्येक रिसेप्टर अलग आकार होता है. ये रिसेप्टर भी ताले जैसा ही होता है जो दवा रूपी चाबी के आने पर खुल जाता है. इसलिए जिस रेसेप्टर्स को दवा की जरूरत होती है वह दवा के संपर्क में आते ही खुल जाते हैं और दवा वहां काम करना शुरू कर देती है.

तो शरीर के अंदर दवा इस खास वजह से ही मर्ज का इलाज कर पाती है. दवा के लिए करती रिसेप्टर और प्रोस्टाग्लैंडीन रसायन एक चुंबक तरह काम करते हैं और उसे अपनी ओर खींच लेते हैं.

Disclaimer: यह लेख केवल आपकी जानकारी के लिए है. इस पर अमल करने से पहले अपने विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लें.

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