डीएनए हिंदी: हमारी परंपरा व संस्कृति हमेशा से बेहद अलग और खास रही है. प्राचीन समय से ही खान-पान से लेकर हमारे पहनावे तक का अंदाज सबसे अलहदा रहा है (Most Popular Sarees). पहनावे की अगर बात करें तो भारतीय महिलाओं के पहनावे में साड़ी को बेहद खास और विशेष माना जाता है, जिसे विदेशी महिलाएं भी पहनना खूब पसंद करती हैं. हमारे देश में अलग-अलग संस्कृतियां फल फूल रही हैं और उन संस्कृतियों के हिसाब से ही विभिन्न राज्य की महिलाएं अलग-अलग तरह की साड़ियां (Different Types of Sarees in India) पहनती है.
आज हम आपको 5 ऐसी साड़ियों के बारे में बताने वाले हैं, जिनका जुड़ाव हिंदू धर्म से भी है. ये 5 साड़ियां फैशनेबल लुक के साथ-साथ धार्मिक महत्व (Saree Which Have Spiritual Significance) भी रखती हैं और धर्म के करीब ले जाती हैं...
मधुबनी साड़ी
बिहार के मधुबनी की लोक कला को ही मधुबनी आर्ट कहा गया है और इस आर्ट में पौराणिक कथाओं का जिक्र मिलता है. वैसे तो मधुबनी में यह कला घर की दीवारों पर की जाती है और इस कला को करने का एक विशेष समय भी निर्धारित होता है. दरअसल पहले जब घर में किसी की शादी होती थी घर की महिलाएं लोक गीत गाते हुए घर की दीवारों पर देवी सीता और श्री राम के चित्र बनाया करती थीं.
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बावन बूटी साड़ी
बावन बूटी साड़ी भी बिहार के नालंदा में बनने वाली एक फेमस साड़ी है और इसका इतिहास भी भगवान गौतम बुद्ध से जुड़ा हुआ है. दरअसल इस साड़ी में एक जैसी 52 बूटियां होती बनाई जाती हैं और इसमें सभी बूटियां बौद्ध धर्म के 8 पवित्र चिन्हों पर आधारित होती हैं. इतना ही नहीं ये सभी चिन्ह ब्रह्मांड की सुंदरता का वर्णन करते हैं. इसके अलावा यह साड़ी कॉटन की होती है और पहनने में बहुत ही आरामदायक होती है.
अब यही चित्र दीवारों के स्थान पर साड़ी पर उकेरे जाते हैं. यह बहुत पुरानी कला है, जिसमें राम-सीता के विवाह की कहानी चित्रित की जाती है. इसके अलावा यह साड़ी दुल्हन को पीहर से मिलती है और वह इसे अपने ससुराल में पहनती है.
बालूचरी साड़ी
बालूचरी साड़ी का इतिहास बहुत पुराना है और इसका जुड़ाव भी हिंदू धर्म से है. दरअसल इस साड़ी में कथा वाचन किया जाता है और यह साड़ी बंगाल के मुर्शिदाबाद के गांव बालुचर में बनाई जाती थी, इसलिए इसे बालूचरी साड़ी कहा जाता है. कहा जाता है बालुचर में पहले सारे कारीगर रहा करते थे और वे स्पेशल ब्रोकेड वीविंग के माध्यम से साड़ी तैयार करते थे और साड़ी के पल्लू पर मुगल राजाओं की कहानी होती थीं.
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लेकिन जब ये कारीगर विष्णुपुर आकर बस गए, तब इस साड़ी में विष्णुपुर के मंदिरों की दीवारों और खंभे में अंकित देवताओं की कहानियों का वाचन शुरू हुआ और तब से अब तक आपको बालूचरी साड़ी की पल्लू पर हिंदू धार्मिक कथाएं मिल जाएंगी.
कसावु साड़ी
केरल में कसावु साड़ी को बहुत ही शुभ माना गया है और इस साड़ी को मलयाली समुदाय की महिलाएं अच्छे और बुरे दोनों अवसरों में पहनती हैं. इस साड़ी को कसावू मुंडू भी कहा जाता है और यह टू पीस में आती है. इसके अलावा क्रीम कलर के कॉटन के कपड़े पर गोल्डन जरी बॉर्डर होता है जो इस साड़ी की शांन को बढ़ाता है.
वेंकटगिरी साड़ी
आंध्र प्रदेश के वेंकटगिरी में 1700 वर्ष पहले से ही वेंकटगिरी साड़ी बनाई जा रही हैं. यह साड़ी कॉटन की होती है और इसकी बुनाई जामदानी स्टाइल में होती है. मान्यता है कि वेंकटगिरी साड़ी देवता लोग भी धारण करते थे और वेंकटगिरी श्री कृष्ण के अवतार श्रीनिवास और श्री लक्ष्मी का अवतार कही जाने वाली पद्मावती की प्रेम गाथा के लिए प्रसिद्ध है. वहीं पहले के जमाने में यह साड़ी केवल राज परिवार के लिए बनाई जाती थी और इसे मंदिरों में देवी-देवताओं को अर्पित किया जाता था, लेकिन अब यह साड़ी आम लोग भी धारण कर सकते हैं.
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