History of Ghevar: राजस्थानी घेवर के बगैर अधूरे रह जाते हैं ये त्योहार, क्यों बेटियों के लिए है इतना ख़ास ?

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Jul 04, 2022, 03:48 PM IST

Ghevar का इतिहास बहुत ही रोचक है, राजस्थानी इस मिठाई का तीज, रक्षाबंधन और सावन से है गहरा रिश्ता, जानिए क्या

डीएनए हिंदी: वैसे तो तीज,सावन और रक्षाबंधन के दौरान कई मिठाईयां बहुत फेमस हैं लेकिन जब बात घेवर की आती है तो आप मुंह के पानी को रोक नहीं पाते हैं. यह एक ऐसी मिठाई है जिसके साथ राजस्थान की खुशबू जुड़ी है. सिर्फ राजस्थान में ही नहीं बल्कि ब्रज और उसके आस-पास के क्षेत्रों में एक परंपरा के अनुसार रक्षाबंधन पर बहन अपने भाई के लिए घेवर लेकर जाती है.

बिना घेवर के भाई-बहन का रक्षा बंधन का त्योहार पूरा नहीं माना जाता है. सावन या तीज पर भी बेटी के मायके से घेवर आता है, ऐसे में यह मिठाई बेटी को उसके मायके की याद दिलाती है. यह एक ट्रेडिशनल मिठाई है. 


घेवर के पीछे की कहानी  (History of Ghevar in Hindi)
 
घेवर के पीछे की कहानी बहुत रोचक है.वैसे तो बारिश की बूंदों की फुहार के साथ गर्मा-गरम पकौड़े और चटपटी चीजें खाने का मन करता है लेकिन सावन में घेवर की बात ही कुछ अलग है. महिलाएं राखी के मौके पर अपने मायके जाती हैं तो अपने साथ घेवर ले जाती हैं. 

घेवर के इतिहास के बारे में जानने की कोशिश की गई तो इसके बारे में कोई खास इतिहास मालूम नहीं हुआ. लेकिन कहा जाता है कि घेवर राजस्थान का आविष्कार है. राजस्थान खानपान के मामले में बहुत ही अलग है. मसालों से लेकर मिठाईयों तक का स्वाद जल्द कोई भूलता नहीं. इसके अलावा ब्रज क्षेत्रों में घेवर अलग-अलग तरीकों से बनाए जाते हैं. घेवर को इंग्लिश में हनीकॉम्ब डेज़र्ट के नाम से जाना जाता है. रेस्टोरेंट्स में गोल जालीदार वाली इस मिठाई को हनीकॉम्ब डेज़र्ट के नाम से भी ऑर्डर किया जा सकता है.

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कैसे बनता है घेवर  (How to make Ghevar in Hindi)

मधुमक्खी के छत्ते जैसा दिखने वाले घेवर में बहुत प्रकार के फ्लेवर आते हैं. देसी घी, सफेद, पीला, केसरिया और मलाई दार घेवर लेकिन बनाने का तरीका लगभग एक जैसा ही है.आम तौर पर मैदे और अरारोट के घोल को तरह-तरह के सांचों में डालकर घेवर बनाया जाता है. समय के साथ-साथ घेवर को प्रेजेंट करने के तरीके में बदलाव आया है. नए घेवर के रूप में लोग मावा घेवर, मलाई घेवर और पनीर घेवर ज्यादा पसंद कर रहे हैं. फ्लेवर और आकार जरूर बदल गए हैं पर आज भी घेवर का स्वाद पुराना ही है. चाशनी में डूबे घेवर पर रबड़ी और सूखे मेवों का वर्क हर एक को पसंद आएगा.

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